EX PM Manmohan Singh, Muslim Minority and Sachchar Committee: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का गुरुवार की रात देहांत हो गया. वो भारत के पहले सिख और अल्पसंख्यक प्रधानमंत्री थे. उन्होंने पहली बार भारत के मुसलमानों के सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक हालत का जायजा लेने और उनके हालात में सुधार लाने के लिए सुझाने के मकसद से सच्चर समिति का गठन किया गया. इस समिति की सिफरिश्नें भले ही देश में लागू नहीं हो पाई लेकिन इस रिपोर्ट ने भारत के मुसलमानों की फटेहाली पर लगे पैबंद/ चीथड़े को दुनिया के सामने जाहिर कर दिया.
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नई दिल्ली: मुल्क के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ( Ex PM Manmohan Singh) का गुरुवार की रात इंतकाल हो गया. वो देश के पहले सिख और अल्पसंख्यक प्रधानमंत्री थे. वह 2004-09 और 2009-14 तक भारत के प्रधान मंत्री रहे. वो दुनिया के मशहूर इकोनॉमिस्ट में से एक थे. 2008 की विश्व आर्थिक मंदी के दौरान जब दुनिया की बड़ी- बड़ी इकॉनमी वाले देश बर्बाद हो रहे थे, उस वक़्त भारत में मनमोहन सिंह की रहनुमाई में यहाँ की इकॉनमी 7 फीसदी की ग्रोथ रेट से कुलाचे भर रही थी. इस वजह से पूरी दुनिया उनके कुशल आर्थिक नीतियों का लोहा मानती है.
मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भारत के मुसलमानों के लिए एक बड़ा काम हुआ, जो हमेशा मनमोहन सिंह के उपलब्धियों के तौर पर याद किया जाता रहेगा. मार्च, 2005 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA)) सरकार के एक्तेदार में आने के महज 6 माह बाद ही भारत में मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक हालत का मुताला करने और उनके हालात में सुधार लाने के लिए एक्दमात सुझाने के मकसद से सच्चर समिति (Sachchar Committee) का गठन किया गया. इस समिति की सदारत दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजिंदर सच्चर और छह दीगर सदस्यों ने की थी. समिति ने 30 नवंबर, 2006 को लोकसभा को अपनी 403 पेज की रिपोर्ट सौंपी थी. रिपोर्ट में मुस्लिम समुदाय के सामने आने वाले मुद्दों पर रौशनी डाली गयी और देश के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन में उनकी भागीदारी को बेहतर बनाने के तरीके सुझाए गए.
रिपोर्ट में पाया गया कि राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक प्रासंगिकता के मामले में मुस्लिम हाशिए पर हैं. इसमें यह भी पाया गया कि उनकी औसत स्थिति देश के पिछड़े और दलित समुदायों के बराबर या उनसे भी बदतर है. रिपोर्ट में भारत में विविध समुदायों के समावेशन और समान व्यवहार को बढ़ावा देने के लिए समान अवसर आयोग और अन्य पहलों की स्थापना की सिफारिश की गई.
सच्चर कमेटी (Sachchar Committee) की सिफारिशें
सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में मुस्लिम समुदाय के हालत सुधारने के लिए कई सिफ़ारिशें की गई
सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े मामलों में निवारण, नियंत्रण, और पीड़ितों के पुनर्वास के लिए कानून बनाना
अल्पसंख्यक समुदायों के लिए मदरसों और स्कूलों की तादाद और उनके लिए फंड बढ़ाना
14 साल तक के बच्चों को मुफ़्त और अच्छी क्वालिटी की तालीम मुहैया कराना
मुस्लिम अक्सिरियत वाले इलाकों में नए सरकारी स्कूल खोलना
देश के मदरसों को हायर सेकंडरी स्कूल बोर्ड से जोड़ना
मुस्लिम अक्सिरियत वाले इलाकों में कौशल विकास के लिए नए आईटीआई (ITI) और पॉलिटेक्निक संस्थान खोलना
वक्फ़ संपत्तियों का मुसलमानों की तरक्की में बेहतर तरीके से इस्तेमाल करना
चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन में अल्पसंख्यक बहुल इलाकों को एससी सीट के लिए आरक्षित न करना
समान अवसर आयोग बनाना, ताकि मुल्क के बाकी पसमांदा लोगों की तरक्की के साथ मुसलमानों को भी तरक्की में एक बराबर मौका मिले
मुस्लिम इलाकों में बैंक खोलना और मुस्लिमों को आसानी से लोन मुहैया कराना
सच्चर कमेटी (Sachchar Committee) की रिपोर्ट की आलोचना
सच्चर कमेटी की रिपोर्ट की कुछ सिफारिशों और कार्यप्रणाली के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा. कुछ लोगों ने रिपोर्ट को असंवैधानिक बताया, कहा कि यह सांप्रदायिक है और देश को विभाजित करेगी. खासकर भाजपा ने सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के लिए कांग्रेस और मनमोहन सिंह की हमेशा आलोचना की और उसे मुस्लिम तुष्टिकरण का जरिया बताया. भाजपा ने मनमोहन सिंह के एक बयान को तोड़मरोड़ कर चुनावों में खूब भुनाया, जिसमें मनमोहन सिंह पर यह इलज़ाम लगाया गया की उन्होंने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ अल्पसंख्यकों का है.
सच्चर समिति (Sachchar Committee) की रिपोर्ट का असर
सच्चर समिति की रिपोर्ट भारत में मुस्लिम प्रश्न पर बहस में एक मील का पत्थर साबित हुई. इसके कुछ सिफारिशों को लागू भी किया गया और उसका फायदा भी हुआ. लेकिन सच्चर समिति की रिपोर्ट की ज़्यादातर सिफारिशों को लागू नहीं किया जा सका. लेकिन आज़ाद भारत में भारतीय मुसलमानों के "पिछड़ेपन" को उजागर करने वाली पहली यह पहली सरकारी रिपोर्ट थी. इससे मुसलमानों को भले ही कोई ख़ास फायदा नहीं हुआ, लेकिन मनमोहन सिंह से इस रिपोर्ट के जरिये भारत के मुसलमानों की फटेहाली को देश और दुनिया के सामने उजागर कर दिया. इसके साथ ही इस रिपोर्ट ने पहली बार भारत के मुसलमानों को अपने फटे हालात और उसपर लगे पैबंद को झाँकने को मजबूर किया, जो इससे पहले तक खुद को नवाब समझते थे.