नई दिल्ली: जस्टिस उदय उमेश ललित (CJI UU LALIT) ने  27 अगस्त 2022 को भारत के 49वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदभार ग्रहण किया था. सीजेआई ललित 9 नवंबर को 65 वर्ष की आयु को प्राप्त करने वाले हैं और उससे एक दिन पूर्व वे 8 नवंबर को देश के मुख्य न्यायाधीश पद से सेवानिवृत्त होंगे. उनकी सेवानिवृति में एक सप्ताह से भी कम समय रह गया है. ऐसे में देश के 49 वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में उन्हे मिले 74 दिन के कार्यकाल को लेकर यहीं कहा जा सकता है कि उन्होंने बड़ी लकीर खींचने की कोशिश की है.


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जो कहा था…
पूर्व सीजेआई एन वी रमन्ना के सेवानिवृति से पूर्व 26 अगस्त 2022 को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से सुप्रीम कोर्ट परिसर में विदाई समारोह आयोजित किया गया था. समारोह को संबोधित करते हुए सीजेआई ललित ने सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों को सूचीबद्ध करने के लिए 3 अहम सुधारों का वादा किया था. इनमें मुकदमे की समय से लिस्टिंग, अर्जेंट मामलों की मेंशनिंग के लिए नया सिस्टम बनाने और ज्यादा संवैधानिक पीठ बनाने की बात कही थी.


संबोधन में सीजेआई ललित ने केसों की लिस्टिंग को और अधिक पारदर्शी बनाने का लक्ष्य तय करते हुए कहा था- 'मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि हम लिस्टिंग को यथासंभव सरल, स्पष्ट और पारदर्शी बनाने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे.'


क्या वो कर दिखाया?
सीजेआई यूयू ललित दो माह बाद शुक्रवार 4 नवंबर दोपहर को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के उसी मंच पर खड़े होंगे जहां उन्होने दो माह पूर्व अपने लक्ष्य तय किए थे और अहम सुधारों का वादा किया था.


सीजेआई के रूप में जस्टिस यूयू ललित का कार्यकाल 8 नवंबर तक 74 दिन का है. सीजेआई के इस छोटे से कार्यकाल के दौरान सर्वोच्च अदालत में 34 दिन अवकाश के रहे, वहीं 40 दिन कार्यदिवस रहे. अक्टूबर माह में ही दशहरा और दीपावली के मौके पर 15 दिन अवकाश के रहे. सीजेआई ललित के कार्यकाल के अंतिम कार्यदिवस 8 नवंबर को भी अवकाश रहेगा.


शांत, सौम्य और सरल व्यवहार के साथ चेहरे पर सदा मुस्कान रखने वाले सीजेआई ललित क्या अपने छोटे से कार्यकाल में अपने दृढ़ फैसलों बड़ी लकीर खींचने में कामयाब रहे है. इस सवाल पर कई कानूनविद कहते हैं सीजेआई का कार्यभार संभालने के बाद से ही उन्होंने ज्यादा से ज्यादा मुकदमों विशेषकर पुराने लंबित मुकदमों को सुनवाई पर लगाने और उनका निस्तारण सुनिश्चित करने की दिशा में तेजी से काम शुरू किया, और वे कुछ हद तक सफल भी रहें.


आईए जानते है सीजेआई ललित के कार्यकाल की 10 बड़ी बातें


1). आंतरिक प्रशासन में व्यापक सुधार
सीजेआई ललित ने पदभार ग्रहण करने के साथ ही देश की सर्वोच्च अदालत की रजिस्ट्री में पारदर्शिता लाने की शुरुआत की. इसके लिए सीजेआई ने कई सख्त फैसले भी लिए. पुराने मुकदमों की सुनवाई की एक नई परिपाटी शुरू करने के उद्देश्य से सीजेआई ललित ने सर्वप्रथम लंबे समय से सुप्रीम कोर्ट में कार्यरत अधिकारियों की छंटनी शुरू की. बेहतर कार्य करने वाले देश के अलग-अलग हिस्सों और विभागों से अधिकारियों को अपनी टीम में शामिल किया. तो वहीं शिकायत वाले अधिकारियों को बदला भी. 


