नई दिल्लीः केंद्र सरकार ने मंगलवार को दिल्ली उच्च न्यायालय से कहा कि वह वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) को अपराध की श्रेणी में रखने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर अपने पूर्व के रुख पर ‘पुनर्विचार’ कर रहा है. इस विषय से जुड़ी याचिकाओं की सुनवाई कर रही पीठ के अध्यक्ष न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने कहा कि केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर कोई निर्णय लेने की जरूरत है.


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याचिकाओं के समूह पर सुनवाई कर रहा कोर्ट
अदालत पत्नी से बलात्कार को लेकर पति को भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत मुकदमे से दी गई छूट रद्द करने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई कर रही है. पीठ में एक अन्य सदस्य न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर भी शामिल हैं. 


'हलफनामे पर कर रहे हैं पुनर्विचार'
केंद्र की ओर से अदालत में पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल (ASG) चेतन शर्मा ने पीठ से कहा, 'सॉलिसीटर (जनरल) ने कहा है कि हम हलफनामे पर पुनर्विचार कर रहे हैं. ये हलफनामे 2015-2017 के दौरान के हैं. ' 


मामले के समाधान के दो ही विकल्पः कोर्ट
न्यायमूर्ति शकधर ने कहा कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के मुद्दे का समाधान करने के लिए सिर्फ दो तरीके हैं- अदालत का फैसला या विधान बना कर. यदि केंद्र अपना रुख स्पष्ट नहीं करता है तो अदालत रिकॉर्ड में उपलब्ध हलफनामे के साथ आगे बढ़ेगी. 


उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को बंद करने का कोई तीसरा तरीका नहीं है. 


अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल ने मांगा वक्त
उन्होंने कहा, 'आपको इस बारे में निर्णय लेने की जरूरत है कि क्या आप जवाबी हलफनामे में जिक्र किए गए अपने रुख पर अडिग रहना चाहते हैं या आप इसे बदलेंगे. यदि आप इसे बदलना चाहते हं तो हमें अवश्य बताएं. ' एएसजी शर्मा ने अदालत से केंद्र को याचिकाओं पर अगले हफ्ते दलील पेश करने की अनुमति देने का आग्रह किया.


बता दें कि केंद्र ने अपने पूर्व के हलफनामे में कहा था कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इससे 'विवाह नाम की संस्था' खतरे में पड़ सकती है. इसे पतियों के उत्पीड़न के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.


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