नई दिल्ली: राजनीति में सबकुछ राज का खेल है, राज का नशा ही ऐसा है कि उसे हासिल करने के लिए नीति का स्तर कुछ भी हो सकता है. अजित पवार ने जो अपने चाचा की पार्टी एनसीपी के साथ किया, उसकी चर्चा पिछले कुछ दिनों से चल ही रही थी. अजित ने जोड़-तोड़ का पाठ अपने चाचा शरद पवार से ही पढ़ा था. छोटी सी उम्र में पिता की मौत के बाद पढ़ाई छोड़कर चाचा के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते हुए अजित पवार ने कभी न कभी ये ख्वाब तो जरूर देखा होगा कि मेहनत का फल एक न एक दिन जरूर मिलेगा. सालों कड़ी मेहनत की, डिप्टी सीएम और मंत्री जैसे पद का जिम्मा भी मिला.. मगर इन सबके बावजूद शरद पवार को बतौर वारिस शायद अजित पवार पसंद नहीं आए. तभी तो उन्हें पार्टी में साइडलाइन करने की भरपूर कोशिश हुई.


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शह और मात के इस सियासी खेल में अजित पवार और शरद पवार के बीच मनमुटाव आखिर कैसे और कब इस कदर बढ़ गया आपको ये सिलसिलेवार तरीके से समझाते हैं. अजित पवार ने पिता के निधन के बाद अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी, शुगर फैक्ट्री के जरिए सियासत में उतर आए और अपने चाचा के सियासी रसूख को हथियार बनाकर कॉपरेटिव बैंक के के चेयरमैन बन गए. इसके बाद विधायक, सांसद, मंत्री और फिर उपमुख्यमंत्री.. 


चाचा और भतीजे में कब-कब ठनी?
महाराष्ट्र में हुए करीब 70 हजार करोड़ के सिंचाई घोटाले को लेकर अजित पवार ने काफी मुश्किलों का सामना किया है. उन पर घोटाले के आरोप हैं. ये कथित घोटाला जिस वक्त हुआ. अजित पवार उस समय महाराष्ट्र में सिंचाई मंत्री थे. बात वर्ष 2009 की है, जब उप मुख्यमंत्री रहते हुए बतौर जल संसाधन मंत्री अजित पवार ने 3 महीने में 20 हजार करोड़ की 32 परियोजनाओं को उन्होंने मंजूरी दे दी थी. मामले ने उस वक्त तूल पकड़ लिया और सीएजी ने मंत्रालय के अधिकारियों से पूछताछ शुरू की. जिसके बाद पृथ्वीराज चौहान की सरकार से अजित पवार को इस्तीफा देना पड़ा.


ऐसा कहा जाता है कि अजित उस वक्त इस्तीफा नहीं देना चाहते थे, लेकिन चाचा शरद पवार ने उनसे इस्तीफा दिलवा दिया. वजह ये बताई जाती है कि शिवसेना के बखेड़े को देखते हुए शरद पवार ने अपने भतीजे पर ये दवाब डाला था.


सुप्रिया सुले ने दिया सबसे बड़ा जख्म!
महाराष्ट्र की सियासत में एक वक्त तो ये लगभग कन्फर्म था कि शरद पवार के उत्तराधिकारी अजित पवार ही होंगे, लेकिन एक ट्विस्ट ने अजित को एक के बाद एक झटका देना शुरू कर दिया. पहले झटके को तब देखा गया, जब सुप्रिया सुले की सियासत में एंट्री हुई. अजित को ये समझ आने लगा था कि अब उनका मामला गड़बड़ा रहा है. 


इसी बीच महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले वर्ष 2019 में एनसीपी ने जब बीजेपी-शिवसेना सरकार के खिलाफ यात्रा निकाली. तो उसके नेतृत्व की जिम्मेदारी भी अजित पवार के बजाय शरद पवार ने पार्टी के दूसरे नेताओं को दे दी. बस उस वक्त भीतर ही भीतर अजित पवार अपने चाचा से और उखड़ गए. 23 नवंबर, 2021 की सुबह अजित पवार ने पहली बार अपने चाचा से खुली बगावत कर ली. बीजेपी के साथ मिलकर उन्होंने सरकार बनाई और उस वक्त देवेंद्र फडणवीस सरकार में डिप्टी सीएम बन गए. हालांकि ये साथ कुछ ही घंटों का था और उस वक्त अजित को मुंह की खानी पड़ी. शरद पवार के पास अजित पवार वापस आ गए.


बीते कुछ समय से जब शरद पवार ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का फैसला किया था, तबसे ये चर्चा तेज हो गई थी कि अजित पवार के बागी तेवर देखने को मिल सकते हैं और आखिरकार वैसा ही हुआ.


पत्रकारों पर भड़क जाते हैं अजित पवार
एक वक्त था, जब अजित पवार इस कदर बेलगाम हो गए थे कि भरे प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों के सवाल पर भड़क जाते थे. अजित पवार के मुताबिक तो मीडिया को डंडे पड़ने चाहिए. साल 2011 में जब वो महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री थे. और नांदेड़ में एक सिंचाई परियोजना के उद्घाटन के लिए पहुंचे. तो एक किसान ने उनसे किसानों के विस्थापन को लेकर सवाल कर दिया. जिसपर अजित पवार भड़क उठे और उस किसान को डांट कर बैठा दिया. इस वाकये को जब वहां मौजूद पत्रकारों ने कवर करना शुरु किया. तो अजित पवार पत्रकारों पर ही भड़क उठे.


अजित पवार ने उस वक्त ये तक कह दिया था कि 'कहीं थोड़ी सी बाढ़ भी आ जाती है तो ऐसा दिखाते हैं कि जैसे पूरा गांव डूब रहा हो. इनलोगों को उखाड़ फेंकना चाहिए. इनलोगों को डंडे पड़ने चाहिए.' इसी तरह औरंगाबाद में भी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अजित पवार पत्रकारों के सवाल पर भड़क उठे थे. अजित पवार ने पत्रकारों को डांट कर चुप रहने को कहा था.


पहले शिवसेना और अब एनसीपी महाराष्ट्र की सियासत किस ओर करवट ले रही है, इसका अंदाजा लगा पाना भी बेहद मुश्किल है. ये जरूर कहा जा सकता है कि इसका असर आने वाले लोकसभा चुनाव में जरूर देखने को मिलेगा.


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