नई दिल्ली: देश के सबसे बड़े अधिवक्ताओं में शुमार मुकुल रोहतगी भारत के अगले अटॉर्नी जनरल बनेंगे. केंद्र ने मुकुल रोहतगी को 14वें अटॉर्नी जनरल बनाये जाने को लेकर हरी झंडी दे दी है जो कि एक अक्टूबर से अपना दूसरा कार्यकाल संभालते नजर आयेंगे.


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मौजूदा समय में केके वेणुगोपाल इस पद पर काम कर रहे थे जिनका कार्यकाल 30 सितंबर को खत्म हो रहा है, जिसके बाद वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी इस पद का कार्यभार संभालेंगे. बता दें कि मुकुल रोहतगी इससे पहले भी साल 2014 और 2017 में बतौर एटॉर्नी जनरल अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं. 


क्या होता अटॉर्नी जनरल का पद


अटॉर्नी जनरल देश का सबसे बड़ा कानून अधिकारी होता है. संविधान के अनुच्छेद 76 में भारत के अटॉर्नी जनरल के बारे में बताया गया है. अटॉर्नी जनरल भारत के सेंट्रल या फेडरल एग्जीक्यूटिव यानी संघीय कार्यपालिका का भी एक अहम अंग है. बता दें कि संघीय कार्यपालिका राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद और अटॉर्नी जनरल से मिलकर बनती है. भारत सरकार के मुख्य कानून सलाहकार होने के नाते अटॉर्नी जनरल सभी कानूनी मामलों पर केंद्र सरकार को सलाह देने का कार्य करता है. 


कैसे होती है नियुक्ति


अटॉर्नी जनरल को सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है. इसके अलावा अटॉर्नी जनरल उस व्यक्ति को नियुक्त किया जाता है जो भारत का नागरिक हो, उसे किसी हाई कोर्ट में जज के तौर पर काम करने का 5 साल का और वकील के तौर पर 10 साल तक काम करने का एक्सपीरियंस हो साथ ही वह सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त होने की योग्यता रखता हो. संविधान में अटॉर्नी जनरल का कार्यकाल तय नहीं किया गया है. 


क्या है अधिकार और शक्तियां


अटॉर्नी जनरल ऐसे कानूनी मामले पर सरकार को सलाह देता है जो राष्ट्रपति द्वारा उसे भेजे जाते हैं. कानूनी रुप से ऐसे कर्तव्यों का पालन करना जो राष्ट्रपति द्वारा उसे सौंपे जाते हैं. अटॉर्नी जनरल सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में सरकार की तरफ से सभी कानूनी मामलों की पैरवी करता है. साथ ही संविधान के अनुच्छेद 143 के अनुसार अटॉर्नी जनरल सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति की तरफ से सरकार का प्रतिनिधित्व करता है. केंद्र सरकार के कानूनी सलाहकार के रूप में भारत के अटॉर्नी जनरल को भारत के किसी भी क्षेत्र में किसी भी अदालत में सुनवाई का अधिकार होता है


अटॉर्नी जनरल को वोट देने के अधिकार के बिना संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक और किसी भी संसदीय समिति की कार्यवाही में बोलने और भाग लेने का अधिकार है. अटॉर्नी जनरल को वो सभी विशेषाधिकार और छूट का हकदार होता है जो सांसदों को मिलते हैं. इसके अलावा अगर वह चाहे तो अलग से भी वकालत की प्रैक्टिस जारी रख सकता है. 


क्या है सीमाएं


अटॉर्नी जनरल भारत सरकार के विरुद्ध कोई सलाह या विश्लेषण नहीं कर सकता है. जिस मामले में उसे भारत सरकार की ओर से पेश होना है, वह उस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता है. भारत सरकार की अनुमति के बिना वह किसी आपराधिक मामले में किसी व्यक्ति का बचाव नहीं कर सकता है. भारत सरकार की अनुमति के बिना वह किसी परिषद या कंपनी के निदेशक का पद ग्रहण नहीं कर सकता है. 


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