Ravindra Jain: नेत्रहीन होते हुए भी संगीत की दुनिया को रोशन कर गए रविंद्र जैन, मन की आंखों से सुरों में उतारे जिंदगी के रंग
रविंद्र जैन ने संगीत की दुनिया में बेशुमार प्रसिद्धी हासिल की. उन्होंने अपने गानों के दम पर हर किसी का दिल जीता. बेशक वह आंखों से इस दुनिया को नहीं देख पाए, लेकिन उन्होंने अपने मन की आंखों से जिंदगी के हर रंग को बखूबी समझा.
Ravindra Jain Birthday Special: पलभर के लिए आंखें बंद करके कोई काम करने के बारे में हम सोच भी नहीं सकते, लेकिन वहीं थे एक रविंद्र जैन, जो नेत्रहीन होने के बावजूद अपने सदाबहार गीतों से संगीत की दुनिया को रोशन कर गए. बचपन से ही दृष्टिहीन होने के कारण उन्होंने इस दुनिया के कोई रंग नहीं देखे थे, लेकिन उन्होंने अपनी आंखों से हर चीज को ऐसा देखा जो शायद और किसी ने कभी महसूस भी नहीं किया था. वह हर एक बात का वर्णन अपने संगीत में कुछ इस तरह किया करते थे कि मानो उन्होंने सबकुछ सजीव देखा है. रविंद्र जैन में बिना देखे लिखने की ऐसी कला थी कि वह पूरी दुनिया उनकी दीवानी हो जाती थी.
बिना रंग दिखे संगीत में उतारा हर रंग
28 फरवरी, 1944 अलीगढ़ के मोहल्ला कनवरीगंज में रवींद्र जैन ब्रज जन्म से ही नेत्रहीन थे, लेकिन उनकी मन की आंखों की रोशनी इतनी तेज थी कि उनसे जिंदगी के कोई रंग नहीं बच पाए. उन्होंने दर्जनों गीत सिर्फ मन की आंखों से देखकर ही लिख डाले. यहां तक की रंगों के त्योहार ब्रज की होली को भी उन्होंने बेहद खूबसूरती से पेश किया. उन्होंने कई फिल्मों के लिए होली के गीत लिखे. इसके अलावा भी वह जिंदगी के हर पल ऐसे शब्दों में संजोते कि उनका संगीत सीधा दिलों को छू जाया करता था.
4 साल की उम्र से ही संगीत की शिक्षा
रविंद्र जैन को बचपन से ही संगीत का शौक था. वहीं, माता-पिता उनके भविष्य को लेकर हमेशा परेशान रहा करते थे. हालांकि, पिता ने तय कर लिया था वह बेटे को संगीत सिखाएंगे. जब रविंद्र 4 साल थे तभी से पिता ने घर पर ही उनके लिए संगीत की शिक्षा की व्यवस्था कर दी. बाद में वह संगीत के शिक्षकों के तौर पर कोलकाता रवाना हो गए. इस दौरान उन्होंने गायक के तौर पर खुद को स्थापित करने की कोशिश की, लेकिन कई रेडियो स्टेशन्स पर उन्हें ऑडिशन में ही बाहर कर दिया गया. कहते हैं कि उसी समय रविंद्र जैन के गुरु राधे श्याम झुनझुनवाला एक फिल्म 'लोरी' बनाने जा रहे थे, जिसके लिए वह रविंद्र को लेकर मुंबई आ गए.
रविंद्र को मिलने लगा बेशुमार प्यार
इस फिल्म के लिए रविंद्र ने अपना पहला गीत रिकॉर्ड किया. पहले ही प्रोजेक्ट में उन्हें लता मंगेश्कर, आशा भोसले और मोहम्मद रफी का साथ मिला. हालांकि, यह फिल्म पूरी नहीं हो पाई, लेकिन रविंद्र खुश थे, क्योंकि बड़े संगीतकारों के साथ काम करने का मौका मिला था. इसके कुछ समय बाद ही रविंद्र को संगीत निर्देशक के तौर पर अपनी पहली फिल्म 'कांच और हीरा' ऑफर हुई. इस फिल्म में फिर उन्हें रफी साहब के साथ काम करने का मौका मिला. फिल्म बेशक फ्लॉप रही, लेकिन रविंद्र के गानों को दुनियाभर में बेशुमार प्यार मिला.
'रामायण' में गाईं चौपाई
रविंद्र जैन ने 1973 में राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म 'सौदागर' के लिए काम किया और यहीं से उनकी किस्मत ने ऐसी करवट ली कि हर किसी जुबां पर उन्हीं का नाम रहने लगा. वह एक के एक बाद ऐसे बेहतरीन गाने पेश कर रहे थे कि उन्हें जो भी सुनता वो रविंद्र का दीवाना हो जाता. तमाम फिल्मों में बेहतरीन गाने देने के बाद वह रामानंद सागर के पौराणिक शो 'रामायण' का भी हिस्सा बने. 'रामायण' लगभग सभी चौपाइयों और अन्य भजन पीछे रविंद्र जैन की ही आवाज छिपी थी.कहते हैं कि 'रामायण' का भजन 'मत जाओ, राम अयोध्या छोड़ के मत जाओ' केवल 5 मिनट में ही तैयार कर लिया था.
2015 में हो गया निधन
संगीत की दुनिया में अपना योगदान देकर कई फिल्मों अमर बनाने वाले रविंद्र जैन को कभी भुलाया नहीं जा सकता. वह लंबे समय तक किडनी की समस्या से जूझते रहे और 9 अक्टूबर, 2015 को उन्होंने हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया था. हालांकि, आज भी अपने सदाबहार गीतों के जरिए वह हमेशा दिलों में जिंदा रहेंगे.
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