नई दिल्ली: जस्टिस नाथुलापति वेकट रमन्ना को 2 फरवरी 2017 को सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया था. सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति से पहले ही विवाद हमेशा ही जस्टिस रमन्ना का लगातार पीछा करते रहे. सीजेआई बनने के बाद जस्टिस रमन्ना कई मौके पर सरकार के सामने खड़े नजर आए. ये अलग बात है जस्टिस रमन्ना के कार्यकाल में देश के कई महत्वपूर्ण मामलों में देरी से सुनवाई एक क्रम बना रहा है लेकिन सुनवाई के दौरान मौखिक टिप्पणियों और अपने भाषणों के जरिए वे दबाव भी बनाते रहे. सीजेआई रमन्ना की सेवानिवृति से जुड़े कुछ विवाद और महत्वपूर्ण फैसले को जानिए..


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महत्वपूर्ण फैसले
जस्टिस रमन्ना कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं, जिनमें से कुछ को उन्होंने खुद लिखा है. उनके फैसले न्यायिक अनुशासन की मिसाल और दूरगामी नतीजे दर्शाने वाले हैं.


1. इंटरनेट एक मौलिक अधिकार
10 जनवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रशासित प्रदेश जम्मू.कश्मीर में इंटरनेट पर पाबंदी के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए इंटरनेट को संविधान के अनुच्छेद-19 के तहत लोगों का मौलिक अधिकार बताया.


अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ मामले में जस्टिस रमन्ना की अध्यक्षता में बेंच ने इस फैसले में जम्मू कश्मीर में दूरसंचार ब्लैकआउट को लेकर केन्द्र सरकार की खिंचाई की गई है. बेंच ने कहा कि इंटरनेट को अनिश्चितकाल के लिए बंद नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने सरकार से सभी पाबंदियों की 7 दिन के अंदर समीक्षा करने और इसके आदेश को सार्वजनिक करने के निर्देश दिए.



2. सीजेआई कार्यालय आरटीआई के अधीन
सीजेआई रमन्ना उस बेंच का भी हिस्सा रहे हैं जिसने देश के मुख्य न्यायाधीश कार्यालय को भी सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत लाने का फैसला सुनाया था. तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ जस्टिस एन वी रमन्‍ना, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना शामिल थे. 14 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट की इस बेंच ने 3 जजों के बहुमत से फैसला सुनाया था.


3. दागी सांसद-विधायकों के मामलों की सुनवाई
जस्टिस रमन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने ही दागी सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित कई मामलों पर मामलों पर फास्टट्रैक सुनवाई की.


4. गृहणियों के योगदान को मान्यता
जस्टिस एन वी रमन्ना ने मोटर दुर्घटना क्षतिपूर्ति दावे के मामले में की गई एक अपील पर फैसला सुनाते हुए कहा कि हमारे समाज में एक धारणा बन गई है कि गृहणियां काम नहीं करती हैं या वे घर में आर्थिक मूल्य नहीं जोड़ती हैं. यह हमारे समाज व्याप्त एक एक बड़ी समस्या है और इसे दूर किया जाना चाहिए.


5. दागी सांसदों-विधायकों के मामलों की सुनवाई फास्टट्रेक में
जस्टिस एन वी रमन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत सरकार मामले में निर्वाचित दागी सांसदों और विधायकों से संबंधित आपराधिक मामलों की जांच फास्टट्रेक अदालतों में करने के निर्देश दिए. जांच और ट्रायल में देरी के मुद्दे को लेकर दायर इस याचिका पर कई निर्देश दिए.


6. दलबदल विरोधी कानून में विधायक का इस्तीफा अयोग्यता नहीं
जस्टिस एन वी रमन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने दलबदल विरोधी कानून को लेकर महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा कि एक विधायक  संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत परिणामों से बचने के लिए केवल दलबदल के लिए लिए इस्तीफे की पेशकश नहीं कर सकता है. जस्टिस रमन्ना ने श्रीमंत बालासाहेब पाटिल बनाम कर्नाटक विधान सभा के फैसले में कहा कि विधायक का इस्तीफा अयोग्यता के प्रभाव को प्रभावित नहीं करेगा यदि इस्तीफे की तारीख से पहले दलबदल हुआ हो.


