`इंडिया` की चौथी बैठक के बाद कांग्रेस के सामने क्या है चुनौती? सीट शेयरिंग फॉर्मूले में नहीं कई पेच...
कांग्रेस के सामने विभिन्न राजनीतिक दलों से बातचीत कर सीट शेयरिंग फाइनल करना एक बड़ी चुनौती है. इनमें से कई राज्य ऐसे हैं जहां कांग्रेस ज्यादा सीटों की डिमांड कर सकती है लेकिन सहयोगी दल शायद इस पर राजी न हों.
नई दिल्ली. 19 दिसंबर को विपक्षी ब्लॉक की चौथी बैठक के दौरान 28 पार्टियों ने जनवरी में अपना संयुक्त अभियान शुरू करने का फैसला किया है. माना जा रहा है कि दिसंबर महीने के अंत तक सीट शेयरिंग फॉर्मूले को लेकर भी बातचीत कर ली जाएगी. चौथी बैठक में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई है. राष्ट्रीय राजधानी में हुई बैठक के दौरान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कांग्रेस के प्रति नरम रुख दिखाया. यही नहीं ममता ने कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को विपक्ष के प्रधानमंत्री प्रत्याशी के रूप में भी प्रस्तावित किया. इस प्रस्ताव का समर्थन दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भी किया है.
खड़गे ने क्यों किया मना?
लेकिन खड़गे ने ममता और केजरीवाल के प्रस्ताव को खारिज किया. उन्होंने सभी विपक्षी दलों से 2024 के लोकसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने पर ध्यान केंद्रित करने को कहा. साथ ही यह भी कहा कि पीएम प्रत्याशी को लेकर फैसला चुनाव के बाद कर लिया जाएगा. खड़गे की बातों का संदेश स्पष्ट था कि वो चाहते हैं कि क्षेत्रीय दल देश भर में बीजेपी और एनडीए के खिलाफ सीटें जीतने पर ध्यान केंद्रित करें.
सीट बंटवारे पर बातचीत के लिए कमेटी
सीट बंटवारे को लेकर खड़गे ने पांच मेंबर वाली राष्ट्रीय गठबंधन कमेटी की घोषणा कर दी है जिसके अध्यक्ष सीनियर कांग्रेसी लीडर मुकुल वासनिक हैं. इस कमेटी में अशोक गहलोत, मोहन प्रकाश, भूपेश बघेल और सलमान खुर्शीद भी शामिल हैं. हाल में हुई CWC की बैठक के दौरान राहुल गांधी ने क्षेत्रीय दलों को जगह देने की बात कही थी. कांग्रेस भी इस बात से सहमत है कि महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, पंजाब, दिल्ली, बिहार, यूपी और तमिलनाडु जैसे राज्यों में सीट शेयरिंग का काम जल्दी निपटा लेना चाहिए.
कम से तीन सप्ताह लगेंगे
कांग्रेस को लगता है कि सीट बंटवारे की बातचीत को किसी नतीजे पर पहुंचने में कम से कम तीन सप्ताह लगेंगे. कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक सीट शेयरिंग पर वार्ता सहज रहेगी, क्योंकि वह बड़ा दिल दिखाने और बड़े भाई की भूमिका निभाने के लिए तैयार है. लेकिन इसके बावजूद उसके सामने कई चुनौतिया हैं. पार्टी को यूपी में सपा के साथ बातचीत करनी है. मुख्य विपक्षी दल के रूप में सपा राज्य में सबसे ज्यादा ताकतवर है. हाल में मध्य प्रदेश में चुनाव के दौरान सीट शेयरिंग को लेकर सपा के साथ रिश्ते तल्ख भी हुए थे. सपा ने चेतावनी दी थी कि सबसे पुरानी पार्टी को उत्तर प्रदेश में 'जैसे को तैसा वाला व्यवहार' मिलेगा. कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि पार्टी के कई नेता चाहते हैं कि राज्य में 20-25 सीटों पर दावा किया जाए, क्योंकि 2009 के लोकसभा चुनाव में उसने 21 सीटें जीती थीं.
सीट शेयरिंग फॉर्मूला चुनौती है
इसके अलावा दिल्ली और पंजाब की बात करें तो कई कांग्रेस नेताओं ने खुले तौर पर गठबंधन करने के बजाय राज्यों में अकेले जाने की आवाज उठाई है. इसके अलावा पश्चिम बंगाल में राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन का टीएमसी के साथ टकराव रहा है. बिहार में कांग्रेस कम से कम 10 सीटें चाहती है. आरजेडी, जेडीयू, वामपंथी दलों के साथ इस संगठन में मौजूद कांग्रेस के सामने ये बड़ी चुनौती होगी.
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