नई दिल्ली: देश की सर्वोच्च अदालत ने एक बीमा दावे में मृतक के परिजनों के उस दावे का समर्थन किया है कि अगर मृतक युवक जीवित रहता, तो वह अपने सहपाठियों के बराबर वेतन या कम से उनको मिल रही राशि के निकट की राशि का वेतन प्राप्त कर रहा होता. सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास निवासी एस वसंथी व अन्य की ओर से दायर अपील को स्वीकार करते हुए मोटर दुर्घटना दावा ट्रिब्यूनल पूनमल्ली द्वारा मुआवजे के तौर पर जारी किए गए साढ़े सात लाख के बीमा अवार्ड को बढ़ाकर करीब 46.11 लाख कर दिया है.


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जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सी टी रविकुमार की बेंच ने एमएसीटी ट्रिब्यूनल और मद्रास हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई करते हुए ये फैसला दिया है. बेंच ने कहा कि दुर्घटना के समय मृतक युवक की आयु 23 वर्ष थी और वह एक योग्य इंजीनियरिंग स्नातक होते हुए भी अपनी पेशेवर क्षमताओं को आगे बढ़ाने के लिए एसआरएम विश्वविद्यालय में एमबीए की डिग्री हासिल कर रहा था.


बेंच ने कहा कि मृतक के सहपाठियों के रोजगार की संभावनाओं और दुर्घटना के समय उसकी कम उम्र को लेकर ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट ने बीमा क्लेम की गणना करने में गलती की है. कोर्ट ने कहा कि यदि मृतक को दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना का सामना नहीं करना पड़ा होता, तो वह निश्चित रूप से अपने सहपाठियों के बराबर वेतन या कम से कम उक्त राशि के करीब एक राशि प्राप्त कर रहा होता.


कॉलेज बस से हुई थी दुर्घटना
22 मई, 2010 को एस सत्यनारायण अपनी बजाज एवेंजर मोटरसाइकिल से GST रोड, तांबरम से जा रहे थे. इसी दौरान पीछे से आ रही कॉलेज की एक बस ने उसे चपेट में ले लिया, जिससे सत्यनारायण की मौके पर ही मौत हो गयी. मृतक सत्यनारायण अपने माता पिता की इकलौती संतान थे. घटना के समय मृतक की आयु 23 वर्ष थी और वह इंजीनियरिंग स्नातक के पश्चात SRM विश्वविद्यालय से MBA कर रहा था.


मृतक के माता पिता ने अपने बेटे की मृत्यु को लेकर 30 लाख रुपये का बीमा क्लेम का दावा किया. परिजनों के दावे पर एमएसीटी ट्रिब्यूनल ने जहां 7.48 लाख का मुआवजे देने के आदेश दिए, वहीं मद्रास हाईकोर्ट ने इसे बढ़ाकर 16.27 लाख किया.


ट्रिब्यूनल ने कहा- वो छात्र है..
मोटर दुर्घटना दावा ट्रिब्यूनल पूनमल्ली ने मृतक को एमबीए पाठ्यक्रम के दूसरे वर्ष का छात्र माना और कहा कि घटना के समय वह कोई रोजगार में नहीं था. ट्रिब्यूनल ने अपने फैसले में मृतक के लिए भविष्य की काल्पनिक मासिक आय 7 हजार रुपये प्रतिमाह तय करते हुए मुआवजे के रूप में 7.48 लाख का भुगतान करने के आदेश दिए. साथ ही याचिका दायर करने की तारीख से वास्तविक भुगतान होने तक 7.5% प्रति वर्ष ब्याज देने के आदेश दिए.


वहीं ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर मद्रास हाईकोर्ट ने मृतक की भविष्य के लिए काल्पनिक मासिक आय को 7 हजार से बढ़ाकर 10 हजार करने के साथ ही 16.27 लाख का मुआवजा देने के आदेश दिए. हाईकोर्ट ने भी बीमा क्लेम का भुगतान होने तक 7.5% प्रति वर्ष ब्याज देने के आदेश दिए.


सहपाठियों के वेतन प्रमाण पत्र किए पेश
मृतक के परिजनों की ओर से ट्रिब्यूनल और मद्रास हाईकोर्ट के आदेशों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर चुनौती दी गयी. अपील में कहा गया कि मृतक के भविष्य की काल्पनिक मासिक आय की गणना करने में ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट दोनों ने ही गलती की है. अपील में कहा गया कि मृतक सत्यनारायण उनकी एकलौती संतान थी और उनकी पूर्ण निर्भरता उसके भविष्य के रोजगार पर आधारित थी.


परिजनों की ओर से अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि मृतक एस. सत्यनारायण एक इंजीनियरिंग स्नातक होने के बावजूद अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए एमबीए की डिग्री हासिल कर रहा था. यदि वह जीवित होता तो अच्छी वेतन वाली नौकरी हासिल करता.


अपने दावे में परिजनों की ओर से ये तर्क पेश किया गया कि उनके मृतक बेटे के साथ अध्ययनरत दूसरे दो सहपाठियों ने देश के अग्रणी संस्थानों में नौकरी हासिल कर वे औसतन 40 हजार प्रतिमाह का वेतन पा रहे हैं. परिजनों ने अपने पक्ष दो सहपाठियों के वेतन प्रमाण पत्र और उनके शपथ पत्र भी पेश किए.


इकलौती संतान का दर्द
जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सी टी रविकुमार की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट ने घटना के समय मृतक की आयु, उसकी योग्यता और माता पिता की एकलौती संतान होने को उचित महत्व नहीं देने में गलती की है.


बेंच ने कहा कि किसी भी माता-पिता को अपने बच्चों की मृत्यु का कष्ट नहीं उठाना चाहिए और अगर उनकी इकलौती संतान की बात हो तो यह और भी बहुत बड़ी बात हो जाती है. बेंच ने सहपाठियों के वेतन, मृतक के एकलौती संतान होने के आधार पर काल्पनिक मासिक आय बढाकर 30 हजार प्रतिमाह करते हुए मुआवजे राशि को बढाकर 46.11 लाख कर दिया.


सुप्रीम कोर्ट ने अप्रार्थीगण कॉलेज व अन्य को आदेश दिए हैं कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार बढ़े हुए मुआवजे की राशि तीन माह में 7.5% प्रति वर्ष की दर के ब्याज के साथ अपीलकर्ता परिजनों को भुगतान करें.


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