सीजेआई बनने के बाद जस्टिस ललित ने नालसा के दौरान उनकी टीम में बेहतरीन प्रयास करने वाले अधिकारियों को नहीं भूले. कर्नाटक में विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव रहे एच शशिधर सेठी को प्रोत्साहन के रूप में सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री में जगह दी. तो वहीं नालसा के डायरेक्टर रहें न्यायिक अधिकारी पुनीत सहगल को भी रजिस्ट्री में शामिल किया. न्यायिक अधिकारी पुनीत सहगल को सुप्रीम कोर्ट में केसों की लिस्टिंग करने में अहम जिम्मेदारी सौंपी गयी.


सुप्रीम कोर्ट में स्थायी किये जा चुके न्यायिक अधिकारियों को भी सीजेआई ललित ने उनके मूल स्थान पर भेजने में कोई राहत नहीं दी. सुप्रीम कोर्ट के तीन रजिस्ट्रारों को CJI ललित ने अलग-अलग आदेशों के जरिये उनके मूल कैडर और संगठनों में वापस भेज दिया है. यहां तक कि रजिस्ट्रार राजेश गोयल की सेवाएं भी दिल्ली हाईकोर्ट को लौटा दी. जो कि पिछले छह-सात वर्षों से सुप्रीम कोर्ट में प्रतिनियुक्ति पर थे और बाद में उन्हें स्थायी कर्मचारी के तौर पर समाहित कर लिया गया था. ऐसा ही उन्होंने आल इंडिया रेडियो से आए प्रसन्ना कुमार सूर्यदेवरा के मामले में भी किया.


सुप्रीम कोर्ट में पिछले चार वर्ष से सामान्य प्रशासन देख रहे बंगाल के न्यायिक अधिकारी अवनिपाल सिंह को भी पुन: बंगाल भेज दिया गया. रजिस्ट्रार दीपक जैन का दूसरे विभाग में तबादला किया. इसके साथ एडिशनल रजिस्ट्रार बदर-उल-इस्लाम की सेवाओं को भी समाप्त करने का फैसला लिया गया है जो 2019 में अपनी सेवानिवृत्ति के बाद भी प्रतिनियुक्ति पर कार्य कर रहे थे.


सुप्रीम कोर्ट से जुड़े एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि सीजेआई ललित के आने के बाद लंबे समय से एक ही जगह पर टीके कई अधिकारियों को उनके मूल स्थान पर भेज दिया गया है. कुछ ने समय से पूर्व ही वीआरएस के लिए आवेदन का ही निर्णय ले लिया है. ये सबकुछ कभी ना कभी तो होना ही था, शायद ये एक नई शुरुआत है.


2). लिस्टिंग का खेल लाए सामने
देश की सर्वोच्च अदालत में न्यायाधीशों के आदेश के बावजूद भी ऐसा कई बार हुआ जब मुकदमें सुनवाई के लिए सूचीबद्ध ही नहीं हुए. अदालत में सुनवाई की तारीख तय करने और सूचीबद्ध करने के आदेश के बाद भी मामले मामलों के सूचीबद्ध नहीं होने की इस परंपरा को सीजेआई ललित ने पुरी तरह से तोड़ दिया.


उनके द्वारा 'केसों की लिस्टिंग' पर बनाए गए नये नियम के चलते ही लंबे समय से जिन मुकदमों को जानबूझकर पेंडिंग रखा गया था, वे सभी सूचीबद्ध किए गए. जिसके चलते 4 हजार से अधिक ये मामले अदालतों के सामने आ गए. इन मुकदमों के सामने आने से पेंडिंग केसों की एक बड़ी सूची भी क्लीयर हुई है. इसी के चलते सुप्रीम कोर्ट ने उनके कार्यकाल के शुरुआती 13 दिनों में ही 4000 से ज्यादा मामलों का निपटारा कर दिया गया.


