तिहरे हत्याकांड में 25 साल जेल में रहा मुजरिम, अब SC ने 'नाबालिग' बताकर किया रिहा
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तिहरे हत्याकांड में 25 साल जेल में रहा मुजरिम, अब SC ने 'नाबालिग' बताकर किया रिहा

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसे मुजरिम को रिहा किया है जिसने पहले फांसी की सजा सुना दी गई. बाद में राष्ट्रपति ने उसकी फांसी की सजा को कम करके उम्रकैद में तब्दील कर दिया था. हालांकि अब अदालत ने मुजरिम को यह कहकर रिहा कर दिया है कि जब उसने जुर्म किया था वो तो नाबालिग था. 

तिहरे हत्याकांड में 25 साल जेल में रहा मुजरिम, अब SC ने 'नाबालिग' बताकर किया रिहा

तिहरे हत्याकांड मामले में 25 साल की सजा काट चुके एक शख्स की रिहाई का सुप्रीम कोर्ट ने अनोखा आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश इस जानकारी के सामने आने के बाद दिया है कि जिस समय उसने इस अपराध किया था, तब वो नाबालिग था, उसकी उम्र सिर्फ 14 साल थी. हालांकि इससे पहले दिलचस्प बात ये रह रही जिस शख्श की रिहाई का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है, उसे पहले सभी अदालतों उसके नाबालिग होने की दलील खारिज करते हुए मौत की सजा तक सुना दी थी. जबकि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत नाबालिग को ज्यादा से ज्यादा तीन साल की सजा ही दी जा सकती है.

क्या था मामला

ओम प्रकाश नाम के इस शख्श को करीब तीस साल (नवंबर 1994) में उत्तराखंड के देहरादून में रिटायर्ड कर्नल, उसके बेटे और बहन की हत्या का दोषी करार दिया था. ओम प्रकाश घर पर नौकर का काम करता था. घरवालो ने उसके पर्स से पैसों की चोरी और घरवालों के साथ बदतमीजी की हरकतों के मद्देनजर जब उसे नौकरी से निकालने का फैसला लिया तो उसने रिटायर्ड कर्नल, उसके बेटे, उनकी बहन की धारदार हथियार से वार कर हत्या कर दी. ओमप्रकाश ने रिटायर्ड कर्नल की पत्नी पर भी जानलेवा हमला करने की कोशिश की लेकिन किसी तरह वो जान बचाने में कामयाब रही. इस घटना के बाद ओम प्रकाश फरार होकर पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी से पांच साल बाद 1999 में जाकर गिरफ्तार कर लिया. 

निचली अदालत ने SC तक ने दी फांसी की सज़ा

मामले में कार्रवाई का सामना करते हुए ओम प्रकाश को 2001 में निचली अदालत ने फांसी की सज़ा सुनाई. हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने भी अपराध की जघन्यता को देखते उसकी फांसी की सज़ा को बरकरार रखा. हालांकि उसने निकली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक अपने नाबालिग होने की दलील दी. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट में उसकी रिव्यू और क्यूरेटिव पिटीशन भी खारिज हो गई.

राष्ट्रपति ने कम कर दी सजा

ओमप्रकाश की तरफ से राष्ट्रपति के सामने दया याचिका भी दाखिल की. राष्ट्रपति ने 2012 में उसकी फांसी की सजा को उम्रकैद में ज़रूर बदला लेकिन साथ ही कहा कि जब तक वो साठ साल की उम्र नहीं पूरी कर लेता तब तक उसकी रिहाई नहीं होगी.

फिर से खटखटाया HC का दरवाजा

ओमप्रकाश ने सुप्रीम कोर्ट आने से पहले हाईकोर्ट में एक बार फिर याचिका दाखिल करते हुए इस बार उसने हड्डी की जांच रिपोर्ट और स्कूली रिकॉर्ड से जुड़े वह सबूत कोर्ट के सामने रखे, जिसमें उसके घटना के समय नाबालिग होने की पुष्टि होती थी. हालांकि हाईकोर्ट ने यह कहते हुए इस अर्जी पर कोई राहत देने से इनकार कर दिया कि एक बार राष्ट्रपति की तरफ से मामले का निपटारा हो जाने पर केस को दोबारा नहीं खोला जा सकता और कोर्ट इस मामले में राष्ट्रपति के आदेश की न्यायिक समीक्षा नहीं कर सकता.

SC ने रिहा करते वक्त क्या कहा

हालांकि सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट की इस राय से सहमत नज़र नहीं आया. सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अगर मुकदमे की किसी भी स्तर पर आरोपी के नाबालिग होने के सबूत मिलते हैं तो अदालत को उसी के मुताबिक कानूनी प्रक्रिया अपनानी चाहिए. जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने कहा कि इस मामले में दोषी ने कम शिक्षित होने के बावजूद निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक हर जगह अपने नाबालिग होने की दलील को रखा लेकिन हर स्टेज पर उसके रखे सबूत को नजरअंदाज कर दिया गया. अदालतों की तरफ से की गई इन गलतियों का खामियाजा उसे भुगतना पड़ा. वो जुवेनाइल होने के नाते ज्यादा से ज्यादा तीन साल की सज़ा काटने के बाद समाज मे शामिल होकर आम जिंदगी बिता सकता था, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. उसका जो वक़त बर्बाद हुआ उसकी भरपाई नहीं की जा सकती.

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