नई दिल्लीः पश्चिम बंगाल में बुधवार को घोषित पंचायत चुनाव में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने निसंदेह रूप से अपना परचम लहराया, लेकिन इसके पीछे छिपे संकेतों से पता चलता है कि विपक्ष ने 2018 के मुकाबले अपने दायरे में बहुत अधिक विस्तार किया है. तथ्य यह है कि 2018 में टीएमसी ने 34 प्रतिशत सीट निर्विरोध जीती थीं, लेकिन इस बार ऐसी सीट की संख्या बहुत कम थी जहां निर्विरोध जीत दर्ज की गई और इससे सत्ताधारी दल के लिए लड़ाई ‘कठिन’ हो गई. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

लोकसभा चुनावों पर दिखेगा असर?
मतदान करने के तरीके में इस बदलाव का अर्थ यह हो सकता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव परिणाम की तस्वीर उस तस्वीर से बिल्कुल अलग हो सकती है जिसे सत्ताधारी पार्टी और मुख्य विपक्षी दल, दोनों ही देखना चाहते हैं. थिंक टैंक ‘कलकत्ता रिसर्च ग्रुप’ के सलाहकार एवं वरिष्ठ राजनीतिक टिप्पणीकार रजत रॉय ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘पिछली बार विपक्ष केवल 20 प्रतिशत ग्राम पंचायत सीट हासिल करने में कामयाब रहा था, लेकिन इस बार उन्होंने अब तक लगभग 27-28 प्रतिशत सीट हासिल कर ली हैं.


हिंसा भी एकतरफा नहीं
रॉय ने इंगित किया कि हिंसा भी इस बार पिछले सालों की तरह एकतरफा नहीं रही, सभी दल अनैतिक कृत्यों में संलिप्त हुए और अपने प्रतिद्वंद्वियों पर हमला किया. उन्होंने कहा कि हिंसा का रूप बदल गया है और इसने जमीनी हकीकत को भी काफी हद तक बदल दिया है. ग्राम पंचायत चुनाव की 63,219 सीट के लिए हुए चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) लगभग 10 हजार सीट जीतने में कामयाब रही, लेकिन वाम दल और कांग्रेस ने भी सम्मिलित रूप से करीब 6000 सीट पर जीत दर्ज की.


2018 से अलग है चुनावी नतीजों की तस्वीर
ताजा तस्वीर 2018 की तस्वीर से अलग है जब ग्राम पंचायत की 48,650 सीट के लिए हुए चुनाव में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और कांग्रेस ने सम्मिलित रूप से केवल 1500 सीट पर जीत दर्ज की थी, लेकिन भाजपा को 5800 सीट पर विजय मिली थी. माकपा के एक नेता ने कहा कि यह स्पष्ट रूप से वाम पुनरुत्थान है जिसे चुनाव परिणामों में देख सकते हैं, विशेष रूप से मुर्शिदाबाद, नादिया, हुगली और बर्धमान जिलों में. 


उन्होंने कहा कि असल में इसके पहले बालीगंज निर्वाचन क्षेत्र के उपचुनावों में ही इसकी शुरुआत हो गई थी जब उनकी पार्टी ने भाजपा को हराकर साबित कर दिया कि टीएमसी का असली विकल्प वाम दल है. माकपा नेता सायरा शाह हलीम ने कहा, रणनीति में बदलाव, प्रवासी श्रमिकों, गरीब किसानों और गांवों से बड़े शहरों में रोजाना यात्रा करने वाले सेवा वर्ग जैसे विशिष्ट लक्ष्य समूहों पर ध्यान केंद्रित करने, युवा उम्मीदवारों को मैदान में उतारने और युवा प्रचारकों का इस्तेमाल करने से हमारे संदेश को फैलाने में मदद मिली. 


रॉय ने कहा, ‘‘वामपंथ-कांग्रेस के पुनरुत्थान की कहानी उल्लेखनीय है. हालांकि, इस घटना का मतलब यह भी है कि भाजपा के साथ सत्ता विरोधी वोटों का बंटवारा होगा और यह 2024 के चुनावों में टीएमसी के पक्ष में काम कर सकता है. वर्ष 2021 के चुनाव में टीएमसी ने 49.59 प्रतिशत वोट हासिल किये थे, लेकिन भाजपा ने 37.39 प्रतिशत वोट हासिल करके 77 सीट पर जीत दर्ज की. 


इस पंचायत चुनाव में भाजपा को लगभग 16 प्रतिशत सीट पर जीत हासिल हुई है. वर्ष 2007 में सिंगूर आंदोलन के बाद वामपंथ से टीएमसी में स्थानांतरित होने के बाद अल्पसंख्यक वोट सत्तारूढ़ दल के साथ मजबूती से बना हुआ है. लेकिन पर्यवेक्षकों ने कहा कि इस पंचायत चुनाव के रुझानों से पता चला है कि अल्पसंख्यक समुदाय ने टीएमसी के पक्ष में रहने के बजाय सबसे मजबूत गैर-भाजपा उम्मीदवार का समर्थन करने की रणनीति को अपनाया. 


Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.