नई दिल्ली. देश की नई संसद में लगाए गए अशोक स्तंभ के डिजाइन को लेकर विवाद हो गया है. कांग्रेस समेत कई अन्य विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने आरोप लगाया है कि राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह यानी अशोक स्तंभ के डिजाइन के साथ खिलवाड़ किया गया है. आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने ट्वीट किया-'मैं 130 करोड़ भारतवासियों से पूछना चाहता हूं राष्ट्रीय चिन्ह बदलने वालों को “राष्ट्र विरोधी”बोलना चाहिये कि नहीं बोलना चाहिये.'  संजय सिंह के अलावा कांग्रेसी नेता जयराम रमेश समेत तमाम विपक्षी नेता सरकार पर इस मुद्दे को लेकर आक्रामक हैं. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

केंद्रीय मंत्री ने दिया जवाब


इसका जवाब सरकार के मंत्रियों के समेत बीजेपी से जुड़े कई नेताओं ने दिया है. केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने डिजाइन को लेकर एक पूरी ट्वीट थ्रेड पब्लिश की है जिसमें बताया गया है कि नई संसद बिल्डिंग में लगा अशोक स्तंभ पूरी तरह से सारनाथ में मौजूद अशोक स्तंभ पर ही आधारित है. पुरी ने लिखा है, 'दो संरचनाओं की तुलना करते समय कोण, ऊंचाई और पैमाने के प्रभाव की सराहना करने की जरूरत है. अगर कोई नीचे से सारनाथ के प्रतीक को देखता है तो यह उतना ही शांत या क्रोधित लगेगा जितना कि चर्चा की जा रही है.'


मूर्तिकार बोले-डिजाइन में कोई चेंज नहीं


आजतक में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक अशोक स्तंभ को डिजाइन करने वाले मूर्तिकार सुनील देवरे ने भी कहा है कि डिजाइन के साथ कोई खिलवाड़ नहीं किया गया है. उन्होंने शेर का मुंह ज्यादा खुले होने की बात को नकारते हुए कहा कि इस स्तंभ को बनाने में 9 महीने से ज्यादा का वक्त लगा. नई संसद का स्तंभ सारनाथ के स्तंभ की कॉपी है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इस स्तंभ को बनाने के लिए उनका करार टाटा के साथ हुआ था न कि बीजेपी के साथ.


पीएम मोदी की मौजूदगी पर भी बवाल हो चुका है


मंगलवार को अशोक स्तंभ की डिजाइन पर विवाद से ठीक पहले सोमवार को एक अन्य मुद्दे पर बवाल हुआ. दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अशोक स्तंभ के अनावरण के बाद विपक्ष की तरफ से मुद्दा उठाया गया कि उन्हें इस कार्यक्रम में नहीं बुलाया गया. 


शुरुआत से होता रहा है विवाद


दरअसल संसद की नई बिल्डिंग को लेकर विपक्षी दल शुरुआत से निशाना साधते रहे हैं. कोविड-19 महामारी के दौरान भी कांग्रेस की तरफ से इस पर निशाना साधा गया था. किसान आंदोलन के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट किया था- 'इतिहास में यह भी दर्ज होगा कि जब अन्नदाता सड़कों पर 16 दिन से हक की लड़ाई लड़ रहे थे तब आप सेंट्रल विस्टा के नाम पर अपने लिए महल खड़ा कर रहे थे, लोकतंत्र में सत्ता सनक पूरी करने का नहीं, जन सेवा और लोक कल्याण का माध्यम होती है.' राहुल गांधी की तरफ के यह ट्वीट प्रधानमंत्री द्वारा नई संसद के शिलान्यास  किए जाने पर आया था. 


2012 में पहली बार शुरू हुई चर्चा


मतलब देश की नई संसद की शुरुआत से लेकर अब तक लगभग हर मुद्दे पर विपक्ष की तरफ से बवाल खड़ा किया जाता रहा है. जबकि इस प्रोजेक्ट को लेकर पहली बार चर्चा कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए-2 सरकार के दौरान ही शुरू हुई थी. 2012 में प्रकाशित एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार द्वारा एक हाईपावर कमेटी बनाए जाने की खबरें सामने आई थीं. तब लोकसभा के सेक्रेटरी जनरल टीके विश्वनाथन ने कहा था कि मौजूदा 85 साल पुरानी संसद बिल्डिंग की जगह नई इमारत के लिए हाईपावर कमेटी का गठन किया जाएगा. 


क्यों नई इमारत की जरूरत


नई इमारत बनाए जाने का आधार मौजूदा इमारत के पुराने होने के अलावा लोकसभा और राज्यसभा सदस्यों की संख्या को लेकर भी था. दरअसल देश में आबादी के आधार पर लोकसभा सदस्यों की संख्या ज्यादा होनी चाहिए लेकिन नई बिल्डिंग में उनके बैठने की व्यवस्था नहीं है. जबकि अब नई संसद बिल्डिंग में लोकसभा में 888 सदस्यों के लिए सीटें होंगी.


लेकिन जब मोदी सरकार की तरफ से नई इमारत यानी सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई तो कांग्रेस और विपक्षी दलों की तरफ से जमकर विरोध हुआ. अशोक स्तंभ को लेकर विवाद भले ही ताजा हो लेकिन नई संसद बिल्डिंग को लेकर विपक्ष के आरोप आते रहते हैं. दिलचस्प है कि खुद इस स्तंभ के मूर्तिकार स्वीकार कर चुके हैं कि स्ट्रक्चर में कोई चेंज नहीं किया गया है.


इसे भी पढ़ें- Inflation Control: बड़ी राहत! कंट्रोल में आती दिख रही महंगाई, खाने-पीने के सामानों की कीमतें भी घटी



Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.