अश्विनी वैष्णव को कैसे मिली कैबिनेट में जगह? नवीन पटनायक ने भी किया था समर्थन
अश्विनी वैष्णव ऐसा व्यक्तित्व है, जिसके लिए पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने नवीन पटनायक को फोन किया और तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह (Amit Shah) ने भी उनके लिए ओडिशा के सीएम से बातचीत की थी. आपको उस पूर्व IAS अधिकारी के बारे में जानना चाहिए.
नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्रिमंडल में हुए विस्तार ने इस बार कई क्षेत्रों से जुड़े रहे अनुभवी लोगों को जगह दी गई है, जो की चौकाने वाले रहे. इसी में एक नाम पूर्व आईएएस अधिकारी अश्वनी वैषणव का है. इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन में इंजीनियरिंग कर चुके पूर्व आईएएस अश्विनी वैष्णव उड़ीसा से राज्यसभा सांसद है.
अश्विनी ने इंजीनियरिंग में किया था Top
मूलरूप से नाडोल के पास जीवंद कला हाल जोधपुर निवासी एडवोकेट दाऊलाल वैष्णव के पुत्र अश्विनी लंबे समय भारतीय प्रशासनिक सेवा में भी रहे हैं. उन्होंने स्कूली शिक्षा जोधपुर से करने के बाद एमबीएम से इंजीनियरिंग में टॉप किया. तत्पश्चात आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur) से एमटेक (M. Tech) करते हुए ही सिविल सर्विसेज की परीक्षा में 26वीं रैंक हासिल की.
वर्ष 2006 में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के निजी सचिव का पद छोड़ा. वर्ष 2011 में सिविल सर्विसेज से त्यागपत्र देकर मल्टीनेशनल कंपनी में भी मैनेजिंग डायरेक्टर के पद पर रहे.
वाजपेयी और मोदी से रहे मधुर संबंध
वाजपेयी सरकार में पीएमओ (PMO) में तैनात रहते हुए, अश्विनी वैष्णव ने बीजेपी के बड़े नेताओं से संपर्क बना लिया, नरेंद्र मोदी भी उनमें से एक थे. वैष्णव जहां भी रहे, मोदी के लगातार संपर्क में रहे. इसी दौरान ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से भी उनकी नजदीकियां बढ़ती गईं.
बीजेपी और बीजेडी का गठबंधन नौ सालों तक बना रहा. कहते हैं कि अश्विनी वैष्णव की भी इसमें अहम भूमिका रही. बीजू जनता दल और बीजेपी के बीच उन्होंने कई बार सेतु का काम किया. बिना किसी पद पर रहते हुए वैष्णव की गिनती पटनायक के करीबी लोगों में होती रही है. यही वजह है कि बीजेडी भी उन्हें अपने कोटे से राज्य सभा भेजने को तैयार थी, लेकिन बीजेपी ने तो उन्हें अपना बनाने का फैसला कर लिया था.
..जब वाजपेयी के डिप्टी सेक्रेटरी बने
इसके बाद अश्विनी वैष्णव प्रधानमंत्री ऑफिस (PMO) में आ गए. अगस्त 2003 में वे तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के डिप्टी सेक्रेटरी बने. 8 महीनों तक वे इस पद पर बने रहे. वाजपेयी जब सत्ता से हट गए, तब वे उनके निजी सचिव बन गए. इसके बाद वे करीब डेढ़ साल तक गोवा पोर्ट के डिप्टी चेयरमैन रहे.
अश्विनी वैष्णव दो सालों के लिए स्टडी लीव पर चले गए. विदेश से लौटे तो आईएएस की नौकरी से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद वे कई प्राइवेट कंपनियों में वाइस प्रेसिडेंट से लेकर डायरेक्टर के पदों पर नौकरी करते रहे.
आसान नहीं थी राज्यसभा की राह
जब ओडिशा में राज्यसभा के चुनाव चल रहे थे तो नवीन पटनायक चाहते तो राज्यसभा के लिए वे तीनों सीटें जीत सकते थे. 147 सदस्यों वाली ओडिशा विधानसभा में बीजेडी के 111 और बीजेपी के 23 विधायक हैं. लेकिन बीजू जनता दल ने दो ही उम्मीदवार उतारे. तीसरी सीट के लिए पटनायक ने बीजेपी का समर्थन कर दिया. ये असंभव इसी लिए संभव हो पाया क्योंकि बीजेपी ने अश्विनी वैष्णव को राज्य सभा का टिकट दे दिया. कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी ने बीजेडी के साथ डील कर लिया लेकिन सच तो कुछ और है. ये सब अश्विनी वैष्णव के मैनेजमेंट का कमाल है. उनके ही बैच के एक आईएएस अधिकारी बताते हैं कि अश्विनी मिलनसार किस्म के इंसान हैं, लेकिन वे बड़े महत्वाकांक्षी है.
मूल रूप से राजस्थान के जोधपुर के रहने वाले अश्वनी वैष्णव 1994 बैच के आईएएस अफसर रह चुके हैं. जयनारायण व्यास यूनिवर्सिटी से उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की फिर आईआईटी कानपुर से उन्होंने एमटेक किया. अमेरिका के पेंसिलवेनिया विश्वविद्यालय से उन्होंने फायनेंस में एमबीए किया. ओडिशा कैडर के आईएएस अधिकारी रहते हुए वैष्णव को बालासोर का डीएम बनाया गया. ये बात अब से बीस साल पहले की है. उन दिनों ओडिशा में भयंकर समुद्री तूफान आया था. हजारों लोग की मौत हुई थी. बालासोर के डीएम रहते हुए राहत और बचाव के काम पर उनकी बड़ी तारीफ हुई. जब नवीन पटनायक ओडिशा के सीएम बने तो उन्हें कटक का कलेक्टर बनाया गया.
देखना ये होगा की मंत्रिमंडल में मोदी के भरोसे को कायम रखने में अश्विनी कितने कारगर होते हैं, क्योंकि अभी तक के सफर में उन्होंने भरोसे को टूटने को नहीं दिया. जिसके कारण प्रधानमंत्री मोदी ने उनपर भरोसा जताया और मंत्रिमंडल में जगह देकर उनके अभी तक के किये गए काम को सराहा है. और जगह दी गई अब बारी वैष्णव की क्योंकि चुनौतियां और अधिक हो चली है वही प्रधानमंत्री मोदी ने ओड़िशा और राजस्थान दोनों राज्यों को एक साथ साधने की कोशिश की है.
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