नई दिल्ली. इसमें हैरानी की कोई बात नहीं. जब सवालों के जवाब नहीं होते तो सवाल लाजवाब हो जाते हैं. सुशांत हत्याकांड के शुरुआती दौर में हुई मुंबई पुलिस की हरकतों ने उसको स्कॉटलैन्ड यार्ड नहीं फ्रॉडलैन्ड यार्ड की पहचान दे दी है. कहने को तो ये भी कहा जाता है कि प्यादे लड़ते मरते हैं और जीतते वजीर हैं. लेकिन यहां वजीर हो या प्यादा- जो जैसा करेगा वैसा निश्चित ही भरेगा क्योंकि जो शै अब सामने आई है उसका नाम सीबीआई है. सीबीआई से भी पहले हमारे ये बयालीस प्रश्न मुंबई पुलिस से जवाब की मांग करते हैं.
सवालों का कठघरा नंबर वन
मुंबई पुलिस ने सुशांत की हत्या को तुरंत आत्महत्या कैसे कह दिया? वास्तव में सुशांत ने आत्महत्या की होती तो भी झुमरी तलैया की पुलिस भी सीधे-सीधे नहीं मान लेती और घटना स्थल पर आत्महत्या के चिन्ह ढूंढती. बेसिक्स हैं ये पुलिस जांच के. बिलकुल बेसिक तफतीश की ट्रेनिंग में पुलिस को सिखाया जाता है कि सुइसाइड नोट नाम की एक चीज होती है, पहले उसे ढूंढो, फिर कुछ तय करो. लोगों से पूछताछ तो करो और ऐसे में एक बार घटना स्थल की हर वस्तु की बारीकी से पड़ताल करनी भी तो बनती है.
मुंबई पुलिस ने आत्महत्या से जुड़े सुसाइड नोट जैसे साक्ष्य ढूंढने में दिलचस्पी क्यों नहीं दिखाई? कमरे में किसी स्टूल या कुर्सी के न होने पर इस मौत को आत्महत्या कैसे मान लिया? सुशांत के शांत चेहरे पर फांसी से मरने के कोई चिन्ह नहीं थे – न आंखें लटकी थीं, न ही जुबान बाहर की तरफ निकली. तब मुंबई पुलिस ने किसके कहने पर आंखें बन्द करके इसे बेशर्मी से आत्महत्या करार दिया? घटना के केन्द्र में मौजूद सबसे बड़ी संदिग्ध रिया चक्रवर्ती से गहन पूछताछ क्यों नहीं की गई?
रिया का स्थानीय पुलिस जांच अधिकारी अभिषेक त्रिमुखे से कनेक्शन किस तरह का था? घटना के कई दिनों तक संदेह की कई गुन्जाइशों के बाद भी पुलिस ने सुशांत की मौत पर कोई एफआईआर लिखना जरूरी क्यों नहीं समझा?
सवालों का कठघरा नंबर दो
सवालों के इस कठघरे में माउन्ट ब्लैन्क सोसाइटी से जुड़े सारे सवाल हैं, यथा- बिल्डिंग के और गेट के सीसीटीवी चेक क्यों नहीं किये? सीसीटीवी बन्द थे या खराब? यदि ऐसा हुआ तो 13 से 14 जून को ही क्यों हुआ ऐसा? सोसाइटी के नाइट गार्ड से पूछताछ क्यों नहीं हुई? सोसाइटी के आरडब्लूए वालों से पूछताछ की जरूरत क्यों नहीं समझी गई? सुशांत के अगल बगल के फ्लैट्स में रहने वालों से पूछना क्यों जरूरी नहीं समझा गया?
सवालों का कठघरा नंबर तीन
सवालों के इस कठघरे में घटनास्थल पर पुलिस की गतिविधियों से जुड़े प्रश्न हैं, यथा- दो एम्बूलेन्स कैसे आईं? जिस व्यक्ति ने फोन करके जानकारी दी थी, उस व्यक्ति से बाकायदा पूछताछ क्यों नहीं की गई? बॉडी को उतारने वाले व्यक्ति को अलग ले जाकर सवाल-जवाब क्यों नहीं किये गये? घर में काम करने वाले चारों लोगों से अलग-अलग ऑन रिकार्ड पूछताछ क्यों नहीं की गई? इन चारों के बयानों का मिलान करके क्लू ढूंढने की कोशिश क्यों नहीं की गई?