7. बहुमत साबित करने के लिए फ्लोर टेस्ट जरूरी
जस्टिस एन वी रमन्ना ने शिव सेना बनाम भारत संघ मामले में गैरकानूनी प्रथाओं जैसे कि हॉर्स ट्रेडिंग पर रोक लगाने और लोकतंत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए फ्लोर टेस्ट को जरूरी बताया. 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के बाद बने राजनीतिक लॉगजाम के मद्देनजर ये आदेश जारी किया.


8. बिल्डर को उचित समय में देना होगा फ्लैटों का कब्जा
जस्टिस रमन्ना की अध्यक्षता में बेंच ने बिल्डरों द्वारा फ्लैट का कब्जा देने में देरी को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि एक व्यक्ति को आवंटित फ्लैट के कब्जे के लिए अनिश्चितकाल तक इंतजार नहीं कराया जा सकता है और बिल्डर को उचित समय के भीतर फ्लैट सौंपना होगा. फॉर्च्यून इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड, हिकॉन इन्फ्रास्ट्रक्चर और अन्य बनाम ट्रेवर डी लिमा के मामले में कहा कि यह निर्णय कि समय की उचित अवधि के भीतर फ्लैट सौंपने में इस तरह की विफलता सेवा की कमी का कारण होगी.


9. सरफेसी कानून और किरायेदारी कानूनों के बीच स्पष्टता
जस्टिस रमन्ना की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने बजरंग श्यामसुंदर अग्रवाल बनाम सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया मामले में किरायेदारी और ऋण वसूली के कानूनों के बीच परस्पर संबंध को स्पष्ट करते हुए कहा कि सरफेसी अधिनियम के तहत वसूली की कार्यवाही से किरायेदार को सरंक्षण नही दी जा सकता. बेंच ने साफ कहा कि पट्टा अवधि समाप्त होने के बाद भी एक किरायेदार द्वारा कब्जा रखना गैर-कानूनी हैं.


10. दया याचिका से पूर्व एकान्त कारावास गैर कानूनी
जस्टिस रमन्ना की बैंच ने मौत की सजा पाए व्यक्ति के मामले में फैसला देते हुए कहा कि दया याचिका के खारिज होने से पहले ही मौत की सजा पाए व्यक्ति को एकान्त कारावास में रखना गैर-कानूनी हैं. यूनियन ऑफ इंडिया बनाम धर्मपाल मामले में कोर्ट ने इसे मौत की सजा से अलग दूसरी सजा बताते हुए कहा कारावास अवैध है और कानून के तहत किसी व्यक्ति को अलग से और अतिरिक्त सजा देना गलत हैं.


11. गुप्त मतदान का सिद्धांत
सुप्रीम कोर्ट ने लक्ष्मी सिंह और अन्य बनाम रेखा सिंह और अन्य मामले में गुप्त मतदान के सिद्धांत को संवैधानिक लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण बताया था. जस्टिस रमन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि चुनाव कानून के बुनियादी सिद्धांतों में से एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना और चुनाव की शुद्धता को सुनिश्चित करता है. मतपत्रों की गोपनीयता का सिद्धांत संवैधानिक लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण है. जिसका उद्देश्य मजबूत लोकतंत्र के लक्ष्य को प्राप्त करना है.


12. पेगासस मामले में कमेटी का गठन
27 अक्टूबर 2021 को बहुचर्चित पैगासस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस जासूसी मामले में मामले की जांच के लिए एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया. जस्टिस रमन्ना की अध्यक्षता वाली 3 सदस्य बेंच ने कहा कि हम केन्द्र सरकार की ओर से खुद एक्सपर्ट कमेटी बनाने के सुझाव को खारिज करते हैं. कोर्ट ने अपनी तरफ से 3 सदस्यीय कमेटी गठित की जिनमें जस्टिस आर वी रवीन्द्रन, आलोक जोशी और संदीप ओबरॉय को शामिल किया गया.


13. स्पीडी ट्रायल के मौलिक अधिकार का उल्लंघन यूएपीए केस में संवैधानिक अदालतों के लिए जमानत देने का आधार
जस्टिस एान वी रमन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने भारत सरकार बनाम के नजी़ब मामले में स्पष्ट किया कि यूएपीए की धारा 43 डी संवैधानिक न्यायालयों की क्षमता को मौलिक ट्रायल के उल्लंघन के आधार पर जमानत देने की क्षमता से बाहर नहीं करती है. कोर्ट ने कहा कि ऐसे प्रावधान का महत्व कम होगा, जहां ट्रायल के किसी उचित समय के भीतर पूरा होने की संभावना नहीं है और पहले से ही निर्धारित सजा अवधि के पूरे होने की संभावना काफी हद तक बढ़ गई है.


