नई दिल्ली, राजस्थान में एक सरकार स्कूल की 11वीं की छात्रा के साथ दुष्कर्म के मामले में आरोपी ​शिक्षक और परिजनों के बीच हुए समझौते को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया हैं. साथ ही इस मामले के मुख्य आरोपी सरकारी स्कूल के शिक्षक और दुष्कर्म पीड़िता छात्रा के पिता को भी पक्षकार बनाने के आदेश जारी करते हुए नोटिस जारी किए हैं. सीजेआई यूयू ललित और जस्टिस जे बी पारदीवाला की बेंच ने ये आदेश एक ग्रामीण द्वारा लिखे गए पत्र पर दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए दिए हैं.


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आरोपी है सरकारी स्कूल का शिक्षक


6 जनवरी 2022 को राजस्थान के एक सरकारी स्कूल की छात्रा के साथ शिक्षक द्वारा कक्षा के दौरान यौन उत्पीड़न करने का मामला सामने आया था. पीड़ित छात्रा के पिता ने आरोपी शिक्षक के खिलाफ आईपीसी की धारा 354 के साथ साथ पॉक्सो की धाराओं में मामला दर्ज कराया था. इस मामले में पुलिस द्वारा आरोपी शिक्षक को कभी गिरफतार ही नहीं किया गया. इसी बीच आरोपी शिक्षक ने पीड़ित छात्रा के पिता के साथ समझौता कर राजस्थान हाईकोर्ट में याचिका दायर की. राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस फरजंद अली की एकलपीठ ने छात्रा के पिता और आरोपी शिक्षक के बीच हुए समझौते के आधार पर एफआईआर रद्द करने के आदेश दिए थे.


कोर्ट में किया विरोध, लेकिन अपील नहीं
पॉक्सो जैसे गंभीर मामलों में पीड़ित के परिजनों द्वारा आरोपी के साथ मिलकर किए गए समझौते के आधार पर राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा एफआईआर रद्द करने के फैसले से आहत राजस्थान के एक नागरिक रामजीलाल बैरवा ने देश के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित को पत्र लिखकर हस्तक्षेप करने की गुहार लगायी. याचिका में कहा गया कि इस मामले में राजस्थान सरकार के लोक अभियोजक ने कोर्ट में विरोध किया, लेकिन आदेश के खिलाफ सरकार ने अपील नहीं की.



दशहरा अवकाश से पूर्व सर्वोच्च अदालत ने अपराधिक मामले में पत्र के आधार पर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. सीजेआई यूयू ललित और जस्टिस की बेंच के समक्ष याचिकाकर्ता की ओर से एओआर एडवोकेट विकास जैन, चेतन बैरवा ने पक्ष रखते हुए कहा कि राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा दिए गए आदेश में भी कहा गया हैं कि लोक अभियोजक की ओर से इसका विरोध किया गया था. लेकिन हाईकोर्ट ने सर्वोच्च अदालत के ज्ञान सिंह बनाम पंजाब राज्य के फैसले के आधार पर अपना आदेश पारित किया.


क्या कहा था राजस्थान हाईकोर्ट ने
राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने आदेश के समर्थन में कहा कि यह देखा गया है कि ऐसे मामलों में, अभियोजन कमजोर अभियोजन बन जाता है और इस तरह के कमजोर अभियोजन का पीछा करना समय और ऊर्जा की बर्बादी होगी. यह शांति के समझौते और बाधा को भी अस्थिर करेगा. लेकिन हाईकोर्ट ने अपने आदेश में ये भी कहा कि हालांकि अपराध सुलझने योग्य नहीं हैं.


हाईकोर्ट ने आदेश में कहा कि अपराध सुलझाने योग्य नहीं होने के बावजूद लेकिन पार्टियों ने विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया है और यह अनिवार्य रूप से पार्टियों के बीच है जो सार्वजनिक शांति और शांति को प्रभावित नहीं कर रहा है, इसलिए सद्भाव बनाए रखने और पार्टियों के बीच विवाद को अंततः हल करने के लिए, यह उचित समझा जाता है एफआईआर और उसके अनुसरण में की गई सभी आगे की कार्यवाही को रद्द किया जाए.


हाईकोर्ट ने कहा कि गैर-शमनीय अपराधों में भी, मामले के दोनों पक्षों के बीच किए गए समझौते के आधार पर कार्यवाही को रद्द करने के लिए न्यायालय की प्रक्रिया को लागू किया जा सकता हैं.


