नई दिल्ली. देश की राजधानी दिल्ली और उसके आसपास का इलाका सर्दी आने के बाद से ही प्रदूषण और स्मॉग की समस्या से जूझ रहा है. ऐसा लगभग हर साल होता है. अब इस वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए दिल्ली सरकार जैव एंजाइम के उपयोग की संभावनाएं तलाश रही है.


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इन इलाकों में पायलट प्रोजेक्ट
इसी क्रम में दिल्ली सरकार द्वारा रोहिणी और वजीरपुर इलाकों में एक पायलट परियोजना चलाई गई. इसमें प्रदूषक तत्वों में 30 से 55 फीसदी तक की कमी देखी गई है. यह परियोजना चलाने वाली कंपनी से जुड़ीं पी. मोनिका काव्या ने कहा-अपशिष्ट जल उपचार और लैंडफिल साइट पर प्रदूषण को कम करने के लिए जैव एंजाइम का प्रयोग ज्ञात है, लेकिन, भारत में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए इस पद्धति का उपयोग करने का यह संभवतः पहला उदाहरण है.


8 दिन तक हुआ पायलट प्रोजेक्ट
पायलट परियोजना के दौरान, गत 16 दिसंबर से 24 दिसंबर के बीच कंपनी द्वारा आठ घंटे के तीन चक्रों में ‘एंटी-स्मॉग गन’ का उपयोग करके रोहिणी और वजीरपुर में 5,000 लीटर पानी में एक लीटर जैव एंजाइम मिलाकर बनाए गए घोल का छिड़काव किया गया. छिड़काव के नतीजों से पीएम2.5 के स्तर में 55 फीसदी की गिरावट और पीएम10 के स्तर में औसतन 32 फीसदी की कमी का पता चला है.


लेकिन इस छिड़काव के तीन घंटे के भीतर पीएम2.5 और पीएम10 के स्तर में दोबारा वृद्धि दर्ज की गई. छिड़काव के दौरान नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड की सांद्रता में भी उल्लेखनीय रूप से कमी आई. बता दें कि इंडोनेशिया ने जकार्ता और बाली में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए जैव एंजाइम का प्रयोग किया है.


IIT-दिल्ली के प्रोफेसर और वायु प्रदूषण के मुद्दों के शोधकर्ता मुकेश खरे ने कहा कि वायु प्रदूषण को कम करने के लिए जैव एंजाइम के उपयोग के बारे में अधिक जानकारी सामने नहीं आई है. खरे ने पारिस्थितिकी पर जैव एंजाइम छिड़काव के संभावित प्रभाव के बारे में आगाह किया है.


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