नई दिल्ली : केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को अब तक सबसे अहम विधेयकों में शामिल डेटा प्रोटेक्शन बिल को मंजूरी दी है. अगर यह बिल पास होता है तो इसके तहत आम आदमी की किसी भी तरह की जानकारी उसकी बिना इजाजत के लेना, उसे प्रयोग करना और शेयर करना कानूनी तौर पर जुर्म होगा.  केंद्र सरकार का कहना है कि डेटा प्रोटेक्शन बिल के प्रावधानों को इसमें शामिल करने के लिए कई देशों के डेटा प्रोटेक्शन से संबंधित कानूनों को समझकर उनका अध्ययन किया गया है.  केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मौजूदा दौर की जरूरतों को देखते हुए इस विधेयक सबसे जरूरी बताया. 


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शीतकालीन सत्र के आने वाले दिनों में विधेयक सदन में पेश किया जाएगा. इसके कुछ जरूरी पहलुओं पर डालते हैं नजर-


सबसे जरूरी बात, विधेयक का आधार क्या है
भारतीय संविधान गोपनीयता के अधिकार (राइट टू प्राइवेसी) को मूल अधिकारों का अंग मानता है. यही अधिकार इस विधेयक का आधार है. बिल को तैयार करने के लिए सरकार ने लोगों से सलाह भी मांगी थी. बिल में सबसे ज्यादा जोर डेटा को शेयर करने में लोगों की सहमति को लेकर दिया गया है. इसको लेकर सख्त नियम बनाए गए हैं. इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट का अगस्त 2017 में दिया गया एक आदेश भी उल्लेखनीय है. कोर्ट ने कहा था कि बिना किसी की मंजूरी या इजाजत के  किसी तरह का डेटा लेना या उसे शेयर करना कानूनन अपराध होगा. किसी भी तरह के व्यक्तिगत डेटा को केवल और केवल भारत में ही संरक्षित किया जा सकता है.



पर्सनल डेटा क्या है? जिसकी सुरक्षा की बात की जा रही है


ऐसी कोई भी जानकारी जिससे एक आदमी की पहचान जाहिर होती है, वह पर्सनल डेटा, यानी कि व्यक्तिगत जानकारी है. इसमें किसी का नाम, उसकी फोटो, घर-दफ्तर का पता खास तौर पर शामिल हैं. इसके बाद आगे बढ़ें तो वह सारे दस्तावेज, जहां इस जानकारी का जिक्र है वह सब कुछ भी पर्सनल डेटा है. इसमें सीधे तौर पर सरकारी पहचान पत्र, वोटर कार्ड, आधार, पैन कार्ड आते हैं. अब इससे एक कदम और ऊपर बढ़ें तो कुछ जानकारियां ऐसी हैं जो संवेदनशील यानी कि सेंसेटिव होती हैं. इनमें रुपयों का लेन-देन, बैंक ट्रांजेक्शन, जाति, धार्मिक विचार, सेक्सुअलिटी, शामिल हैं.


 इन पर प्रोटेक्शन यानी सुरक्षा के जरिये कैसे बचाव हो सकेगा
पर्सनल डेटा को उस समय किसी भी वक्त जमा किया जा सकता है, जब उपभोक्ता इनकी सहायता से कोई काम कर रहा है.  जैसे गैस कनेक्शन लेना है, फोन कनेक्शन लेना है या किसी पॉलिसी और सरकारी योजना का लाभ लेना है तो वहां व्यक्तिगत डेटा देने की जरूरत पड़ती है. ऐसे में जब आप संबंधित संस्थान में अपना डेटा शेयर करेंगे तो वह सिर्फ आपके उसी काम के लिए प्रयोग किया जा सकेगा, जिसके लिए आपने अपनी जानकारी दी है. 



यानी कि संस्थान आपके डेटा को कहीं और शेयर नहीं कर पाएगा. अगर ऐसा करता है तो वह अपराध होगा.


विशेष परिस्थिति में ही शेयर होगा डेटा, लेकिन शर्तों के साथ
जब आप किसी कंपनी या आर्गेनाइजेशन से अपना पर्सनल डेटा शेयर करते हैं तो उस डेटा का सिर्फ संबंधित चीजों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. जरूरत पड़ने पर ही इस डेटा को किसी और के साथ शेयर किया जा सकता है. तीसरी पार्टी सिर्फ उतने ही डेटा का इस्तेमाल कर पाएगी जितने की उसे जरूरत हो. बिल में प्रावधान है कि पर्सनल डेटा की एक सर्विंग कॉपी संबंधित राज्य में स्टोर की जाएगी. कुछ महत्वपूर्ण पर्सनल डेटा को देश में स्टोर किया जाएगा. कुछ परिस्थितियों में पर्सनल डेटा का इस्तेमाल किया जा सकता है. अगर मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ रहा तो सरकार इसका इस्तेमाल कर सकती है. किसी अपराध को रोकने, उसकी जांच करने या प्रॉसीक्यूशन के लिए, कानूनी कार्यवाही के लिए, व्यक्तिगत या घरेलू उद्देश्यों के लिए. इसके साथ ही रिसर्च और पत्रकारिता के क्षेत्र में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.


इसे कैसे नियंत्रित किया जाएगा?
डेटा लेने वाले संगठनों के नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक डेटा प्रोटेक्शन अथॉरिटी (DPA) का गठन किया गया है. यह अथॉरिटी ही इसे नियंत्रित करेगी. अगर डेटा के साथ छेड़छाड़ होती है या गलत इस्तेमाल होता है, तो इस पर यह नजर रखेगी. इस अथॉरिटी की जिम्मेदारी होगी कि जो भी पर्सनल डेटा के साथ छेड़छाड़ करें, उनकी जांच कर नियमों के अनुसार सजा दिलवाना. नियम को तोड़ने पर किसी कंपनी या आर्गेनाइजेशन को डेटा प्रोटेक्शन अथॉरिटी को जुर्माना देना होगा. पीड़ित लोगों के नुकसान की भरपाई करनी होगी. पर्सनल डेटा के गलत इस्तेमाल से लोग जेल भी जा सकते हैं. विधेयक में 5 साल तक की सजा के प्रावधान किए गए हैं. विधेयक में डेटा सिक्योरिटी के नियमों के उल्लंघन पर 15 करोड़ रुपये या कंपनी के वर्ल्डवाइड टर्नओवर का 4% तक जुर्माने का नियम है.


अब इसका मसौदा बनाने वाले को जान लेते हैं
डेटा प्रोटेक्शन बिल में जो प्रावधान लाने की तैयारी है उसका मसौदा तैयार किया है, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बीएन कृष्णा ने. 



डेटा संरक्षण की बहस शुरू होने के बाद बीएन कृष्णा की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई. विभिन्न पहलुओं पर विचार करते हुए जुलाई 2018 में इस समिति ने डेटा प्रोटेक्शन बिल की सिफारिशें रखीं. इसमें निजता के अधिकार को आधार माना गया साथ ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश को भी संज्ञान में लाया गया. यह समिति 2017 में बनाई गई थी.