नई दिल्ली: कोई भी टेस्ट 100% प्रूफ नहीं हो सकता, म्यूटेशन चलने से पहले भी आंशिक रूप से कुछ मामले सामने आए हैं. जिसमें RT-PCR टेस्ट में व्यक्ति नेगेटिव आया, फिर भी उसके अंदर कोरोना का संक्रमण था. इसके लिए हाई रेजोल्यूशन सीटी स्कैन HRCT करवाया जाता है. जहां तक गुजरात के मामले सामने आए हैं अभी तक हमारा रिसर्च पूरा नहीं हुआ है, ना ही डाटा के रूप से यह स्पष्ट होता है कि उन डॉक्टरों के अंदर जो संक्रमण उनके फेफड़ों को संक्रमित कर रहा है, वह शत-प्रतिशत रूप से कोविड-19 है या नहीं.


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ICMR संचारी रोग विभाग की निदेशक डॉ. सिमरन पांडा ने ज़ी हिन्दुस्तान से खास बातचीत करते हुए बताया कि कोई भी टेस्ट 100% प्रूफ नहीं हो सकता.


सभी टेस्ट का अपना-अपना महत्व


भारत सरकार की तरफ से राज्य सरकारों को कहा गया है कि कुल टेस्ट का कम से कम 70% आरटी पीसीआर टेस्ट होना चाहिए, यह पूरी तरीके से ठीक है. जब व्यक्ति के अंदर संक्रमण के लक्षण होते हैं, तब आम तौर पर रैपिड एंटीजन टेस्ट से काम चल जाता है. लेकिन जब व्यक्ति एसिंप्टोमेटक होता है तब संक्रमण का पता लगाने के लिए आरटी पीसीआर टेस्ट किया जाता है.


जिसमें जिनोम को देखा जाता है और म्यूटेशन के शोध के लिए जिनोम स्टडी भी की जाती है, लेकिन आरटी पीसीआर टेस्ट महत्वपूर्ण हथियार है करोना के खिलाफ लड़ाई का.. जहां तक लंग के अंदर संक्रमण का सवाल है, एच आर सिटी टेस्ट से काफी हद तक स्पष्ट हो जाता है कि फेफड़ों में इन्फेक्शन है या नहीं.


कोई भी वैक्सीन पूरी सुरक्षा की गारंटी नहीं


किसी भी वैक्सीन की ये गारंटी नहीं होती कि आपको संक्रमण से शत-प्रतिशत सुरक्षा मिल जाएगी, लेकिन मृत्यु दर में कमी जरूर आएगी. क्रिटिकल केस कम होंगे, तो आईसीयू, वेंटीलेटर, ऑक्सीजन जैसे संसाधनों की बचत हो सकती है. यह भी संभावना है कि वैक्सीन एक डोज लगने के बाद दूसरे डोज के बीच आप संक्रमण का शिकार हो जाए, लिहाजा आपको कोविड-19 एप्रोप्रियेट बिहेवियर पर जरूर ध्यान देना है.


मास्क लगाने से लाखों की जान बच सकती है


वैक्सीन का असर आने में समय लगता है, लेकिन मास्क लगाते ही असरदार साबित होता है. अगर देश के 90% जनसंख्या मास्क लगाएगी तो हम एक लाख से ज्यादा जान महामारी के दौरान बचा सकते हैं.


भारतीय टीकाकरण सुरक्षित


जहां तक यूनियन के कई देशों में एस्ट्रेजनेका का ट्रायल युवाओं पर किया गया था, इसलिए टीकाकरण भी युवाओं पर किया गया. बहुत कम लेकिन पर्याप्त संख्या में ऐसे मामले आए हैं, जहां युवाओं के अंदर ब्लड क्लोटिंग पाई गई है. लेकिन यह यूरोप कनाडा और ऑस्ट्रेलिया की स्थिति है. भारत में 45 वर्ष से कम आयु के लोगों को वैक्सीन दी ही नहीं जा रही, लिहाजा भारतीय टीकाकरण कार्यक्रम पूरी तरह से सुरक्षित है.


कोविशिल्ड की कमी से टीकाकरण पर असर नहीं


अगर सिरम इंस्टीट्यूट की तरफ से यह जानकारी दे दी गई है कि अमेरिका और यूरोप से महत्वपूर्ण एपीआई और अलग-अलग कंपोनेंट नहीं मिल पा रहे हैं, जिससे वैक्सीन के प्रोडक्शन पर आंशिक असर पड़ सकता है, तो भी भारत के टीकाकरण अभियान पर इससे ज्यादा अंतर नहीं आएगा. क्योंकि भारत की स्वदेशी वैक्सीन भारत बायोटेक आईसीएमआर का प्रोडक्शन रेट तेजी से बढ़ रहा है, लिहाजा वैक्सीन की कमी नहीं होगी.


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