3) सुनवाई की नयी व्यवस्था
सीजेआई ललित ने सुप्रीम कोर्ट में ज्यादा से ज्यादा मामलों को निपटाने के प्रयास के लिए मुकदमों की सुनवाई की एक नई परंपरा की शुरुआत की है. जस्टिस ललित ने सुबह से लेकर लंच तक पुराने लंबित रेगुलर मामलों को सुनवाई पर लगाने का निर्णय लिया है, जिसमें अदालतों में सुबह के समय में रेगुलर मामलों की सुनवाई करना तय किया और दिन के दूसरे भाग यानी लंच के बाद मिसलेनियस यानी नए मुकदमों यानी विविध प्रकार और एडमिशन वाले मामलों की सुनवाई तय की.


ऐसा इसलिए किया गया ताकि नए मुकदमों के कारण पुराने लंबित रेगुलर मामले लगातार पेंडिंग ही नहीं रहे. पूर्व व्यवस्था में शुरुआत में मिसलेनियस मामले सुने जाते थे और उसके बाद दिनभर रेगुलर मामलों पर सुनवाई होती थी.


4). प्रत्येक बेंच के समक्ष 50 से अधिक मामले
सीजेआई के रूप में जस्टिस ललित ने अपने साथी जजों के लिए एक नयी व्यवस्था अपनायी. अब तक सर्वोच्च अदालत में औसतन 30-35 केस प्रति सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किए जाते थे. सीजेआई ललित ने रोस्टर प्रमुख के रूप में प्रत्येक बेंच के समक्ष सुनवाई के लिए 50 से अधिक मामले सूचीबद्ध करना तय किया. सीजेआई ललित के कार्यकाल के प्रथम दिन में ही 900 से अधिक मामलों को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था.


प्रत्येक बेंच के समक्ष अधिक मामलों को सूचीबद्ध कर सीजेआई ललित ने एक मनोवैज्ञानिक तरीके से ज्यादा केस निस्तारण का टारगेट सामने रखा. बेशक इस निर्णय के चलते कई जजो को अपनी उम्र और स्वास्थ्य के चलते जरूर मुश्किलें आयी हो, लेकिन साथी जजों का सहयोग सीजेआई ललित को दिल खोलकर मिला.


सुप्रीम कोर्ट वेबसाइट के अनुसार 26 अगस्त 2022 तक सुप्रीम कोर्ट में 71,411 मामले लंबित थे. जसे 1 नवंबर 2022 को 69,781 रही है. दो माह की इस अवधि के दौरान सैकड़ों नए मुकदमें दर्ज भी किए गए. सीजेआई ललित के कार्यकाल के दो माह में सर्वोच्च अदालत में कुल मुकदमों का निस्तारण किया गया है.


5). विवादित मामले पर सुनवाई
सीजेआई ललित ने कई ऐसे विवादित मामलों को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जिन मामलों में सरकार की ओर से बेहद गंभीर विषय माना गया. या यूं कहें कि इन मामलों में सरकार की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह था. तिस्ता सितलवाड और पत्रकार सिद्दिक कप्पन जैसे महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई सीजेआई ललित ने अपनी पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया. इन फैसलों के जरिए सीजेआई ललित ने दर्शाया कि वे न्याय के लिए विवादित मामलों को टालने की बजाए उसकी जिम्मेदारी लेना तय करते है. अन्य मामलों में, सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ ने एनआईए के खिलाफ गौतम नवलखा मामले की भी सुनवाई की.


6). बहस का समय निर्धारण
सीजेआई ललित ने सुप्रीम कोर्ट में सूचीबद्ध होने वाले मामलों के लिए बहस का समय निर्धारण करने की परंपरा शुरू की. इस नई परंपरा की शुरुआत भी खुद सीजेआई ललित की पीठ ने EWS मामले की सुनवाई कर की. आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए आरक्षण EWS quota का प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है. सीजेआई ललित अपने कार्यकाल के अंतिम कार्यदिवस 7 नवंबर को इस पर फैसला सुना सकते है.


