नई दिल्ली: 491 सालों का विवाद, 40 दिन की मैराथन सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने बेहद सलीके से सुलझा दिया. और तय कर दिया कि अयोध्या में जिस जमीन को लेकर विवाद था, वहां राममंदिर बनेगा. सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच को अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाने में बमुश्किल पौन घंटे लगे.


फैसले की 10 अहम बातें


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फैसले पर पांचों जजों की सर्वसम्मति साबित कर रही है कि सबूतों को दरकिनार करना मुश्किल था. पांच जजों की बेंच ने पहले ही साफ कर दिया कि वो आस्था नहीं, जमीन के मालिकाना हक के आधार पर फैसला सुनाने जा रहे हैं. अयोध्या जमीन विवाद में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच के फैसले में दस बड़ी बातें क्या रहीं. ये आपको जानना चाहिए.


1). रामलला विराजमान को कानूनी मान्यता


सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने अपने फैसले में एक ओर रामलला विराजमान को कानूनी व्यक्ति के तौर पर मान्यता दी. इसी के साथ अयोध्या जमीन मुकदमे में रामलला के हक की बात मान ली गई.



अयोध्या जमीन विवाद में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी वक्फ बोर्ड और रामलला विराजमान, इन तीनों को मुख्य पक्ष माना और बाकी याचिकाएं खारिज कर दीं. इससे तय हुआ कि जमीन के मालिकाना हक का फैसला इन्हीं तीनों के बीच होना है.


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2). ASI की खुदाई रिपोर्ट अहम सबूत


अयोध्या जमीन विवाद करीब पांच शताब्दी पुराना है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने साफ किया कि वैज्ञानिक तौर पर नतीजे पर पहुंचने के लिये भारतीय पुरातत्व विभाग यानी ASI की विवादित रही जमीन की खुदाई की रिपोर्ट बेहद अहम है. इसे खारिज नहीं किया जा सकता है.


सर्वसम्मति से जारी फैसले में कहा गया कि ASI की जांच रिपोर्ट बताती है कि बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी. खुदाई में बाबरी मस्जिद वाली जगह के नीचे गैर-इस्लामिक ढांचा मिला है, जो बारहवी सदी का मंदिर है.



आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ही ASI ने अयोध्या वाली जमीन की खुदाई शुरू की थी, ताकि अलग-अलग दावों पर तस्वीर साफ हो सके.


3). मुस्लिम पक्ष का एकाधिकार साबित नहीं


सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से दिये अपने फैसले में कहा कि सबूतों के आधार मुस्लिम पक्ष की ओर से सुन्नी वक्फ बोर्ड ये साबित नहीं कर पाया कि अयोध्या वाली जमीन पर मुस्लिमों का एकाधिकार था. लिहाजा उनका दावा खारिज किया जाता है. सुप्रीम फैसले में कहा गया कि विवादित जमीन के बाहरी परिसर में हिंदु श्रद्धालुओं के पूजा-परिक्रमा करते रहे. अंग्रेजों को आने से पहले भी वहां राम चबूतरा, सीता रसोई, सिंहद्वार पर श्रद्धालु पूजा करते रहे हैं. उस पर हिंदू पक्ष का कब्जा था. इसके ऐतिहासिक सबूत भी हैं.


सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने ये भी कहा कि सुनवाई मुस्लिम पक्ष ने भी ये माना था कि वहां हिंदू श्रद्धालु भी वहां पूजा करते थे. वहां गजेटियर और दूसरे कानूनी दस्तावेजों से भी ये साबित होता है कि 1856-57 के दौरान भी वहां हिंदुओं को पूजा से नहीं रोका गया. जबकि उस दौरान मुसलमानों के वहां नमाज पढ़ने के सबूत नहीं है.



4). निर्मोही अखाड़े मालिक नहीं सेवायत


अयोध्या जमीन विवाद में निर्मोही अखाड़े ने सन 1959 में अपना मालिकाना हक जताते हुए मुकदमा दायर किया था. निर्मोही अखाड़े ने दावा किया था कि वो रामलला के सेवायत हैं. जिनके पास रामजन्मभूमि स्थान में सेवा-पूजा करने का धार्मिक अधिकार है. इसी आधार पर निर्मोही अखाड़े ने विवादित जमीन पर मालिकाना हक मांगा था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपने फैसले में निर्मोही अखाड़े के मालिकाना हक के दावे को ये कहते हुए खारिज कर दिया कि वो खुद को सेवायत कहते हैं, तो उनका मालिकाना हक कहां बनता है. सेवायत कानून भी इसकी इजाजत नहीं देता है.


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5). जमीन बंटवारे का फैसला तार्किक नहीं 


सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने अपने फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के साल 2010 के फैसले को अतार्किक माना. सुप्रीम फैसले में कहा गया कि अयोध्या की 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को तीन हिस्सों बांटना सही नहीं था. क्योंकि कानूनी तौर पर निर्मोही अखाड़े का मालिकाना हक बनता ही नहीं है.


वहीं कानूनी मान्यता के कारण रामलला विराजमान को इस जमीन विवाद के मुख्य पक्षकार माना जाता है.


6). रामजन्म की आस्था पर विवाद नहीं


सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने फैसला सुनाने के दौरान ये भी साफ किया हिंदुओं की यह आस्था और उनका यह विश्वास की भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था इसे लेकर कोई विवाद नहीं है.



सुप्रीम फैसले के मुताबिक रामलला विराजमान को कानूनी हक मिलने से तस्वीर साथ उनका दावा बतौरमुख्य पक्षकार सबसे तगड़ा माना जाता है.


7). मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही जमीन


सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने अपने ऐतिहासिक फैसले के दौरान ये भी साफ कर दिया कि सन 1949 में विवादित जमीन पर मूर्तियां रखने की कवायद कानून के खिलाफ थी. और 1992 में अयोध्या में विवादित ढांचे को गिराना सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन था.


8). विवादित जमीन का कानूनी आधार पर अधिग्रहण 


सर्वसम्मति से दिये फैसले में ये भी बताया गया कि विवादित जमीन को कानूनी आधार पर केंद्र सरकार अधिग्रहित कर चुकी है. सरकारी रिकॉर्ड में ये जमीन सरकारी है.


9). मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही जमीन मिले


सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच में सर्वसम्मति से हुए इस फैसले में कहा कि केंद्र सरकार को मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ वैकल्पिक जमीन देनी होगी. अदालत ने ये भी साफ किया गया कि मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक जमीन अयोध्या में ही देनी होगी.



न्यायालय के आदेश के अनुसार, केंद्र सरकार को 3 महीने के भीतर अयोध्या अधिनियम 1993 के तहत एक योजना तैयार करना है और एक ट्रस्ट का गठन करना है. इस स्थल पर मंदिर निर्माण के लिए विवादित स्थल को सौंपना है और भूमि का उपयुक्त वैकल्पिक भूखंड को मापना है. अयोध्या में 5 एकड़ जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी जाएगी.


10). ट्रस्ट के तहत बनेगा चलेगा राम मंदिर 


अयोध्या पर आए सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले में कहा गया कि अयोध्या एक्ट 1993 के तहत केंद्र सरकार राममंदिर निर्माण का प्लान तीन महीने के अंदर बनाए. मंदिर के निर्माण और अन्य मामलों सहित ट्रस्ट के काम करने के केंद्र द्वारा योजना बनाई जाएगी. कोर्ट ने ये साफ किया रि इसे अमलीजामा पहनाने के लिये ट्रस्ट बनाए.