नई दिल्ली: केंद्रीय विश्वविद्यालय बीएचयू के एक अध्ययन में रोगियों में बिना चीरफाड़ के सर्वाइकल कैंसर का पता लगाने का तरीका ढूंढ निकाला है. अध्ययन सर्वाइकल कैंसर का पता लगाने के लिए निदान विकसित करने में बहुत उपयोगी हो सकता है, जो दुनिया भर में महिलाओं की मृत्यु के शीर्ष कारकों में से एक है.


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विश्वविद्यालय की रिसर्च टीम ने लगाया पता
विश्वविद्यालय की रिसर्च टीम ने पाया कि सर्वाइकल कैंसर रोगियों के रक्त-नमूनों में सक्युर्लेटिंग सेल फ्री डीएनए की मात्रा बढ़ जाती है. विश्वविद्यालय ने बताया कि बिना चीरफाड़ के वह रोगियों में ट्यूमर लोड का निदान कर सकते हैं. साथ ही इलाज की प्रगति को भी देख सकते हैं.


ये अध्ययन अपनी तरह का पहला ऐसा अध्ययन है, जो जर्नल ऑफ कैंसर रिसर्च एंड थेराप्यूटिक्स (जेसीआरटी) नामक प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. 


अभी सिर्फ टिश्यू बायोप्सी से लगता है सर्वाइकल कैंसर का पता
इस शोध के नतीजे सर्वाइकल कैंसर के इलाज में महत्वपूर्ण नई दिशा दिखा सकते हैं, क्योंकि अभी तक सर्वाइकल कैंसर का पता लगाने का एकमात्र तरीका टिश्यू बायोप्सी ही था, जो काफी दर्द भरा तो होता ही है, ये सबके लिए आसानी से उपलब्ध भी नहीं होता.


काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विज्ञान संस्थान स्थित जैवप्रौद्योगिकी स्कूल में कार्यरत असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. समरेन्द्र सिंह ने यह महत्वपूर्ण अध्ययन किया है. इसमें बेहद उत्साहजनक परिणाम सामने आए हैं.


इस अध्ययन में रोगियों में बिना चीरफाड़ के सर्वाइकल कैंसर का पता लगाने का तरीका ढूंढ निकाला गया है. अध्ययन में डॉ. समरेन्द्र सिंह एवं उनकी टीम ने पाया कि सर्वाइकल कैंसर रोगियों के रक्त-नमूनों में सक्युर्लेटिंग सेल फ्री डीएनए की मात्रा बढ़ जाती है. 


बिना चीरफाड़ के लगेगा पता
उन्होंने दिखाया कि कैंसर रोगी के रक्त नमूनों का उपयोग करके, नॉन-इनवेजिव तरीके से (बिना चीरफाड़ के) वे रोगियों में ट्यूमर लोड का निदान कर सकते हैं और सर्जरी के परिणामों का भी अध्ययन कर सकते हैं. सर्वाइकल कैंसर का पता लगा सकते हैं एवं इलाज की प्रगति को देख सकते हैं. 


यह अध्ययन रेडियोथेरेपी और विकिरण चिकित्सा विभाग, आईएमएस, बीएचयू के सहयोग से किया गया था.


बहुत उपयोगी हो सकता है ये अध्ययन
वे आगे इस शोध के विस्तार में देख रहे हैं कि कैंसर के रोगियों में सक्युर्लेटिंग सेल फ्री डीएनए बड़ी मात्रा में क्यों उत्पादित होता है. पूरा होने पर यह अध्ययन सर्वाइकल कैंसर का पता लगाने के लिए निदान विकसित करने में बहुत उपयोगी हो सकता है.


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