7). अहम मामलों की सुनवाई
पूर्व सीजेआई रमन्ना के कार्यकाल के आखिरी दिन की कार्यवाही को लाइव किया गया था. विदाई समारोह से पहले कोर्ट रूम में मौजूद वकीलों से चीफ जस्टिस रमन्ना ने कहा था, 'मुझे लिस्टिंग और पोस्टिंग के मुद्दों पर ध्यान न देने के लिए खेद है. पूर्व सीजेआई के कार्यालय का सबसे स्याह पक्ष यही था कि उनके कार्यकाल में अधिकांश अहम मामले पेंडिंग मामलों सुनवाई नहीं हुई.'


सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट के अनुसार, 26 अगस्त 2022 तक कोर्ट में 71,411 मामले लंबित थे. इनमें आर्टिकल 370, नोटबंदी, CAA, इलेक्टोरल बॉन्ड, UAPA, सबरीमाला, अल्पसंख्यक हिंदू, पेगासस मामला, हिसाब बैन, मुफ्त सुविधाएं बांटने से जुड़ा मामला, दोषी सांसदों को लाइफ टाइम बैन जैसे कई अहम केस भी शामिल थे.


सीजेआई ललित ने बेहद संवेदनशील मामलों को पेडिंग रखने की बजाए अदालतों के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करना शुरू किया.


8). संवैधानिक पीठ का गठन
सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट के अनुसार ही 1 सितंबर 2022 को संविधान पीठ से जुड़े कुल 493 केस पेंडिंग थे, इनमें 54 केस मुख्य मामले थे वही मुख्य मामलो से जुड़े हुए 439 मामले थे. 1 नवंबर 2022 को संविधान पीठ से जुड़े कुल केसों की संख्या 489 है. 5 सदस्य संविधान पीठ के पेंडिंग मामलों में से 4 मामले कम हुए है.


सीजेआई यूयू ललित के कार्यकाल की ये एक महत्वपूर्ण उपलब्धि कही जा सकती हैं कि उन्होंने संवैधानिक मामलों की सुनवाई के लिए संविधान पीठों का गठन किया.


महाराष्ट्र में सियासी संकट पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का त्वरित फैसला भी अपने आप में एक उदाहरण है. आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए आरक्षण EWS quota का प्रावधान करने वाले संविधान संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है.


9). कोर्ट की लाइव स्ट्रीमिंग
पूर्व सीजेआई रमन्ना ने देश की सर्वोच्च अदालत में पहली बार अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग की अनुमति दी थी. उनके अंतिम कार्यदिवस 26 अगस्त को कोर्ट-1 की कार्यवाही को NIC ने सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर लाइव स्ट्रीम किया था. पूर्व CJI एनवी रमन्ना, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस सीटी रविकुमार की विशेष बेंच ने महत्वपूर्ण मामलों में पांच फैसले दिए थे और इस कोर्ट की कार्यवाही को पुरे देश ने देखा था.


सीजेआई ललित ने 27 सितंबर 2022 को एक कदम और बढ़ाते हुए संविधान पीठ की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग करने का फैसला लिया. ये तारीख इसलिए भी अहम हो जाती है क्योकि 4 साल पूर्व 27 सितंबर 2018 को ही तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने संवैधानिक महत्व के मामलों में महत्वपूर्ण कार्यवाही का लाइव टेलीकास्ट या वेबकास्ट करने का ऐतिहासिक फैसला दिया था.


सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की पालना करने में बेशक 4 साल का वक्त लगा, लेकिन ये ऐतिहासिक निर्णय लेने का श्रेण सीजेआई ललित को जाता है. सीजेआई ललित ने इसकी शुरुआत 27 सितंबर को आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई करते हुए की.


10). कॉलेजियम और सिफारिशें
सीजेआई ललित ने ऐसे समय में अपने पद की बागडोर संभाली थी, जब उनके पूर्ववर्ती मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना ने अपने 16 माह के कार्यकाल में देश में 224 जजों की नियुक्ति का रिकॉर्ड बनाकर विदा हुए थे. ऐस में जस्टिस यू यू ललित से इस बात की उम्मीद की गयी कि वे अपने 74 दिनों के कार्यकाल में कम से कम सर्वोच्च अदालत में रिक्त पदों पर नए जज बहाल करेंगे.


