मृत्यु से पहले दिए गए बयान की सत्यता की जांच जरूरी: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में यह कहा है कि, किसी भी अदालत को यह पता लगाना चाहिए कि, मृतक का अंतिम घोषणापत्र सच और प्रमाणिक है या नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी (दहेज के मामले में मृत्यु) के तहत दोषी करार दिये गये एक व्यक्ति को बरी करते हुए ये टिप्पणियां कीं.
नई दिल्ली: भारत की सु्प्रीम कोर्ट ने हत्या के मामले में दोषी करार देने के लिए एक अहम टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी के अनुसार किसी व्यक्ति को हत्या के मामले में दोषी करार दिए जाने के लिए मृतक का अंतिम घोषणापत्र एकमात्र आधार हो सकता है.
अदालत को पता लगानी होगी प्रमाणिकता
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में यह भी कहा है कि, किसी भी अदालत को यह पता लगाना चाहिए कि, मृतक का अंतिम घोषणापत्र सच और प्रमाणिक है या नहीं. उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी भी अदालत को इस बात का पता लगाना चाहिए कि मृत्यु से पहले की गयी घोषणा ऐसे समय की गयी है जब मृतक शारीरिक और मानसिक रूप से घोषणा करने के लिए स्वस्थ था या थी और किसी के दबाव में नहीं था या नहीं थी.
IPC की धारा 304-B के मामल में की टिप्पणी
शीर्ष अदालत ने कहा कि मृतक के अंतिम घोषणापत्र साथ शर्त है कि ऐसी कोई परिस्थिति नहीं हो जो इसकी सच्चाई को लेकर संदेह को बढ़ावा दे रही हो. न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति पी एस नरसिंहा की पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी (दहेज के मामले में मृत्यु) के तहत दोषी करार दिये गये एक व्यक्ति को बरी करते हुए ये टिप्पणियां कीं.
क्या कहा पीठ ने
टिप्पणी करते हुए पीठ ने कहा कि, पीठ ने कहा, ‘‘अदालत को यह जांचना जरूरी है कि मृत्यु से पहले की गयी घोषणा सच और प्रामाणिक है या नहीं, इसे किसी व्यक्ति द्वारा उस समय दर्ज किया गया या नहीं जब मृतक घोषणा करते समय शारीरिक और मानसिक रूप से तंदुरुस्त हो, इसे किसी के सिखाने या उकसाने या दबाव में तो नहीं दिया गया.’’
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