नई दिल्ली.   सुशांत हत्याकांड भी एक परफेक्ट मर्डर नहीं है. इस हत्याकांड के परिदृश्य में एक नहीं अनेक ऐसे सुराग नजर आते हैं, जो जाहिर है हत्यारों की तैयारी के बावजूद छूट गये थे. अब शुरू से लेकर आखिर तक बिखरे इन सबूतों को ढूंढने और इकट्ठा करने की चुनौती हर उस जांच दल के सामने है जो इस हत्याकांड से तफतीश के लिये जुड़ा है. इस हत्याकांड के क्राइम सीन पर सात सुराग तो बिलकुल ही साफ नजर आते हैं. 


सबूत नंबर वन & टू 


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इस वारदात का घटनास्थल काफी कुछ कहता है. क्राइम सीन पर गौर करें तो कई चीजें साफ-साफ नजर आती हैं जो शोर मचा कर इस आपराधिक-घटना के बारे में बताती हैं. सबूत नंबर वन के तौर पर हमें घटनास्थल पर कोई भी स्टूल या कोई टेबल कुर्सी नजर नहीं आती जिस पर खड़े हो कर आत्महत्या हो सकती. सबूत नंबर दो के तौर पर लाश टेढ़ी लटकी बताई गई, जबकि सच तो ये है कि आत्महत्या करते समय फंदे से मुक्त होने के लिये शरीर पूरा जोर लगाता है और ऐसे में उसका शरीर तना होता है, टेढ़ा लटका हुआ नहीं होता. 


सबूत नंबर थ्री & फोर


सबूत नंबर तीन के तौर पर सुशांत के निष्प्राण शरीर का चेहरा दिखाई देता है जो ऐसा लग रहा था जैसे सुशांत सो रहे हों, जबकि ये सच सब जानते हैं कि आत्महत्या करने वाले की आंखें या जुबान या दोनो ही बाहर लटक आते हैं. सबूत नंबर चार के तौर पर सुशांत के गले का निशान नजर आता है. सुशांत के स्टाफ का कहना है कि कमरे में मौजूद कपड़े से सुशांत ने आत्महत्या की थी किन्तु यदि कपड़े से आत्महत्या की तो गले पर ये निशान कहां से आया. कपड़े से ऐसा निशान बनना मुमकिन नहीं है. 


सबूत नंबर फाइव


सबूत नंबर पांच के तौर पर घटना का तरीका नजर आता है. यदि सुशांत ने मरने का मन बना लिया था तो उसने कोई आसान तरीका जैसे स्लीपिंग पिल्स का ओवरडोज़, पोटेशियम साइनाइड जैसा आसान तरीका क्यों नहीं चुना, फांसी लगाना ही क्यों बेहतर नजर आया उनको. यदि फांसी ही लगाना चाहते थे सुशांत तो बाजार से रस्सी क्यों नहीं लाये, कपड़े से ही फांसी क्यों लगाई?


सबूत नंबर सिक्स


सबूत नंबर छह के तौर पर हमें वो दो चीज़ें नज़र आती हैं जो क्राइम सीन पर नज़र नहीं आईं. अमूमन आत्महत्या करने वाले आत्महत्या करने के पहले एक सुइसाइड नोट छोड़ते हैं. सुशांत के पास से, उनके कमरे से या उनके घर से कोई सुइसाइड नोट बरामद नहीं हुआ था. वो दूसरा अहम तथ्य जो पहले तथ्य की भांति आत्महत्या पर सवाल उठाता है, ये है कि आत्महत्याएं नब्बे प्रतिशत से ज्यादा मौकों पर रात में देखी गई हैं. और लगभग पंचानबे प्रतिशत आत्महत्याएं जो घर पर देखी गई हैं- रात में ही हुई हैं. रात में भावुकता का स्तर  बहुत बढ़ जाता है और इंसान ये गलत कदम उठा लेता है. ऐसे में सुशांत का दिन में वो भी सुबह आत्महत्या करना भारी संदेह का कारण बनता है. सुबह तो आत्मविश्वास और जोश से भरी होती है और आदमी ऊर्जा से लबरेज होता है ऐसे में सुशांत जैसे जिन्दादिल शख्स का सुबह उठ कर आत्महत्या कर लेने की बात सम्भव ही नहीं है.     


सबूत नंबर सेवन


सबूत नंबर सात के तौर पर ये झूठ दिखाई देता है जो बताया गया कि आत्महत्या के कुछ देर पहले सुशांत ने जूस मंगा कर पिया. दुनिया छोड़ कर जाने वाले जूस मंगा कर नहीं पीते, क्योंकि ऐसा किसी तरह सम्भव ही नहीं है. मरने के पहले मरने वाले का मनोविज्ञान और उसका शरीर -दोनों ही किसी भी प्रकार के खाने या पीने को स्वीकार कर ही नहीं सकते.


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