हरियाणा: गृह मंत्री ने IAS अधिकारी खेमका के खिलाफ नहीं दी जांच की मंजूरी, 12 साल पुराना है मामला
हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने सिफारिश की है कि राज्य भंडारण निगम की तरफ से 12 साल पुराने मामले में वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अशोक खेमका के खिलाफ दर्ज किए गए एक मामले में जांच की मंजूरी से ‘‘इनकार किया जा सकता’’ है.
नई दिल्लीः हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने सिफारिश की है कि राज्य भंडारण निगम की तरफ से 12 साल पुराने मामले में वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अशोक खेमका के खिलाफ दर्ज किए गए एक मामले में जांच की मंजूरी से ‘‘इनकार किया जा सकता’’ है. वर्ष 1991 बैच के आईएएस अधिकारी खेमका को उनके तीन दशक लंबे करियर में 50 से अधिक बार स्थानांतरित किया गया है और प्राय: आरोप लगाया जाता है कि उन्हें ईमानदार होने एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने पर निशाना बनाया गया.
विज ने निगम के तत्कालीन एमडी के मामले में की थी जांच की सिफारिश
हालांकि, विज ने इस साल की शुरुआत में निगम के तत्कालीन एमडी संजीव वर्मा के खिलाफ खेमका की शिकायत पर दर्ज की गई प्राथमिकी में जांच के लिए मंजूरी की सिफारिश की है. वर्मा भी भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के वरिष्ठ अधिकारी हैं. खेमका ने अपने खिलाफ वर्मा द्वारा 20 अप्रैल को शिकायत दर्ज कराए जाने के कुछ घंटों बाद ही आपराधिक साजिश और आधिकारिक दस्तावेजों में जालसाजी के आरोप में वर्मा के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी.
दिलचस्प बात यह है कि हरियाणा सरकार ने मंगलवार को राज्य के सतर्कता और पुलिस विभाग को किसी लोकसेवक के खिलाफ ऐसी स्थिति में पूर्व अनुमति के बिना जांच में आगे बढ़ने की अनुमति दी, जब लोक सेवक का कथित कृत्य "नि:संदेह" आपराधिक प्रकृति का हो, जहां भारतीय दंड संहिता से संबंधित अपराध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के साथ पंजीकृत हो.
पंचकूला पुलिस ने दर्ज किया था मामला
पंचकूला पुलिस ने संजीव वर्मा की ओर से 20 अप्रैल, 2022 को दी गई शिकायत के आधार पर मामला दर्ज किया था. इसमें 12 साल पहले एमडी के रूप में खेमका के कार्यकाल के दौरान भंडारण निगम में दो अधिकारियों की भर्ती में अनियमितता का आरोप लगाया गया था. कथित अनियमितताएं अक्टूबर 2009 और जनवरी 2010 के बीच एमडी के रूप में खेमका के कार्यकाल के दौरान की गईं नियुक्तियों से संबंधित हैं.
मामला आईपीसी की धारा 420 और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 के तहत दर्ज किया गया था. विज ने कहा कि आरोप से कोई अपराध नहीं दिखता और ऐसा कोई बेईमान इरादा प्रतीत नहीं होता जो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 के तहत अपराध दिखाने के लिए आवश्यक है.
प्राथमिकी दर्ज करने से पहले पूर्व स्वीकृति जरूरी
गृह मंत्री ने कहा कि इसी तरह के एक अन्य मामले में राज्य के महाधिवक्ता की कानूनी राय पर भरोसा करते हुए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज करने से पहले सक्षम प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति आवश्यक है. विज ने अपने नोट में सिफारिश की है, "इसलिए, प्राथमिकी संख्या 170 में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17 ए के तहत मंजूरी से इनकार किया जा सकता है." वहीं, विज ने इस साल की शुरुआत में संजीव वर्मा के इशारे पर 12 साल से अधिक पुराने मामले में झूठा मामला दर्ज कराए जाने संबंधी खेमका की शिकायत पर दर्ज प्राथमिकी में जांच के लिए मंजूरी की सिफारिश की है.
गृह मंत्री ने अपनी सिफारिश में कहा, ‘प्राथमिकी संख्या 171 आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज की गई थी. इसलिए प्राथमिकी संख्या 171 से जुड़ी जांच के लिए किसी पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं है.’ उन्होंने कहा है, "पुलिस द्वारा बाद में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 को जोड़ा गया. प्राथमिकी संख्या 171 में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 के तहत कथित अपराध की जांच के लिए पूर्व मंजूरी दी जा सकती है." इस बीच, मुख्यमंत्री ने आदेश दिया है कि राज्य के गृह मंत्री की सिफारिश को मुख्य सचिव के माध्यम से भेजा जाए.
यह भी पढ़िएः BSNL के लिए 1.64 लाख करोड़ के पैकेज को मंजूरी, BBNL के विलय को भी मंजूरी
Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.