`बजरंग दल बैन` के वादे ने कांग्रेस को मुस्लिम बहुल पुराने मैसूर में फायदा पहुंचाया? आंकड़ों में जानें हकीकत
दक्षिण कर्नाटक क्षेत्र में कांग्रेस को करीब 30 सीटें मिली हैं. वहीं इस इलाके में बेहतरीन प्रदर्शन करती रही जेडीएस को करीब 14 सीटें मिलीं. इसके अलावा बीजेपी के हिस्से चार-पांच सीटें आईं. इसी इलाके में कांग्रेस ने पिछले चुनाव में 14 सीटें जीती थीं तो वहीं जेडीएस के खाते में 24 सीटें आई थीं. वहीं बीजेपी के हाथ 9 सीटें आई थीं.
नई दिल्ली. कर्नाटक में चुनाव प्रचार के दौरान 'बजरंग दल से जुड़े विवाद' को कांग्रेस की रणनीतिक भूल माना जा रहा था लेकिन यह एक मास्टरस्ट्रोक साबित होता दिख रहा है. नतीजों को देखकर ऐसा लग रहा है कि सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को इस विवाद से कोई लाभ नहीं हुआ. इसके बजाए पुराने मैसूर के क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं का जबरदस्त ध्रुवीकरण कांग्रेस के पक्ष में हुआ और पार्टी को प्रचंड जीत मिली.
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण कर्नाटक क्षेत्र में कांग्रेस को करीब 30 सीटें मिली हैं. वहीं इस इलाके में बेहतरीन प्रदर्शन करती रही जेडीएस को करीब 14 सीटें मिलीं. इसके अलावा बीजेपी के हिस्से चार-पांच सीटें आईं. इसी इलाके में कांग्रेस ने पिछले चुनाव में 14 सीटें जीती थीं तो वहीं जेडीएस के खाते में 24 सीटें आई थीं. वहीं बीजेपी के हाथ 9 सीटें आई थीं.
पुराने मैसूर के इलाके में परंपरागत तौर पर वोक्कालिग्गा वोटर जेडीएस के समर्थक रहे हैं. वहीं मुस्लिम वोटर जेडीएस और कांग्रेस के बीच बंटे हुए रहते थे और दोनों ही पार्टियों को इनके मत मिलते थे. लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि 'बजरंग दल बैन' के वादे के कारण कांग्रेस को मुस्लिम एकमुश्त मिले और उसका नतीजा फाइनल नंबर्स में दिख रहा है. पार्टी को इलाके से करीब 14-15 सीटों का फायदा हुआ.
जीत के पीछे कई अहम वजहें
ऐसा नहीं है कि इतनी प्रचंड जीत के पीछे सिर्फ एक वजह हो. कांग्रेस के पक्ष में कई फैक्टर ने एकसाथ काम किया. इनमें से एक प्रमुख वजह 4% मुस्लिम आरक्षण के नियम को दोबारा बहाल करने का वादा भी रहा है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी सरकार के निर्णय पर स्टे लगा दिया था.
सिद्धारमैया के संदेश का असर!
इसके अलावा एक मामला पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से भी जुड़ा हुआ है. सिद्धारमैया ने पुराने मैसूर की वरुणा सीटर पर लोगों के बीच संदेश दिया कि इलाके से एक मुख्यमंत्री जीतकर बेंगलुरु पहुंचने वाला है. सीधा इशारा था कि अगर सिद्धारमैया चुनाव जीते तो वो राज्य की सर्वोच्च राजनीतिक कुर्सी पर बैठ सकते हैं. उनके इस वादे पर भरोसा करने की वजह भी थी क्योंकि सिद्धारमैया राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं.
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