नई दिल्ली. प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति देश के नए लोकपाल अध्यक्ष का शीघ्र ही चयन कर सकती हैं. केंद्र ने लोकपाल के नए प्रमुख की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू कर दी है. लोकपाल के पद के लिए सुप्रीम कोर्ट से हाल ही में सेवानिवृत हुए जस्टिस खानविलकर का नाम काफी चर्चा में है. सूत्र बताते हैं कि उन्हें इस पद के लिए सबसे प्रबल दावेदार माना जा रहा है.
क्या है लोकपाल अधिनियम
लोकपाल अधिनियम को 2013 में पारित किया गया था. सरकारी अधिकारियों की कुछ श्रेणियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को देखने के लिए केंद्र में एक लोकपाल और राज्य में लोकायुक्तों की नियुक्ति का प्रावधान है.
सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस ए एम खानविलकर देश के अगले लोकपाल हो सकते हैं. सूत्रों के अनुसार लोकपाल की नियुक्ति करने वाली समिति के समक्ष शीघ्र ही जस्टिस खानविलकर के नाम को आगे बढ़ाया जा सकता है. सूत्र बताते हैं कि सरकार में जस्टिस खानविलकर के नाम को लेकर काफी गंभीरता हैं.
मई में सेवानिवृत्त हुआ पूर्व लोकपाल
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 23 मार्च 2019 को देश के प्रथम लोकपाल के रूप में जस्टिस घोष को शपथ दिलाई थी. 70 वर्ष की आयु पूर्ण होने के चलते जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष का कार्यकाल 27 मई 2022 को समाप्त हो चुका हैं.
प्रदीप कुमार मोहंती हैं कार्यवाहक लोकपाल
गौरतलब है कि जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष की सेवानिवृत्ति के बाद से ही देश में लोकपाल के के अध्यक्ष पद पर फिलहाल किसी की भी स्थायी नियुक्ति नहीं की गयी है. राष्ट्रपति ने स्थायी नियुक्ति होने तक लोकपाल के न्यायिक सदस्य प्रदीप कुमार मोहंती को ही कार्यवाहक लोकपाल अध्यक्ष नियुक्त किया हैं.
कौन हैं जस्टिस खानविलकर
30 जुलाई 1957 को पुणे में जन्में जस्टिस खानविलकर ने मुंबई के लॉ कॉलेज से एलएलबी के बाद फरवरी 1982 से वकालत शुरू की थी. 29 मार्च 2000 को उन्हे बॉम्बे हाईकोर्ट में जज नियुक्त किया गया था.
हिमाचल और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश रहने के बाद 13 मई 2016 को सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त किया गया था. सुप्रीम कोर्ट में 6 साल 2 माह और 15 दिन के कार्यकाल के पश्चात 29 जुलाई 2022 को वे सेवानिवृत हुए हैं.
क्या है लोकपाल
देश में भ्रष्टाचार पर निगाह रखने वाली सर्वोच्च संस्था है लोकपाल. सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस पिनाकी चन्द्र घोष इस संस्था में पहले लोकपाल के रूप में नियुक्त किये गये.
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति देश के लिए लोकपाल का चयन करती हैं. प्रधानमंत्री के अलावा इस समिति में लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा में प्रतिपक्ष नेता, देश के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नामांकित सुप्रीम कोर्ट के जज शामिल होते हैं.
देश के लोकपाल पद पर केवल पूर्व मुख्य न्यायाधीश या सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की ही नियुक्ति हो सकती हैं. लोकपाल में अधिकतम आठ सदस्य हो सकते हैं जिनमें से आधे न्यायिक पृष्ठभूमि से होने चाहिए. इनमें से भी कम से कम आधे सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ी जाति, अल्पसंख्यक और महिलाओं में से होने चाहिए.
लोकपाल अधिनियम की धारा 6 के अनुसार अध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल कार्यभार ग्रहण करने की तारीख से अधिकतम पांच वर्ष या 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक जो भी पहले हो तक का हो सकता हैं.
लोकपाल और लोकायुक्त
देश में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए लंबे समय लोकपाल की नियुक्ति की मांग की जाती रही हैं. लोकपाल तथा लोकायुक्त अधिनियम 2013 के जरिए देश में पहली बार केन्द्र के लिये लोकपाल और राज्यों के लिये लोकायुक्त संस्था की व्यवस्था की गयी. ये संस्थाएँ बिना किसी संवैधानिक दर्जे वाले वैधानिक निकाय हैं. ये संस्था कुछ निश्चित श्रेणी के सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करते हैं.
दूसरे देशों में लोकपाल की व्यवस्था
विश्व में लोकपाल संस्था की अधिकारिक शुरुआत वर्ष 1809 में स्वीडन में हुई, 20वीं शताब्दी में एक संस्था के रूप में ओम्बुड्समैन का विकास हुआ. 1962 में न्यूजीलैंड और नॉर्वे ने, 1967 में ग्रेट ब्रिटेन ने ओम्बुड्समैन संस्था को अपनाया. गुयाना ने इसे 1977 में अपनाया. उसके बाद से ही मॉरीशस, सिंगापुर, मलेशिया के साथ हमारे देश में शुरू किया गया.
हमारे देश में पहली बार संवैधानिक ओम्बुड्समैन का पहला विचार वर्ष 1962 में तत्कालीन कानून मंत्री अशोक कुमार सेन ने संसद में पेश किया था. जबकि लोकपाल एवं लोकायुक्त शब्द को सबसे पहले प्रसिद्ध विधिवेत्ता डॉ सिंघवी ने प्रयोग किया.
1968 में लोकसभा में लोकपाल विधेयक पारित हुआ. लेकिन लोकसभा के विघटन के साथ ही यह समाप्त भी हो गया. 2011 तक हमारे देश में इस विधेयक को पारित कराने के लिए 8 बार प्रयास किये गये लेकिन कभी पूर्ण नहीं हो सका.
2011 में प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में मंत्रियों का एक समूह भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने हेतु सुझाव देने तथा लोकपाल विधेयक के प्रस्ताव का परीक्षण करने के लिये गठित किया गया.
अन्ना हजारे का आंदोलन
अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के विरुद्ध भारत आंदोलनष् ने केंद्र में तत्कालीन सरकार पर दबाव बनाया और इसके परिणामस्वरूप संसद के दोनों सदनों में लोकपाल व लोकायुक्त विधेयक 2013 पारित किया गया. 1 जनवरी 2014 को राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ ही 16 जनवरी 2014 से इसे लागू किया गया.
लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 में संशोधन के लिए जुलाई 2016 में संसद में संशोधन विधेयक पारित किया गया. इसके द्वारा यह निर्धारित किया गया कि विपक्ष के मान्यता प्राप्त नेता के अभाव में लोकसभा में सबसे बड़े एकल विरोधी दल का नेता चयन समिति का सदस्य होगा. इसके द्वारा वर्ष 2013 के अधिनियम की धारा 44 में भी संशोधन किया गया जिसमें प्रावधान है कि सरकारी सेवा में आने के 30 दिनों के भीतर लोक सेवक को अपनी संपत्तियों और दायित्वों का विवरण प्रस्तुत करना होगा. संशोधन विधेयक द्वारा 30 दिन की सम ण्सीमा समाप्त कर दी गई.
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