नई दिल्ली: BR Ambedkar and RSS: देश के गृहमंत्री अमित शाह ने संविधान निर्माता डॉ भीम राव अंबेडकर पर सदन में टिप्पणी की. इसके खिलाफ विपक्ष ने मोर्चा खोल दिया. 12 सेकेंड की एक क्लिप सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई, जिसमें शाह सदन में अपनी बात रखते हुए नजर आ रहे हैं. इसके बाद अमित शाह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर खुद का पक्ष रखा और आरोप लगाया कि विपक्ष ने उनकी बात को तरोड़-मरोड़कर पेश किया है. 


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बाबासाहेब का हितैषी कौन
इसी बीच ये बहस छिड़ गई है कि बाबासाहेब अंबेडकर का असल हितैषी कौन है. गृह मंत्री शाह ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने बाबासाहेब को चुनाव हराया, ये उनका सम्मान नहीं करते. जबकि इतिहास के पन्नों में इस बात का भी जिक्र है कि भारतीय जनसंघ और RSS ने भी बाबासाहेब का कुछ मौकों पर विरोध किया था. जब वे कानून मंत्री थे, तब उनके पुतले तक फूंके गए थे.


अंबेडकर लाना चाहते थे हिंदू कोड बिल
यह तब की बात है जब डॉ. अंबेडकर देश के कानून मंत्री हुआ करते थे. नेहरू और अंबेडकर देश की महिलाओं को समान अधिकार देना चाहते थे. इसके लिए वे हिंदू कोड बिल लाना चाहते थे. यह बिल महिलाओं को संपत्ति में समान हिस्सा, तलाक लेने और अंतरजातीय विवाह कैसे अधिकार देता. इसके अलावा, हिंदू पुरुषों को एक से अधिक शादी करने से रोकता. लेकिन इस बिल का कांग्रेस के दक्षिणपंथी धड़े, RSS, हिंदू महासभा, अखिल भारतीय राम राज्य परिषद ने विरोध किया. अखिल भारतीय राम राज्य परिषद ही आगे चलकर भारतीय जनसंघ में शामिल हुई, जो फिर BJP बनी.


जब बाबासाहेब के पुतले जलाए गए
इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब 'इंडिया आफ्टर गांधी' में लिखा- हिंदू कोड बिल विरोधी समिति ने देशभर में सैकड़ों बैठकें की, इनमें हिंदू कोड बिल की जमकर निंदा की गई. बिल का विरोध करने वालों ने खुद को धार्मिक युद्ध (धर्मयुद्ध) लड़ने वाले धार्मिक योद्धाओं (धर्मवीर) के तौर पर पेश किया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने इस बिल के खिलाफ चलाए. 11 दिसंबर, 1949 को दिल्ली के रामलीला मैदान में RSS ने सार्वजनिक बैठक आयोजित की. यहां पर एक वक्ता ने इस बिल को ‘हिंदू समाज पर एटम बम से प्रहार’ बताया. प्रदर्शनकारियों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल और कानून मंत्री डॉ. अंबेडकर के पुतले जलाए.


दुखी बाबासाहेब ने दे दिया इस्तीफा
इसका नतीजा ये रहा कि कांग्रेस को यह बिल वापस लेना पड़ा. डॉ. अंबेडकर ने अपने निकटतम राजनीतिक सहयोगी भाऊराव कृष्णराव दादासाहेब गायकवाड़ को 23 सितंबर 1951 को एक पत्र लिखा. इसमें उन्होंने कहा- 'मैंने 6 अक्टूबर या उसके आसपास इस्तीफा देने का फैसला कर लिया है. इसी तारीख पर हिंदू कोड बिल पास होना था. लेकिन अब लगता है कि इसके पास न होने की संभावना अधिक है. इसलिए मैं पशोपेश में हूं. सत्र शायद 15 अक्टूबर तक खिंचेगा. मैं 15 तक तो सरकार का सदस्य रहूंगा.' फिर बाबासाहेब ने साल 1951 में ही कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था.


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