जजों के रिक्त पदों से लेकर सुप्रीम कोर्ट में आतंरिक सुधार... सीजेआई चन्द्रचूड़ के समक्ष कई चुनौतियां
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ का कार्यकाल 10 नवंबर 2024 तक है. ऐसे में उन्हें देश के अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दों पर निर्णय लेने के लिए पर्याप्त समय मिलेगा.लेकिन सीजेआई के रूप में उनके समक्ष कई चुनौतियां भी हैं.
नई दिल्ली. न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ ने भारत के 50वें सीजेआई के रूप में शपथ ली. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में एक समारोह में उन्हें पद की शपथ दिलाई. उन्होंने न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित की जगह ली है, जिनका कार्यकाल आठ नवंबर को पूरा हुआ. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ 10 नवंबर 2024 तक दो साल के लिए इस पद पर रहेंगे. ऐसे में उन्हें देश के अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दों पर निर्णय लेने के लिए पर्याप्त समय मिलेगा, लेकिन सीजेआई के रूप में उनके समक्ष कई चुनौतियां भी हैं.
1. जजों के रिक्त पदों को भरना
सुप्रीम कोर्ट सहित देशभर के हाईकोर्ट में जजों के रिक्त पदों को भरना उनकी पहली चुनौती हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट में वर्तमान में स्वीकृत 34 पदों पर 28 जज कार्यरत हैं. ऐसे में उन्हें शीघ्र ही रिक्त पदों को भरना होगा, लेकिन इस मामले में केंद्र सरकार का रवैया उनके लिए चुनौती हो सकता है.
2. कॉलेजियम सिस्टम की विश्वश्नीयता
केन्द्रीय विधि मंत्री किरेन रिजिजू पिछले एक माह में चार बार कॉलेजियम सिस्टम की बेहद सख्त शब्दों में आलोचना कर चुके है. ये पहली बार है कि देश का कोई विधी मंत्री ही उस सिस्टम पर सवाल खड़े कर रहा है, जिस सिस्टम के तहत उनके कार्यकाल के प्रथम वर्ष में ही 200 से ज्यादा जजों की नियुक्ति हुई है. विधि मंत्री के बयानों से देशभर में कॉलेजियम सिस्टम पर संशय बनने की चुनौती खड़ी हुई है.
3. अदालतों के डिजिटाइजेशन
कोविड काल के दौरान ई कमेटी चेयरमैन के रूप में जस्टिस चन्द्रचूड़ के प्रयासों से देश की न्यायपालिका को डिजिटाइजेशन में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल हुई है. लेकिन सीजेआई बनने के साथ ही उनसे उम्मीदें बेतहाशा बढ गयी है. निचले स्तर पर अदालतों में विडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा का विस्तार उनकी चुनौती होगी.
4. सोशल मीडिया पर बढ़ते हमले
सुप्रीम कोर्ट से लेकर निचली अदालतों के फैसलो के बाद जजों पर बढ़ते हमलों में सोशल मीडिया बड़ा हथियार बन गया है. सीजेआई बनने से ठीक पूर्व जस्टिस चन्द्रचूड़ भी इसका शिकार हो चुके हैं. ऐसे में आजादी और लोकतंत्र की हिमायत करने वाले सीजेआई चन्द्रचूड़ के समक्ष इन हमलों से न्यायपालिका पर आरोप लगे बिना नियंत्रित करना चुनौती होगी.
5. सुप्रीम कोर्ट में आतंरिक सुधार
देश की सर्वोच्च अदालतों में ऐसा दर्जनों बार हो चुका है जब जज अपने आदेश के अनुसार मुकदमें ही सूचीबद्ध नहीं करा पाए हैं. लेकिन पूर्व सीजेआई यूयू ललित द्वारा शुरू किए गए आंतरिक प्रशासनिक सुधारों को निरंतरता प्रदान करते हुए सिस्टम को बेहद चुस्त बनाना होगा.
6. लाइव-स्ट्रीमिंग
सुप्रीम कोर्ट के ई-समिति के अध्यक्ष के रूप में जस्टिस चंद्रचूड़ ने न्यायिक प्रणाली को और अधिक सुलभ बनाने के लिए अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग और रिकॉर्डिंग के लिए नियमों के ड्राफ्ट का प्रकाशन और उनका निरीक्षण किया था. वे खुद भी स्वप्निल त्रिपाठी मामले ऐतिहासिक फैसले का हिस्सा थे, जिसने लाइव स्ट्रीमिंग की अनुमति दी. लेकिन लाइव स्ट्रीमिंग के साथ अदालत कार्यवाही के विडियो को गलत तरीके से पेश किये जाने की चुनौती भी खड़ी हो गयी है.
7. निचली अदालतों में रिक्तियां और इन्फ्रास्ट्रक्चर
देशभर के हाईकोर्ट के साथ ही निचली अदालतों में भी जजों के पद रिक्त है. राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों में होने वाली न्यायिक सेवा परीक्षा हमेंशा ही विवादों में रही है. लंबे समय से आईएएस की तर्ज पर जजों की नियुक्ति के लिए केंद्रीकृत परीक्षा की मांग की जाती रही है. ऐसे में सीजेआई चन्द्रचूड़ के समक्ष निचली अदालतों में न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति भी एक बड़ी चुनौती होगी.
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