नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर साल की तरह इस साल भी दीपावली जवानों के साथ मना सकते हैं, जवानों का हौसला बुलंद करने के लिए पीएम हर साल वर्दीधारियों से बीच में ही दीवाली मनाते हैं, वो जो अपने घरों से दूर हैं, उनके बीच उनका अभिभावक पहुंचता है तो जवानों का जुनून सातवें आसमान तक पहुंच जाता है. इस बार पीएम ना सिर्फ जवानों संग दीपोत्सव का पर्व मनाया बल्कि जैसलमेर में पाकिस्तान सीमा पर खड़े होकर पड़ोसी को ये भी संदेश देंगे कि जैसा उसने 1965 में किया था, वो गलती दोबारा करने की गुस्ताख़ी भी ना करे, क्योंकि अबकी बार अगर पाकिस्तान ने धोखे से पीठ में छुरा भोंका तो उसे क़ीमत अपनी गर्दन देकर चुकानी होगी.


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पीएम वहां भी जा सकते हैं, जहां का लोहा पाकिस्तान भी मानता है. तनोट माता मंदिर.. प्रधानमंत्री माता के चमत्कारी मंदिर में दर्शन के लिए भी जा सकते हैं, क्या है यहां का इतिहास? क्यों है तनोट माता मंदिर की मान्यता और क्या है इस मंदिर का रहस्य.



रेगिस्तान में हिंद का 'सुरक्षा कवच'


जैसलमेर से करीब 120 किलोमीटर दूर पाकिस्तान बॉर्डर के पास, जहां दूर दूर तक न कोई आबादी है और न रिहाइश. यहीं बॉर्डर पर है अपने चमत्कारों के लिए विख्यात देवी माता का मंदिर. बॉर्ड़र के इस पार हिंदुस्तानियों के लिए ये चमत्कारी तनोट माता का मंदिर है लेकिन बॉर्डर के उस पार पाकिस्तान में ये मंदिर सिर्फ एक मंदिर नहीं. यो पाकिस्तानी फौज के लिए खौफ की एक वजह है. 5 दशक पहले तनोट माता के मंदिर में जो चमत्कार दिखा, उसके गवाह सिर्फ हिंदुस्तानी नहीं बल्कि पाकिस्तान भी रहा था.


जैसलमेर का तनोट भारतीय सीमा का आखिरी गांव है और इसी गांव के नाम पर इस मंदिर का नाम पड़ा. यहीं पर इस बार पीएम मोदी दिवाली मनाए, जवानों के साथ दीपोत्सव मनेगा और साथ ही तनोट माता के मंदिर पर पहुंचकर ना सिर्फ माता के दर्शन करेंगे बल्कि ये भी हो सकता है कि यहीं से मोदी हुंकार भरेंगे.



कहा जाता है कि तनोट माता का मंदिर करीब 1200 साल पुराना है लेकिन ये मंदिर भारतीय जवानों की आस्था का केन्द्र बना आज से 55 साल पहले. 55 साल पुरानी उस कहानी को बताने के लिए इतिहास के कुछ पन्ने भी पलटने जरूरी हैं. 


साल 1965 और 1971 की जंग


3 दिसम्बर से 16 दिसम्बर 1971 के बीच चले पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान 4 दिनों तक जैसलमेर में लोंगेवाला पोस्ट पर हिन्दुस्तान के मुठ्ठी भर जवानों से पाकिस्तान की हज़ारों की फौज से लोहा लिया था और हिन्दुस्तानी सरज़मीं से खदेड़ दिया था. उस युद्ध की यादें लिए सरहद पर बनी लोंगेवाला पोस्ट पर दिवाली मनाने के लिए पीएम पहुंचेंगे. सेना और एसपीजी तैयारियों में जुट चुकी है. ख़बर ये भी है कि पीएम मोदी के इस दौरे में उनके साथ सीडीएस जनरल बिपिन रावत और आर्मी चीफ मनोज मुकुंद नरवणे भी शामिल रहेंगे. लोंगेवाला पोस्ट बेहद अहम है जहां पीएम ने जवानों के साथ प्रकाश उत्सव मनाया. 



लोंगेवाला पोस्ट को लेकर बॉर्डर फ़िल्म बन चुकी है. यहां पर 1971 में पाकिस्तान से भयंकर युद्ध हुआ छथा. पोस्ट की सुरक्षा में पंजाब रेडिमेंट 120 जवान तैनात थे और उन्होंने पाकिस्तान की ओर से आ रही 3 हज़ार जवानों की अटैक फोर्स को मार भगाया था.


पाकिस्तान ने जो हिमाकत की थी, उसकी क़ीमत उसे चुकानी पड़ी और वो क़ीमत जिसे वो सालों साल याद रखने वाला था. याद तो उसे स्पेशल फोर्सेज़ की सर्जिकल भी है और एयर स्ट्राइक तो उसके ज़हन को डरा जा रहा होगा. मोदी की मौजूदगी उन्ही यादों को दुश्मन के ज़हन में हरा कर देंगी


17 से 19 नवंबर 1965 के बीच पाकिस्तान ने तनोट की ओर तीन अलग अलग दिशाओं से तोपखानों का मुंह खोल दिया था. दुश्मन के टैंकर बमों की बारिश कर रहे थे. तनोट की रक्षा के लिए मेजर जय सिंह की कमांड में 13 ग्रेनेडियर की एक कंपनी और सीमा सुरक्षा बल की दो कंपनियां दुश्मन की पूरी ब्रिगेड का सामना कर रही थी.  भारत में 1965 का वो दौर था जब देश के आर्थिक हालात ठीक नहीं थे, लालबहादुर शास्त्री तब देश के प्रधानमंत्री थे. मुल्क अन्न के गंभीर संकट से गुजर रहा था और इसी मुश्किल वक्त में पाकिस्तान ने हिंदुस्तान को कमजोर समझने की भूल की थी, जिसका उसे आज तक पछतावा है.


