हवा का रुख तक नहीं भांप पाए राजनीति के मौसम विज्ञानी के पुत्र, झोपड़ी में क्या चिराग से ही लगी आग?
यह भी विडंबना है कि जो पिता राजनीति का मौसम विज्ञानी कहलाता था, उसका बेटा अपने ही घर में बदल रही हवा का रुख नहीं भांप पाया. हवा कब उल्टी हो गई और चिराग से छूटी चिंगारी कब झोपड़ी जलाने लगी, इसकी पूरी कहानी तफसील से बताते हैं. लेकिन पहले यह बताते हैं कि झोपड़ी LJP का चुनाव चिह्न है.
नई दिल्लीः राजनीति में हमेशा दू दूनी चार हो, ऐसा संभव नहीं. यहां कई बार पकड़ मजबूत करने के लिए लोग बड़ी शिद्दत से तेल लगाते हैं और कब किसी का हाथ, हाथों से फिसल जाए कह नहीं सकते. सोमवार की सुबह बिहार की राजनीति ऐसा ही नजारा लेकर आई है.
कभी राज्य की प्रमुख पार्टी रही लोक जनशक्ति पार्टी के मुखिया (चिराग पासवान) में इतनी भी ताकत नहीं बची की वो अपनी दसों उंगलियों से पांच सांसदों का हाथ थामे रह सकें.
चिराग से क्या हुई खता
उनसे हाथ छुड़ा कौन रहा है? खुद कभी उनके पिता राम विलास पासवान की बांह बने रहे चिराग के ही चाचा पशुपति पारस. हाथ पकड़ने, फिसल जाने, अलग हो जाने और हाथ के कमजोर हो जाने की यह कहानी पारिवारिक है या राजनीतिक? अभी तक ठीक-ठीक क्लियर नहीं है, लेकिन जो बातें कही जा रही हैं उनमें सारा ठीकरा चिराग के ही मत्थे मढ़ा जा रहा है.
यह भी विडंबना है कि जो पिता राजनीति का मौसम विज्ञानी कहलाता था, उसका बेटा अपने ही घर में बदल रही हवा का रुख नहीं भांप पाया. हवा कब उल्टी हो गई और चिराग से छूटी चिंगारी कब झोपड़ी जलाने लगी, इसकी पूरी कहानी तफसील से बताते हैं. लेकिन पहले यह बताते हैं कि झोपड़ी LJP का चुनाव चिह्न है.
चिराग के काम करने के तरीके से खुश नहीं कार्यकर्ता
कहानी शुरू होती है यहां से कि एलजेपी के छह सांसदों में से पांच ने चिराग पासवान को संसद के निचले सदन में पार्टी के नेता के पद से हटाने और उनके चाचा पशुपति कुमार पारस को इस पद पर चुने जाने के लिए सहमति दी.
इन पांच सांसदों में प्रिंस राज, चंदन सिंह, वीना देवी और महबूब अली कैसर शामिल हैं, जो चिराग के काम करने के तरीके से खुश नहीं थे. वहीं सांसदों का कहना है कि चिराग के काम करने का तरीका समझ से परे है. वह कार्यकर्ताओं को कुछ समझते ही नहीं हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव से उठा असंतोष
अब पार्टी में टूट का जो सबसे बड़ा कारण बताया जा रहा है वह यह है कि बिहार विधानसभा चुनाव में एलजेपी अलग ही नाव खेने निकल पड़ी. चुनाव से पहले सभी ने अंदरखाने एनडीए के साथ रहने को कहा था लेकिन चिराग ने इसे अनसुना कर दिया.
इसके बाद चिराग पासवान ने किया क्या कि चुनाव में जेडीयू के खिलाफ में कई बार बयानबाजी की. इससे यह समझ ही नहीं बन सकी कि LJP किस धुरी पर काम कर रही है.
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भाजपा के साथ लेकिन JDU का विरोध!
दूसरी बात यह भी कही जा रही है कि चिराग में राजनीतिक तौर पर समझ की कमी है और उदाहरण के लिए फिर से बिहार चुनाव की सीन Zoom कर-करके दिखाए जा रहे हैं. एक तरफ तो एलजेपी और जेडीयू दोनों ही एनडीए के ही साथी-सहयोगी थे तो दूसरी तरफ चिराग को न जाने क्या सूझी कि वह नितीश के खिलाफ ही मुंह खोल रहे थे और खुद को पीएम मोदी का हनुमान बताए जा रहे थे.
अंदरखाने कहा जा रहा है कि BJP इससे बहुत नाराज हो गई थी. वहीं एक नाम सौरव पांडेय का भी आता है. शिकायती यह भी शिकायत करते हैं कि पार्सटी में सब कुछ सौरव पांडेय कर रहे थे. वह निजी सलाहकार हैं चिराग के. ये सारी वजहें जड़ जमाती कि इससे पहले ही चिराग की ओर से लोगों ने खिसकना शुरू कर दिया.
यही वजह है कि आज चिराग चाचा के घर के आगे खड़े हैं, हॉर्न बजा रहे हैं और चाचा हैं कि सुन ही नहीं रहे हैं. देखिए आगे और क्या होता है.
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