पास रहने वाली बहन मीतू सिंह से क्यों कुछ नहीं पूछा गया? दरवाजे का लॉक तोड़ने वाले को क्यों नहीं ढूंढा गया ताकि उससे जरूरी पूछताछ हो सके? नियमों का पालन क्यों नहीं किया गया और घटनास्थल पर पुलिस ने अपनी हर गतिविधि का वीडियो शूट क्यों नहीं किया? जो वीडियो शूट हुआ है वह धुंधला और अस्पष्ट क्यों है?
सवालों का कठघरा नंबर चार
सवालों के इस कठघरे में सुशांत के मृत शरीर से जुड़े सवाल हैं, य़था- सुशांत के शव को पोस्टमार्टम के लिये ले जाते समय उसके शव का टेढ़ा लेटा होने का राज क्या था? शव को पास के सरकारी अस्पताल में क्यों नहीं ले जाया गया? पोस्टमार्टम के लिये दूरस्थ निजी अस्पताल को क्यों चुना गया? पुलिस ने पोस्टमार्टम की अधूरी रिपोर्ट चेक क्यों नहीं की? सुशांत की मौत पर घर आया संदीप सिंह शवगृह में भी तैनात दिखाई दिया, उसका वहां मौजूद पुलिस के साथ क्या कनेक्शन था?
सवालों का कठघरा नंबर पांच
सवालों के इस कठघरे में दिशा की मौत से जुड़े हैं सवाल, यथा- दिशा के निर्वस्त्र शव को आत्महत्या कह कर फाइल बन्द करने की जल्दी क्यों दिखाई? दिशा की मौत पर बिल्डिंग में सवाल जवाब क्यों नहीं किये गये? इस बिल्डिंग के उस फ्लैट में खास तौर पर पूछताछ क्यों नहीं की गई जहां से दिशा को फेंका गया था? प्रत्यक्षदर्शियों के बयान क्यों नहीं लिये गये? दिशा की अधूरी पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर पुलिस ने सवाल क्यों नहीं उठाये? दिशा की हत्या से जुड़े सभी डाक्यूमेन्ट्स कंप्यूटर से कैसे और क्यों डिलीट हो गये?
सवालों का कठघरा नंबर छह
सवालों के इस कठघरे में सवाल बिहार पुलिस की तफतीश से संबन्धित हैं, यथा- मुंबई पुलिस ने बिहार पुलिस का तफतीश में सहयोग क्यों नहीं किया? मुंबई पुलिस ने बिहार पुलिस के द्वारा मांगे गये बहुत से डाक्यूमेन्ट्स उनको क्यों नहीं दिये? जब आईपीएस विनय तिवारी के आगमन को लेकर मुंबई पुलिस से बात हो गई थी, तब विनय तिवारी को आधी रात में इरादतन क्वारेन्टाइन का शिकार क्यों बनाया गया?
यदि यह केन्द्र सरकार का कोरोना सावधानी से जुड़ा नियम है तो विनय तिवारी के पहले बिहार से तफतीश के लिये आये तीन अधिकारियों को क्वारेन्टाइन क्यों नहीं किया? मुंबई पुलिस चीफ बिहार पुलिस चीफ से बात करने से क्यों मुह चुरा रहे थे?
सवालों का कठघरा नंबर सात
सवालों के इस कठघरे में बाहरी सवाल हैं, यथा- सुशांत हत्याकांड की जांच में नाकाम रहने के बाद मुंबई पुलिस सीबीआई की इन्क्वायरी क्यों नहीं होने देना चाहती थी? यदि मुंबई पुलिस ने केन्द्र सरकार के नियमों का पालन किया है तो अब सीबीआई के अधिकारियों को क्वारेन्टाइन क्यों नहीं किया?
सवालों का कठघरा नंबर आठ
सवालों के इस कठघरे में सोशल मीडिया केन्द्रस्थ है. सोशल मीडिया पर वायरल हो रही एक खबर ने सुशांत और दिशा की हत्या के तार जोड़ने का काम किया था और हत्या के कारणों से लेकर हत्यारों के नामों तक की जानकारी दी थी. मुंबई पुलिस ने इस जानकारी का संज्ञान क्यों नहीं लिया? यदि यह जानकारी गलत थी तो मुंबई पुलिस ने उस जानकारी को गलत साबित करने की कोई कोशिश क्यों नहीं की? और यदि वह जानकारी सही है तो उसको आधार बना कर जांच क्यों नहीं की?