सरकारी शिक्षक का अपराध समाज के खिलाफ
हाईकोर्ट के आदेश का विरोध करते हुए याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इस मामले में एक सरकारी शिक्षक द्वारा किया गया अपराध आईपीसी की धारा 354 और पोक्सो अधिनियम के प्रावधानों के तहत दंडनीय होने के साथ साथ स्वभाव से समाज के खिलाफ है और गैर-शमनीय हैं. इसके बावजूद हाईकोर्ट द्वारा इसे रद्द कर दिया गया हैं. हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द करते हुए ये संज्ञान में नहीं लिया कि उसके आदेश से समाज पर विपरीत असर होगा.


इस मामले में चूंकि आरोपी के साथ ही पीड़ित के परिजन भी समझौते में शामिल हैं ऐसे में उनके द्वारा हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील की उम्मीद नहीं की जा सकती. लेकिन एक राज्य में रहने वाले व्यक्तियों के हितों के संरक्षक के तौर पर राजस्थान सरकार ने भी हाईकोर्ट के ​आदेश के खिलाफ अपील नहीं करने का निर्णय लिया, जो कि उचित नहीं हैं.


पत्र याचिका भेजने वाले याचिकाकर्ता ने अपने पक्ष में कहा हैं कि ऐसी परिस्थितियों में जब पीड़ित के परिजन और खुद सरकार अपनी जिम्मेदारियों से दूर हो रही हो, एक आम नागरिक के रूप में उसकी जिम्मेदारी हैं कि वह संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एक गंभीर मुद्दे को देश की सर्वोच्च अदालत के सामने रखें.


पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल
याचिकाकर्ता ने 31 जनवरी 2022 को हुए समझौते के बाद 4 फरवरी 2022 को हाईकोर्ट का फैसला आने पर भी सवाल खड़े किए हैं. याचिकाकर्ता ने कहा कि कैसे संभव हैं कि 6 जनवरी की घटना की दो दिन बाद 8 जनवरी एफआईआर दर्ज होती हैं. मामले में 31 जनवरी तक आरोपी शिक्षक के खिलाफ पुलिस कोई कार्रवाई नहीं करती हैं. लेकिन 31 जनवरी को आरोपी शिक्षक और पीड़ित के पिता के बीच हुए समझौते के आधार पर 2 फरवरी को हाईकोर्ट में याचिका पेश करने के दो दिन बाद ही 4 फरवरी 2022 को एफआईआर रद्द करने का आदेश पारित हो जाता हैं.


क्या आपराधिक मामले में जनहित याचिका हो सकती हैं दायर
पत्र याचिका पर सुनवाई करते हुए सीजेआई यूयू ललित की बेंच ने आपराधिक मामलों में जनहित याचिका के आधार पर सवाल खड़े किए. सीजेआई की बेंच ने कहा कि क्या आपराधिक मामले में जहां पर याचिकाकर्ता किसी तरह से पक्ष से जुड़ा नहीं हो, उसकी प्रार्थना पर विचार किया जाना चाहिए.


सीजेआई ललित ने कहा कि इस याचिका में उठाए गए मामले के गुण-दोष को छूने वाले मुद्दों के अलावा और क्या सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट ने अपनी शक्ति का सही ढंग से प्रयोग किया गया हैं या नहीं. इन बिंदुओं पर विचार किए जाने से पूर्व इस बिंदु पर विचार किया जाना आवश्यक हैं कि क्या एक आपराधिक मामले में एक आम नागरिक द्वारा अनुच्छेद 32 के तहत दायर की याचिका को जारी रखा जा सकता हैं, इस पर विचार किए जाने की जरूरत हैं.


कोर्ट की सहायता के लिए न्याय मित्र की नियुक्ति
सीजेआई की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा इस मामले में की गयी मांग भी एक​ मुद्दा हैं जिस पर विचार किया जाना जरूरी हैं.सीजेआई की बेंच ने इस मामले में उठे महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दे पर सर्वोच्च अदालत की सहायता करने के लिए सीनियर एडवोकेट आर बसंत को न्यायमित्र नियुक्त किया हैं. अदालत ने सीनियर एडवोकेट को अपनी पसंद का एओआर चुनने भी आजादी दी हैं.


सीजेआई की बेंच ने इस मामले में राजस्थान सरकार, राजस्थान के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक मामले के मुख्य आरोपी और पीड़ित छात्रा के पिता को नोटिस जारी करते हुए 31 अक्टूबर को सुनवाई के लिए तय किया हैं.