Explainer: अब बिहार में `चाचा-भतीजा` की रार, जानें कहां फंसा चिराग और पशुपति पारस का पेंच?
Chirag Paswan vs Pashupati Paras: चिराग पासवान और पशुपति पारस के बीच रामविलास पासवान की मौत के बाद से राजनीतिक द्वंद्व चल रहा है. इस बार दोनों के बीच हाजीपुर लोकसभा सीट विवाद का जड़ बनी है.
नई दिल्ली: Chirag Paswan vs Pashupati Paras: देश की सियासत में अक्सर चाचा-और भतीजा के बीच रार देखने को मिलती है. उत्तरप्रदेश में अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच खूब तकरार हुई थी. महाराष्ट्र पर भी एनसीपी के नेता शरद पंवार और भतीजे अजित पंवार के बीच राजनीतिक रस्साकशी चली थी. अब बिहार में भी लोजपा इसी अंतर्कलह से जूझ रही है. देश की राजनीति के मौसम वैज्ञानिक कहलाने वाले नेता रामविलास पासवान के निधन के बाद लोजपा के दो फाड़ हो गए. दोनों धड़ों के बीच भाजपा ने पुल बनने की कोशिश की लेकिन इसका कोई खास असर देखने को नहीं मिला.
कहां फंसा पेंच
एनडीए की बैठक के दौरान केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस और चिराग पासवान को एक-दूसरे के गले लगते हुए देखा गया था. उस वक्त लगा कि सब सहज हो गया है. लेकिन दोनों के बीच की सियासी जंग अब तक जारी है. इस बार मुद्दा बनी है हाजीपुर लोकसभा सीट. दरअसल, पूर्व केंद्रीय मंत्री और लोजपा के संस्थापक हाजीपुर लोकसभा सीट से कई बार सांसद रह चुके हैं. यह सीट लोजपा की पारंपरिक सीट मानी जाती है. इस सीट से अपने पहले ही चुनाव में 1977 में पासवान ने 4.24 लाख वोटों से जीत दर्ज की थी. रामविलास की मृत्यु के बाद चिराग इस सीट पर अपना दावा पेश कर रहे हैं. चिराग इस सीट से अपनी मां रीना को चुनावी समर में उतारना चाहते हैं. जबकि उनके चाचा और रामविलास के भाई पशुपति इस सीट को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं. चिराग खुद जमुई सीट से सांसद हैं.
क्या बोले चाचा पशुपति
पशुपति पारस लोजपा के स्थापना दिवस के पर हाजीपुर में शक्ति प्रदर्शन करने जा रहे हैं. पशुपति ने हाजीपुर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा, ' हम हर साल 28 नवंबर को लोजपा का स्थापना दिवस पटना में मनाते हैं. लेकिन इस साल पटना में नहीं बल्कि हाजीपुर में आयोजित किया जाएगा. यह राम विलास पासवान की कर्मभूमि रही है. यह एक बदलाव होगा. यह हर साल एक ही प्रकार के भोजन की एकसरता को दूर करने के लिए एक अलग व्यंजन आजमाने जैसा है.' चिराग पर टिप्पणी करते हुए पारस ने कहा कि उन्हें पहले हमें यह बताना चाहिए कि वह किस पार्टी के टिकट पर सीट पर चुनाव लड़ना चाहते हैं. उनकी पार्टी नहीं, बल्कि दलदल है.
'भाजपा के इकलौते साथी'
केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस ने कहा कि साल 2019 में बिहार में NDA के तीन घटक दल थे और उसने 39 सीट जीती थीं. अब केवल दो दल बचे हैं. हम भाजपा के इकलौते स्थिर सहयोगी हैं. लोकसभा में दल के कुल पांच सांसद हैं. हम इन सभी सीट पर चुनाव लड़ेंगे और बिहार में एनडीए को अपना शानदार प्रदर्शन करने में मदद करेंगे.
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