नई दिल्ली: बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड (आईपीएबी) के एक आदेश के खिलाफ एक वकील की याचिका को स्वीकार करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि अदालत फेसबुक पोस्ट को किसी विशेष समय पर किसी व्यक्ति के स्थान के निर्धारक के रूप में नहीं मान सकती है.


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दिल्ली हाईकोर्ट ने क्यों की ऐसी टिप्पणी?
एक मामले में स्थगन की मांग करने के लिए 'जानबूझकर, गलत, गैर जिम्मेदाराना प्रतिनिधित्व' के लिए आईपीएबी द्वारा उनके खिलाफ पारित एक प्रतिकूल आदेश को चुनौती देने वाली वकील की याचिका पर अदालत की यह टिप्पणी आई.


आईपीएबी ने कहा था कि जब इस आधार पर स्थगन की मांग की जा रही थी कि मामले में 'मुख्य वकील' याचिकाकर्ता (वकील) पृथकवास में था और उसका कार्यालय कोविड-19 के कारण बंद था, तो बोर्ड को दिखाया गया कि उसके फेसबुक पोस्ट के मुताबिक वह छुट्टी पर था.


फेसबुक पोस्ट को लेकर अदालत ने आदेश में क्या कहा?
न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर ने इस सप्ताह की शुरुआत में पारित अपने आदेश में कहा कि आईपीएबी 'ऐसी परिस्थितियों में मामले को भारतीय विधिज्ञ परिषद को संदर्भित करने में अनावश्यक रूप से सख्त था'.


अदालत ने कहा कि इस मामले में पहले के आदेशों से यह देखा जा सकता है कि याचिकाकर्ता मुख्य वकील नहीं था और कोई भी प्रतिकूल विचार पारित करने से पहले आईपीएबी को वकील को अपना पक्ष स्पष्ट करने का अवसर देना चाहिए था.


अदालत ने आईपीएबी के आदेश को कर दिया खारिज
न्यायाधीश ने कहा, 'फेसबुक पर पोस्ट को कम से कम एक अदालत द्वारा किसी विशेष समय पर किसी व्यक्ति के स्थान के निर्धारक के रूप में नहीं माना जा सकता है. यहां तक कि अगर अदालत उस संबंध में प्रतिकूल दृष्टिकोण अपनाती है तो इस तरह का दृष्टिकोण अपनाने से पहले वकील को स्थिति स्पष्ट करने का अवसर दिया जाना चाहिए.' अदालत ने आईपीएबी के आदेश को खारिज कर दिया और याचिका को स्वीकार कर लिया.
(इनपुट: भाषा)


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