नई दिल्ली. महाराष्ट्र की उद्धव सरकार में इस वक्त हाई वोल्टेज ड्रामा चल रहा है. इससे संबंधित घटनाक्रमों पर पूरे देश की निगाह बनी हुई है. दरअसल महाराष्ट्र विधानसभा में शिवसेना के नेता और राज्य सरकार में मंत्री एकनाथ शिंदे करीब 10 विधायकों के साथ गायब हैं. मीडिया रिपोर्ट्स में विधायकों की संख्या के 25 तक होने के दावा किया जा रहा है. हालांकि इस बीच कांग्रेस और एनसीपी की तरफ से कहा जा चुका है कि राज्य सरकार को कोई खतरा नहीं है. महाराष्ट्र की राजनीति के दिग्गज शरद पवार ने इसे शिवसेना का आंतरिक मसला बताते हुए कहा है कि सरकार को कोई खतरा नहीं है. महाराष्ट्र की राजनीति के जानकार यह भी जानते हैं कि उद्धव सरकार इस वक्त अगर किसी मुश्किल में घिरती है तो उसे सबसे ज्यादा उम्मीद शरद पवार से ही होगी. 


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शरद पवार अब उद्धव सरकार के लिए संकटमोचक साबित हो सकते हैं. लेकिन अपनी राजनीति के शुरुआती दिनों में शरद पवार खुद भी नाटकीय ढंग से मुख्यमंत्री बने थे. तब उन्होंने अपने गुरु यशवंत राव चह्वाण की पार्टी से अलग हटकर राज्य की सत्ता हासिल की थी. पवार राज्य में सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने थे. 


1977 के लोकसभा से शुरू हुई थी कहानी
शरद पवार की यह कहानी इमरजेंसी के बाद हुए 1977 के लोकसभा चुनाव के बाद शुरू हुई. इस चुनाव में इंदिरा गांधी के खिलाफ जबरदस्त लहर थी और महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद जनता पार्टी को जबरदस्त बढ़ मिली. राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री शंकर राव चह्वाण ने बड़ी सीटों पर हार की जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद पार्टी ने वसंत दादा पाटिल को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया. तब नवोदित नेता शरद पवार भी कांग्रेस पार्टी का हिस्सा हुआ करते थे. 


कांग्रेस यू में शामिल हुए थे शरद पवार
साल के अंत में कांग्रेस पार्टी टूटी और पवार के गुरु यशवंत राव चह्वाण नई बनी कांग्रेस (यू) के साथ चले गए. कांग्रेस यू यानी उर्स. दरअसल यह पार्टी कर्नाटक के दिग्गज कांग्रेस नेता और राज्य के मु्ख्यमंत्री देवराज उर्स ने इंदिरा गांधी से अलग होकर बनाई थी. शरद पवार भी अपने गुरु के साथ कांग्रेस यू का हिस्सा बन गए. 


महाराष्ट्र सरकार में बने उद्योग मंत्री
साल 1978 में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस और कांग्रेस यू ने अलग-अलग चुनाव लड़ा. इस चुनाव में जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन सरकार बनाने के लिए जरूरी जादुई आंकड़े से दूर रह गई. कांग्रेस और कांग्रेस यू ने मिलकर सरकार बनाई और मुख्यमंत्री एक बार फिर वसंत दादा पाटिल बने. इस सरकार में शरद पवार उद्योग मंत्री बने.  


कांग्रेस यू तोड़कर बनाई अपनी पार्टी
शरद पवार का कद महाराष्ट्र की राजनीति में तेजी के साथ बढ़ने लगा था. कुछ ही महीने बाद शरद पवार अपने धड़े के साथ कांग्रेस यू से अलग हो गए. शरद पवार ने अपनी समाजवादी कांग्रेस यानी कांग्रेस (एस) का गठन किया. तब शरद पवार ने जनता पार्टी के साथ मिलकर प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट बनाया था और महज 38 साल की उम्र में राज्य का मुख्यमंत्री बन इतिहास रच दिया. 


44 साल बीते लेकिन राज्य की राजनीति के ध्रुव बने हुए हैं पवार
इस घटना को 44 साल से ज्यादा का वक्त बीच चुका है. इसके बाद शरद पवार ने कभी राजनीति में पीछे मुड़कर नहीं देखा. साल 1991 में राजीव गांधी की असमय मृत्यु के बाद शरद पवार प्रधानमंत्री पद की रेस में भी आए थे. हालांकि तब ऐसा नहीं हो सका. लेकिन इसके बावजूद वो राज्य और देश की राजनीति में मजबूत पिलर की तरह लगातार डटे हुए हैं.


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