Doctor Prema Dhanraj: आग से जलकर मौत हो जाना या फिर जीवत रहकर जलने का दर्द झेलना आज भी सबसे ज्यादा भयंकर और पीड़ादायक माना जाता है. यह पीड़ित को मानसिक और शारीरिक दोनों ही रूप से दर्दनाक होता है. आग की चपेट में आकर जलने से टिशू और स्किन डैमेज हो जाती है, जिससे आपको असहानित दर्द होता है. आज हम आपको इस आर्टिकल में बताते हैं एक ऐसी डॉक्टर की कहानी, जो मात्र आठ साल की उम्र में आग की चपेट में आने से 50% से भी अधिक जल गई थीं. असहनीय दर्द झेलने के बाद डॉक्टर प्रेमा धनराज ने खुद को रिकवर किया और डॉक्टर बनकर लौंटी. बता दें कि डॉक्टर प्रेमा धनराज को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है. । धनराज एक ऐसी बर्न विक्टिम हैं तो बर्न सर्जन बनीं और जलने की त्रासदी झेलने वाली पीड़ितों की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया. आइए जानतें हैं कि डॉक्टर प्रेमा धनराज के साथ आखिर क्या घटना घटी थी.


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डॉक्टर प्रेमा धनराज...
डॉक्टर प्रेमा धनराज के साथ साल 1965 में दिल दहला देना वाला और बहुत ही दर्दनाक हादसा हुआ. बात उस समय की है. जब प्रेमा धनराज आठ साल की थीं और आम बच्चों की तरह घर में ही इधर-उधर खेल रहीं थीं, खेलते-खेलते प्रेमा धनराज घर की रसोई में चली गईं, इस दौरान रसोई में रके स्टोव पर खाना बन रहा था और अचानक स्टोव में ब्लास्ट हो गया. इस हादसे में प्रेमा धनराज बुरी तरह झुलस गईं थी और उनका शरीर 50% से भी अधिक जल गया था, जिसमें उनका चेहरा और गर्दन पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा था.  


दर-दर भटके परिजन
हादसे में बुरी तरह जलने के बाद उनके परिजन उन्हें लेकर एक महीने से भी अधिक दर-दर भटके. इसके बाद प्रेमा धनराज के सीएस धनराज और राजी धनराज अपनी बेटी को तमिलनाडु के वेल्लोर  क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज ले गए थे. रिपोर्ट्स की जनकारी के मुताबिक प्रेमा धनराज का हाल इतना बुरा था कि हादसे के बाद उनके होंठ उनकी छाती को छू रहे थे. रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रेमा इतना जल गई थीं कि उनकी गर्दन भी पिघल गई थी. इस कारण उनका इलाज कर रही डॉक्टरों की टीम उनकी सांस की नली में ट्यूब नहीं डाल सके. 


12 घंटों तक चली थी सर्जरी...
रिपोर्ट्स के मुताबिक चौथी बार उनका सर्जरी हुई थी. मिली जानकारी के मुताबिक यह सर्जरी करीब 12 घंटों तक चली थी. प्रेमा धनराज की जानकारी के मुताबिक सर्जरी के दौरान उनकी मां ने भगवान से प्रार्थना की थी कि प्रेमा को अगर दूसरा जीवन मिलता है, तो वो मुझे डॉक्टर बनाकर इसी अस्पताल में सेवा करने में जीवन समर्पित कर देंगी. 12 घंटों से भी ज्यादा चली सफल सर्जरी के बाद जब प्रेमा ने अपनी आंखें खोली, तो सबसे पहले उनकी मां ने उनसे कहा कि 'तुम्हे डॉक्टर बनना है'


डॉक्टर भी रह गए दंग...
डर और खौफ के बीच स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रेमा धनराज ने हुबली मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लिया और वहां से एमबीबीएस (MBBS)की पढ़ाई शुरू की. इसके बाद प्रेमा डॉ. एलबीएम जोसेफ से मिली. बता दें कि इन्ही डॉक्टर ने प्रेमा की सर्जरी की थी. प्रेमा का क साहस और हिम्मत देख डॉ. एलबीएम जोसेफ भी आश्चर्यचकित रह गए और उन्हें शब्बशी देते हुए प्रेमा धनराज को प्रोत्साहित करने और मार्गदर्शन देने में हमेशा उनके साथ रहे थे.


मां का वादा किया पूरा.
हिम्मत और साहस के साथ प्रेमा ने बहुत ही मेहनत और अडिग तरीके से अपनी पढ़ाई पूरी की. 
सीएमसी, लुधियाना से प्लास्टिक और रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी में एमडी करने के बाद, डॉ. प्रेमा 1989 में एक सर्जन के रूप में सीएमसीएच लौट आईं और इस तरह उन्होंने अपनी मां का वादा पूरा किया. इस अस्पताल में डॉक्टर प्रेमा धनराज ने 25,000 से भी ज्यादा जले हुए पीड़ितों का निशुल्क इलाज किया. डॉक्टर प्रेमा धनराज की जानकारी के मुताबिक साल 1998 में उन्हें अमेरिका से एक पुरस्कार मिला. इस पुरस्कार की राशि करीब 10,000 डॉलर थी. उन्होंने इस राशि से जले हुए पीड़ितों की मदद के लिए एक एनजीओ शुरू करने की ठानी. डॉक्टर प्रेमा धनराज ने इस एनजीओ का नाम अग्नि रक्षा एनजीओ रखा था. 


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