कहते हैं जब पाकिस्तानी गोले इस इलाके में बरस रहे थे तो कुछ ऐसा चमत्कार हुआ जिसने ना सिर्फ हिन्दुस्तानी जवानों को बल्कि पाकिस्तानी आर्मी अफसरों को भी हैरान कर गया, क्या था वो चमत्कार और क्या है माता के इस मंदिर का रहस्य. कहते हैं, 1965 और 1971 की जंग में पाकिस्तानी सेना ने बॉर्डर पर मौजूद तनोट देवी के मंदिर पर करीब तीन हजार से ज्यादा बस बरसाए लेकिन माता का चमत्कार देखिए, कि मंदिर की दीवारों पर पाकिस्तानियों गोलों से एक खरोंच तक नहीं आई. 



1965 की जंग में तनोट माता मंदिर के परिसर में एक दो नहीं बल्कि साढ़े चार सौ से ज्यादा बम गिरे लेकिन एक भी बम नहीं फटा. मंदिर परिसर में बम गिरते ही फुस्स हो जाते. उस घटना के बाद से ही ये मंदिर बम वाली माता के मंदिर के नाम से मशहूर हो गया. 55 साल पहले पाकिस्तान ने जो गोले तनोट मंदिर पर दागे थे, वो गोले आज भी जस के तस मंदिर के संग्रहालय में आपको रखे मिल जाएंगे.


पाकिस्तानी सेना के अफसर थे भौचक


युद्ध के दौरान अपने बमों का हश्र देखकर पाकिस्तानी सेना के अफसर भी हैरान हो रहे थे. समझ नहीं आ रहा था कि आखिर एक खास इलाके में ऐसा क्या हो रहा था जो उनके गोले एक के बाद एक दगा देने लगे. कहते हैं युद्ध के बाद जब बमों की गिनती हुई तो करीब 3 हजार से ज्यादा बम निकले लेकिन हैरानी देखिए कि इनमें से एक भी बम में न तो विस्फोट हुआ और ना ही उसका बारूद बाहर नहीं निकला.


युद्ध के वक्त पाकिस्तानी सैनिक भी माता के चमत्कारों के गवाह बने. जंग के दौरान जब पाक सैनिक घुसपैठ करते हुए इस मंदिर में दाखिल हुए तो ऐसी स्थिति हुई कि दुश्मन खेमे में खलबली मच गई. मंदिर में घुसे पाकिस्तानी सैनिकों को माता के प्रभाव ने इस कदर उलझा दिया कि रात के अंधेरे में वो अपने ही साथियों को भारतीय सैनिक समझ बैठे और अपने ही जवानों पर गोलियां बरसाने लगे. यानी माता के चमत्कार से दुश्मन सेना खुद अपनी ही सेना को साफ करने लगी.



मोदी का इस मंदिर पर जाना एक बार फिर पाकिस्तान के ज़ख़्मों को कुरेद जाएगा. क्योंकि जैसलमेर का ये वो स्थान है जहां पर पाकिस्तानियों को कब्र खोदी गई थी और यहीं पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल जवानों संग दीवाली मनाया. जैसे श्रीराम लंका विजय के बाद अयोध्या लौटे तो दीवाली मनाई गई उसी तरह एक बार फिर 1965 और 1971 की उस लड़ाई में हिन्दुस्तानी रणबांकुरों के साहस को फिर से याद किया जाएगा.


पाक ब्रिगेडियर ने चढ़ाया छत्र


बॉर्डर पर जिस जगह तनोट माता का मंदिर बना है, वो जगह 1965 के युद्ध से पहले तक गुमनाम थी लेकिन युद्ध में मंदिर के चमत्कार को देखने के बाद ये जगह और मंदिर दोनों पूरी दुनिया में विख्यात हो गए. कहा जाता है कि तनोट माता मंदिर के चमत्कार को देख तब पाकिस्तान के ब्रिगेडियर रहे शाहनवाज खान खुद इस मंदिर में दर्शन के लिए आना चाहते थे, उन्होंने बाकायदा इसके लिए भारत सरकार से इजाजत भी मांगी थी और जब इजजात मिली तो इस मंदिर में पहुंचकर पाकिस्तानी ब्रिगेडियर ने भेंट स्वरूप माता को चांदी का छत्र चढ़ाया था.


बीएसएफ संभालती है मंदिर का प्रशासन


1965 की घटना को पूरे 55 साल बीच चुके हैं लेकिन बॉर्डर की रखवाली करने वाले बीएसएफ के जवान आज भी तनोट माता के मंदिर को अपना कवच मानते हैं. बाद में तनोट मंदिर को बीएसएफ ने अपने नियंत्रण में ले लिया. आज यहां का सारा प्रबन्ध बीएसएफ के हाथों में है. मंदिर में आयोजित होने वाले भंडारों से लेकर और प्रसाद बांटने का काम भी बीएसएफ के जवान ही करते हैं. मंदिर की सुरक्षा का जिम्मा भी बीएसएफ के पास है. मंदिर के पुजारी भी बीएसएफ से जुड़े हैं. सुबह शाम माता के मंदिर में जब आरती होती है तो जवान अपनी यूनिफॉर्म में ही यहां भजन कीर्तन करते हैं.



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