नई दिल्ली: अनुकंपा नियुक्ति के मामले में एक महत्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति के मामले में पत्नी का ही हक है, और इस मामले में मृतक की नौकरीपेशा मां परिवार की सदस्यता की परिभाषा में शामिल नहीं होती. मुख्य न्यायाधीश अरूप कुमार और जस्टिस नरेश कुमार की बेंच ने ये फैसला सुनाया है.


क्या है पूरा माजरा?


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याचिकाकर्ता मुनिया के पति उदीप्तो मुखर्जी छत्तीसगढ़ सरकार में शासकीय कर्मचारी के रूप में कार्यरत थे. कोरोना के चलते पिछले साल उदीप्तों की मृत्यु हो गयी. मुनिया देवी ने पति की मौत के बाद अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया. विभाग ने मुनिया के आवेदन को ये कहते हुए निरस्त कर दिया कि उनकी सास भी शासकीय कर्मचारी हैं.


अनुकंपा नियुक्ति नियमों के अनुसार एक घर में कोई ओर भी शासकीय कर्मचारी हो तो किसी अन्य को अनुकंपा नियुक्ति दी जा सकती. इस आधार पर मुनिया को अनुकंपा नियुक्ति की पात्रता नही मानते हुए उनके आवेदन को खारिज किया गया.


हाईकोर्ट में चुनौती


सरकार द्वारा मुनिया के आवेदन को निरस्त करने के आदेश को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी. हाईकोर्ट की सिंगल बैंच ने मामले में याचिकाकर्ता मुनिया के पक्ष में फैसला देते हुए अनुकंपा नियुक्ति देने के आदेश दिये


सिंगल बैंच के खिलाफ विभाग ने खण्डपीठ के समक्ष अपील की. मुख्य न्यायाधीश  अरूप कुमार की खण्डपीठ ने इस मामले की विस्तृत सुनवाई के बाद ये महत्वपूर्ण फैसला देते हुए विभाग की अपील को खारिज कर दिया.


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हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा विवाहित मृतक की नौकरी पेशा मां परिवार की सदस्यता की परिभाषा में नही आती हैं. अनुकंपा नियुक्ति पर पत्नी का हक हैं.


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