नई दिल्लीः कृषि कानूनों को लेकर सरकार और किसानों के बीच शुक्रवार को हुई बैठक भी बिना किसी नतीजे के खत्म हो गई. किसान नेताओं और सरकार के बीच करीब तीन घंटे तक बात चीत चली, लेकिन इसका कोई हल नहीं निकला. अब 15 जनवरी को 9वें दौर की बैठक की जाएगी. किसानों ने फैसला लिया है कि 11 जनवरी को किसान संगठन बैठक करेंगे. 


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किसानों की ओर से सामने आया कि वह हां या ना की बात पर ही अड़े हुए थे. ऐसे में बातचीत का सारा पेंच इसी पर फंसा रहा. शुक्रवार को बैठक के इस हाल के बाद अब फिर से एक बार सबकी निगाहें अगले दौर की होने वाली बैठक पर टिक गई है. 


चार जनवरी की बैठक भी रही थी बेनतीजा
कृषि कानूनों  (Farms Law) पर जारी गतिरोध को दूर करने के लिए प्रदर्शनकारी किसान संगठनों और तीन केंद्रीय मंत्रियों के बीच आठवें दौर की वार्ता हुई. केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, रेलवे, वाणिज्य एवं खाद्य मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य राज्य मंत्री तथा पंजाब से सांसद सोम प्रकाश करीब 40 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने विज्ञान भवन में बातचीत की.


बता दें कि इससे पहले, चार जनवरी को हुई वार्ता बेनतीजा रही थी, क्योंकि किसान संगठन तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग पर अड़े रहे, वहीं सरकार ‘समस्या’ वाले प्रावधानों या गतिरोध दूर करने के लिए अन्य विकल्पों पर ही बात करने पर जोर दिया.



किसान संगठनों और केंद्र के बीच 30 दिसंबर को छठे दौर की वार्ता में दो मांगों, पराली जलाने को अपराध की श्रेणी से बाहर करने और बिजली पर सब्सिडी जारी रखने को लेकर सहमति बनी थी. बता दें कि सरकार के साथ बातचीत से पहले बृहस्पतिवार को हजारों किसानों ने ट्रैक्टर रैली निकाली. प्रदर्शनकारी किसानों ने कहा कि वे तीनों कानूनों में संशोधन के केंद्र के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेंगे.


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दिल्ली की सीमाओं पर डटे हैं किसान


भीषण ठंड के बावजूद पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश के हजारों किसान एक महीने से ज्यादा समय से दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर डटे हुए हैं. किसान कृषि कानूनों को निरस्त करने, फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानूनी गारंटी देने तथा दो अन्य मुद्दों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं.


इस साल सितम्बर में अमल में आए तीनों कानूनों को केंद्र सरकार ने कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार के तौर पर पेश किया है. सरकार का कहना है कि इन कानूनों के आने से बिचौलियों की भूमिका खत्म हो जाएगी और किसान अपनी उपज देश में कहीं भी बेच सकेंगे. दूसरी तरफ, प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों का कहना है कि इन कानूनों से एमएसपी का सुरक्षा कवच खत्म हो जाएगा और मंडियां भी खत्म हो जाएंगी तथा खेती बड़े कारपोरेट समूहों के हाथ में चली जाएगी.



विभिन्न विपक्षी दलों और अलग-अलग क्षेत्रों के लोगों ने भी किसानों का समर्थन किया है, वहीं पिछले कुछ हफ्ते में कुछ किसान संगठनों ने कृषि मंत्री से मुलाकात कर तीनों कानूनों को अपना समर्थन दिया है. सरकार ने पिछले महीने प्रदर्शनकारी किसान संगठनों को एक प्रस्ताव भेजा था जिसमें नए कानून में सात-आठ संशोधन करने और एमएसपी की व्यवस्था पर लिखित आश्वासन देने की बात कही गयी थी.


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