नई दिल्लीः टीवी चैनल पर आज-कल एक ऐतिहासिक धारावाहिक पुण्यश्लोका अहिल्या बाई (Ahilyabai Holkar) खूब पसंद किया जा रहा है.  Aditi Jaltare इसमें अहिल्या बाई की भूमिका निभा रही हैं और खूब वाह-वाही बटोर रही हैं.


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हालांकि महान होल्कर साम्राज्य की इस महारानी (Ahilyabai Holkar birth anniversary) का जीवन दिखाने के लिए सीरियल ने कुछ रचनात्मक छूट ली है, लेकिन यह एक झरोखा है उस महिला के बारे में जानने का जिसने तकरीबन 275 साल पहले ही कुरीतियों की बेड़ियां तोड़ दी थीं.


जिसने क्रांति का असल अर्थ समझा और जिस दौर में सम्राटों के लिए भी अपना साम्राज्य बचाना मुश्किल हो रहा था अहिल्या ने अपने होल्कर (Holkar) साम्राज्य को न सिर्फ सुरक्षित रखा, बल्कि उसे विकसित भी किया.    


31 मई 1725 को उनका जन्म जामखेड में जन्म
राजसी वेश में भी सादगी की प्रतिमान, चेहरे पर दया और करुणा के साथ ही वीरता का तेज और हाथों में महादेव शिव का प्रतीक लिंग. इसी तरह की प्रतिमाएं मध्य प्रदेश के इंदौर, ग्वालियर और महाराष्ट्र के अहमदनगर से लेकर उन सभी ऐतिहासिक स्थलों पर स्थापित हैं जो अहिल्याबाई (Ahilyabai Holkar) से जुड़े हुए हैं.



अहिल्या बाई (Ahilyabai Holkar)की बात आज इसलिए क्योंकि आज उनकी जयंती (Ahilyabai Holkar birth anniversary) है. 31 मई 1725 को उनका जन्म जामखेड (महाराष्ट्र) में हुआ था. 


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बदलावों की दास्तान है जीवन
अहिल्या बाई (Ahilyabai Holkar) का जीवन बदलाव और क्रांतियों की दास्तान है. बचपन में पहले उन्हें पढ़ाई के लिए परिवार में ही लड़ना पड़ा. लेकिन यह लड़ाई उन्होंने बौद्धिकता से जीत ली. समय बीतता रहा और मालवा की इस रानी की परीक्षा लेता रहा.



पहले पति वीरगति को प्राप्त हुए, फिर पिता समान श्वसुर नहीं रहे. जवानी में एक बेटा भी चल बसा. इन दुखों के बीच अहिल्या ने शिव शंकर का आशीर्वाद लेकर गद्दी संभाली. लेकिन आस-पास के राजाओं को यह रास नहीं आया. 


जब बिना लड़े ही जीता युद्ध
इन्हीं में एक था राघोवा पेशवा (Raghoba Peshwa). मालवा को कमजोर जानकर और राज्य हड़पने के उद्देश्य से उसने अपनी सेना इंदौर के आगे लगा दीं. अचानक हुए इस आक्रमण से भी रानी घबराई नहीं, बल्कि उन्होंने अपने सेनापति तुकोजी राव (Tukoji Rao) को मैदान में भेजा और पेशवा के लिए एक पत्र लिखा. 
उन्होंने लिखा कि-


'मेरे पूर्वजों के बनाए और संरक्षित किए राज्य को हड़पने का सपना राघोबा आप मत देखिए. अगर आप आक्रमण के लिए आमादा हैं तो आइए, द्वार खोलती हूं. मेरी स्त्रियों की सेना आपका वीरता से सामना करने को तैयार खड़ी हैं. अब आप सोचिए. आप को हार मिली तो संसार क्या कहेगा, राघोबा औरतों के हाथों हार गया. अगर जीत भी मिल जाए तो आपके चारण और भाट आपकी प्रशस्ति में क्या गाएंगे? राघोवा सेना लेकर आया, एक विधवा और पुत्र शोक में आकुल एक महिला को हराने ताकि अपना लालच पूरा कर सके. पेशवाई किसे मुंह दिखाएगी?'


राघोवा पेशवा का षड्यंत्र विफल
राघोवा के लिए यह पत्र किसी तीखे तीर से अधिक तीखा था. उसे ऐसे किसी जवाब की उम्मीद नहीं थी. राघोवा ने तुको जी के हाथों जवाब भेजा.


आप गलत समझ रहीं हैं रानी. मैं तो बस आपको शोक-संवेदना जताने आया हूं. तब रानी (Ahilyabai Holkar) ने कहा- ठीक है आइए, लेकिन सेना लेकर नहीं. खुली पालकी में बैठकर. मैं खुद आपका हल्दी-कुमकुम से स्वागत करूंगी. 


लेकिन, जरूरत पड़ी तो बनीं रणचंडी
मालवा, जिस पर युद्ध का संकट मंडरा रहा था, बस एक पत्र से अहिल्या बाई (Ahilyabai Holkar) ने उसे जीत लिया और दोबारा पेशवा से रक्षा का वचन भी ले लिया. यही वह घटना थी, जिसने प्रजा, पड़ोसी राज्यों और राजाओं को यह मानने पर मजबूर कर दिया कि मालवा की महारानी अहिल्या बाई होलकर (Ahilyabai Holkar) ही हैं. 



बतौर राज्य की शासिका ऐसा भी मुमकिन नहीं था कि हर युद्ध ऐसे ही पत्र लिखकर जीते जाते. एक बार जब उदयपुर की सेना के सहयोग से रामपुर के सरदार ने मालवा से विद्रोह किया तब 60 साल की रानी ने कवच चढ़ाकर हाथ में तलवार ले, युद्ध में खूब कौशल दिखाया. उदयपुर की सेना के पांव उखड़ गए.


मालवा (Malwa) ने अपनी महारानी (Ahilyabai Holkar) का जब यह रूप देखा तो चकित रह गया. इसके बाद से मालवा (Malwa) की बहू बनकर आई यह सुनबाई माता अहिल्या बाई (Ahilyabai Holkar) कहलाने लगीं. 


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कई तीर्थों का कराया जीर्णोद्धार
धार्मिक स्वभाव की अहिल्या (Ahilyabai Holkar) ने देशभर के तीर्थस्थलों का भी फिर से निर्माण कराया. तुर्क और मुगल आक्रमण में कई मंदिरों को तोड़ा गया था. अहिल्या बाई (Ahilyabai Holkar) ने ऐसे कई मंदिरों को फिर से उभारा. काशी, गया, सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, कांची, द्वारका, बद्रीनारायण, रामेश्वर और जगन्नाथपुरी के जो भी स्वरूप आज दिखाई दे रहे हैं,



उनके निर्माण में रानी अहिल्याबाई (Ahilyabai Holkar) का ही योगदान है. तालाब, बावड़ी, कूप तो न जाने कितने बनवाए जो समय के फेर में नष्ट भी हो गए. जन कल्याण करते हुए होल्कर साम्राज्य की इस महारानी का आत्मा 13 अगस्त 1795 को शिव धाम को चली गईं. भारत की खोज लिखते हुए पं. नेहरू कई पन्ने होल्कर साम्राज्य की सुनबाई (Ahilyabai Holkar) की प्रशंसा में भी लिखे हैं. वह उन्हें संत शासिका की उपाधि देते हुए प्रणाम करते हैं. 


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