नई दिल्ली: भारत की जीडीपी पिछले 6 सालों में सबसे निचले स्तर तक पहुंच चुकी है. एक-एक कर सभी राजनीतिक दल, अर्थवैज्ञानिक और निजी कंपनियां जो मार झेल रही हैं, वे सब सरकार पर सवालिया निशान खड़े कर रहे हैं. अब इस कड़ी में एनडीए के सहयोगी दल भी आने लगे हैं. पहले तो भाजपा की 30 सालों तक साथ रहने वाली सहयोगी दल शिवसेना ने गच्चा दिया तो अब शिवसेना से भी पुरानी सहयोगी दल पंजाब की शिरोमणी अकाली दल ने भाजपा के अर्थव्यवस्था के लिए बनाई जा रही नीतियों की आलोचना करनी शुरू कर दी है.


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बेरोजगारी अपने चरम पर और नौकरियों में कोई वृद्धि नहीं


शिरोमणी अकाली दल के नेता ने तो हद ही कर दी. उन्होंने कहा कि इस सरकार में प्रतिभा की काफी कमी है. उन्होंने इसका नाम दिया 'टैलेंट डेफिसिट'. यह तो बात थी अकाली दल की. एनडीए के पुराने सहयोगी दलों में से एक ने कहा कि सरकार को जल्द से जल्द एक बैठक बुलानी चाहिए जिसमें सभी पार्टियों के राजनेता, अर्थशास्त्री और विशेषज्ञ पधारें और गर्त में चली गई अर्थव्यवस्था को दोबारा सांस देने के उपायों पर बात हो. अकाली दल के नरेश गुजराल ने कहा कि अर्थव्यवस्था की नाजुक हालात से हम परेशान हैं. यह खतरनाक स्थिति में चला गया है. इतना कि बेरोजगारी अपने चरम की ओर बढ़ रही है और नौकरियों में वृद्धि है कि बढ़ ही नहीं रही. 



मंत्रालय में बैठे मंत्रियों की कोशिशें नाकाफी: अकाली दल


अकाली दल के नेता ने कहा कि एनडीए की पुरानी सहयोगी दल शिवसेना पार्टी का दामन छोड़ चुकी है. अन्य दल भी दोमुहाने पर हैं. उन्होंने कहा कि सहयोगी दल किसी पद या पदवी के लिए स्पर्धा में नहीं लगे हैं, लेकिन बातचीत और पूछताछ होती रहनी चाहिए. अकाली दल के वरिष्ठ नेता गुजराल ने कहा कि मोदी कैबिनेट में टैलेंट की कमी हो गई है. सक्षम नेताओं की कोई कमी नहीं है लेकिन जो मंत्रालयों में बैठे हुए हैं, उनकी कोशिशें नाकाफी हैं. इसके अलावा उन्होंने कहा कि कुछ मंत्रियों को तो जिम्मेदारियों के बोझ से लाद दिया गया है. 


जदयू ने कहा मानी जाए अर्थशास्त्रियों की बात


इस कड़ी में एक सहयोगी दल बिहार की जदयू भी है. जदयू के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी ने भी अर्थव्यवस्था के घटते विकास दर पर चिंता जाहिर करते हुए भाजपा सरकार की आलोचना की. उन्होंने कहा कि वे पब्लिक एंटरप्राइजेज के निजी हाथों में सौंपे जाने और कृषि क्षेत्र में आई उदासीनता से चिंतित हैं. उन्होंने कहा कि सरकार को अर्थशास्त्रियों की या पूर्व गवर्नर की बात को नजरअंदाज नहीं करनी चाहिए. विचारों के आदान-प्रदान के लिए खुला मंच होना चाहिए. इतना ही नहीं सरकार को सभी पार्टियों के नेताओं और आर्थिक जानकारों के साथ एक बैठक रखना चाहिए ताकि सुधार के लिए कुछ तरीकों पर बातचीत हो सके. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी इस बैठक में शामिल करनी चाहिए और उनके मशवरों पर विचार करने की भी आवश्यकता है.



वाजपेयी जी और मनमोहन सरकार में भी नहीं थी ऐसी स्थिति



केसी त्यागी ने कहा कि जदयू एक समाजवादी पार्टी है और इसलिए सार्वजनिक संपत्तियों का निजी हाथों में हंस्तांतरण उसके लिए चिंता का विषय है. उन्होंने कहा कि पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी जी के समय में भी एक अलग से मंत्रालय बनाया गया था जो इसके दुष्परिणामों की जांच करे. यहीं नहीं पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान भी इतनी बुरी स्थिति नहीं थी. इसके अलावा पार्टी के भी कुछ नेताओं ने अर्थव्यवस्था पर टिप्पणी तो नहीं की लेकिन इशारों-इशारों में स्थिति की गंभीरता पर अपनी चिंता जताई.


महाराष्ट्र और हरियाणा में भाजपा को उम्मीद जितनी सफलता नहीं मिल सकी जिसके बाद एक-एक कर नेता और सहयोगी दल पार्टी के ऊपर गाज गिराने से नहीं चूक रहे.