कॉलेजियम के अध्यक्ष में रूप में सीजेआई यूयू ललित के पास 27 अगस्त से 8 अक्टूबर तक का ही समय था. परंपरा के अनुसार, निवर्तमान CJI सेवानिवृत्ति से एक महीने पहले अपने उत्तराधिकारी की सिफारिश करते हैं, ऐसे में सीजेआई ललित को 8 अक्टूबर तक नए सीजेआई के नाम की सिफारिश करनी तय थी.


सीजेआई ललित के कार्यकाल में कॉलेजियम की 4 बैठकों में लिए गए निर्णयों के आधार पर 8 स्टेटमेंट जारी करते हुए कुल 29 नाम की सिफारिश केंद्र सरकार को की गई. सीजेआई ललित ने सुप्रीम कोर्ट के लिए जस्टिस दीपांकर दत्ता के नाम की सिफारिश की, जिसे अब तक केन्द्र सरकार ने मंजूर नहीं किया. इसी तरह से सीजेआई ललित की अध्यक्षता में कॉलेजियम ने देश 3 हाई कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति, दो मुख्य न्यायाधीशों और 3 हाई कोर्ट जजों के तबादले और 17 हाई कोर्ट जजों की नियुक्ति की सिफारिश भी की.


केन्द्र सरकार ने सीजेआई ललित की अध्यक्षता में कॉलेजियम द्वारा कि गई सिफारिशों में से उड़ीसा सीजे जस्टिस एस मुरलीधर के तबादले और उड़ीसा सीजे के रूप में जस्टिस जसवंत सिंह की नियुक्ति को भी अब तक मंजूरी नहीं दी है.


विवाद भी…
सीजेआई ललित के कार्यकाल में एकमात्र विवाद के रूप में सुप्रीम कोर्ट में चार जजों की नियुक्ति उपजा विवाद रहा है. सीजेआई ललित ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट सीजे जस्टिस रविशंकर झा, पटना सीजे जस्टिस संजय करोल, मणिपुर सीजे जस्टिस संजय कुमार और सीनियर एडवोकेट के वी विश्वनाथन के नाम की सिफारिश के लिए साथी जजों से सहमति मांगी थी.


सीजेआई ललित अपने कार्यकाल में ही देश की सर्वोच्च अदालत में रिक्त पदों पर जजों की नियुक्ति करना चाहते थे. दशहरा अवकाश से पूर्व सुप्रीम कोर्ट में अंतिम कार्यदिवस 30 सितंबर को भी कॉलेजियम की बैठक प्रस्तावित थी. हालांकि, कॉलेजियम की ये बैठक नहीं हो सकी, क्योंकि दूसरे वरिष्ठ जज जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ उस दिन देर रात 9:10 बजे तक अदालत में सुनवाई कर रहे थे.


बाद में सीजेआई यूयू ललित की ओर से देश की सर्वोच्च अदालत में 4 जजों की नियुक्ति का प्रस्ताव समाप्त हो गया. क्योकि इस पर कॉलेजियम के सभी सदस्यों की सहमति नहीं मिल पाई.


सीजेआई यूयू ललित ने कई पुराने मामलों को सूचीबद्ध किया, पूरे साल काम करने के लिए संविधान पीठों का गठन किया और अदालत के सीमित काम के वक्त का अधिकतम उपयोग किया.पूर्व सीजेआई रमन्ना के सेवानिवृति समारोह में दिए गए अपने भाषण में सीजेआई ललित ने कहा था कि उनके लिए जस्टिस रमन्ना जैसी लोकप्रियता हासिल करना मुश्किल होगा. शायद सीजेआई ललित अपने संबोधन में इन वाक्यों को एक चुनौती के तौर पर ले रहे थे.


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