विवाद- सीजेआई एन वी रमन्ना अपने कार्यकाल के दौरान टिप्पणियों के लिए बेहद चर्चित रहें. सीजेआई बनने से पूर्व उनके साथ कई विवाद भी जुड़े..


1). जब सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई याचिका
जस्टिस एन वी रमन्ना द्वारा अपने कॉलेज समय के दौरान किए गए एक विरोध प्रदर्शन के मुकमदें को लेकर पहली बार विवादों में आए थे. जस्टिस रमन्ना वर्ष 1981 में नागार्जुन यूनिवर्सिटी में छात्र हुआ करते थे. उस दौरान यूनिवर्सिटी के बाहर बस स्टॉप की मांग को लेकर हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट की एक बस में तोड़फोड़ की गई थी. बस में तोड़फोड़ के मामले में जस्टिस रमन्ना के ख़िलाफ़ आपराधिक मामला दर्ज हुआ. इस मामले को लेकर दो वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर कहा था जस्टिस रमन्ना को सुप्रीम कोर्ट के जज के पद से हटाया जाने की मांग की.
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस रमन्ना के खिलाफ दायर इस याचिको खारिज करते हुए दोनों वकीलों पर जुर्माना लगाया.


2). पूर्व जस्टिस चेलमेश्वर का पत्र
मार्च 2017 में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस चेलमेश्वर ने एक पत्र लिख कर जस्टिस एनवी रमन्ना और एन चंद्रबाबू नायडू के बीच रिश्तों को लेकर गंभीर आरोप लगाए थे. उस समय जस्टिस चेलमेश्वर सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति करने वाले कॉलेजियम के सदस्य थे. अपने पत्र में जस्टिस  चेलमेश्वर ने लिखा था कि अविभाजित आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति के बारे में एनवी रमन्ना की रिपोर्ट और पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की टिप्पणियां एक समान थी. पत्र में जस्टिस चेलमेश्वर ने लिखा कि जज और आंध्र प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री के बीच नज़दीकी के बारे में सभी जानते हैं.


मुख्यमंत्री और माननीय जज की टिप्पणी में इतनी समानताएं हैं कि सच को साबित करने की जरूरत नहीं है. इस पत्र के चलते सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस एनवी रमन्ना की दी गई रिपोर्ट को खारिज करते हुए आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में नए जजों की नियुक्ति की. बाद में एक अखबार को दिए इंटरव्यू में जस्टिस रमन्ना ने कहा था कि छह वकीलों पर मेरी राय मांगी थी जो मैंने किया. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के मुख्यमंत्रियों ने क्या राय दी है इसके बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है.


3). मुख्यमंत्री जगन रेड्डी के पत्र और आरोप
जस्टिस रमन्ना के देश का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त होने से कुछ सप्ताह पूर्व आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने एक पत्र के जरिए आरोप लगाए थे. तत्कालिन त के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े को भेजे गये पत्र में कहा गया था कि जस्टिस रमन्ना राज्य की न्यायपालिका में दखल देकर उनकी सरकार गिराने की कोशिश कर रहे हैं.


आठ पेज के इस पत्र में मुख्यमंत्री ने लिखा था कि टीडीपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू से जस्टिस रमन्ना की नज़दीकी जगज़ाहिर है. जस्टिस रमन्ना हाईकोर्ट की बैठकों को प्रभावित करते हैं. इसमें कुछ माननीय जजों के रोस्टर भी शामिल है. बाद में एक एक संवाददाता सम्मेलन में रेड्डी राज्य सरकार ने इस पत्र की प्रति और कथित अहम सबूत कहे जाने वाले दस्तावेजों को मीडिया के सामने रखे थे. एक गोपनीय जांच के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यमंत्री रेड्डी के आरोपों को खारिज कर दिया था.


कमजोर पक्ष-अधिकांश महत्वपूर्ण फैसलों का लंबित होना
सीजेआई एन वी रमन्ना के समय में देश के कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई लंबित रही. तीन दर्जन से अधिक संवैधानिक मामलों में कोई निर्णय नहीं लिया जा सका. आर्टिकल 370, चुनावी बाण्ड, हिजा़ब मामला, यूएपीए केस जैसे केसों में भी सुनवाई बेहद धीमी रही. जजों की नियुक्ति के मामले में सीजेआई रमन्ना की तीव्रता संवैधानिक मामलों की सुनवाई में आते आते बेहद धीमी हो जाती है.


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