नई दिल्ली: सार्वजनिक परिवहन सेवाओं में बस, ट्रेन, लोकल ट्रेन हो या मेट्रो यात्रा कर रही महिलाओं को पुरूषों द्वारा अनुचित तरीके से छूना एक यौन हमला है और ऐसा करने वाले को यकीनन जेल जाना पड़ेगा. मुंबई की एक विशेष पॉक्सो अदालत ने ऐसे ही एक मामले में आरोपी मोहसीन को किसी तरह की राहत देने से इंकार करते हुए तीन साल की सजा और 35 हजार के जुर्माने की सजा सुनाई है. ग्रेटर मुंबई की फोर्ट की पॉक्सो सेशन कोर्ट के जज ए डी देव ने ये फैसला सुनाया है.


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सभी मामलों की रिपोर्ट नहीं होती
अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए अफसोस भी जताया कि सार्वजनिक परिवहन के दौरान पुरूष द्वारा अनुचित तरीके से छूने का अनुभव प्रत्येक आम महिला द्वारा किया जाता है. जो कि एक बहुत ही सामान्य तौर पर किया जाने वाला यौन हमला हो गया है. लेकिन ऐसे प्रत्येक मामलों में महिला ये सोचकर अनदेखा कर देती है, कि इस यात्रा के बाद छूने वाला व्यक्ति दुबारा नही मिलेगा. इसलिए इस तरह के लगभग सभी हमलों की रिपोर्ट नहीं की जाती है.


दिव्यांग महिला के ब्रेस्ट को छुआ  
4 अगस्त 2017 को पीड़िता एक नाबालिग अपनी दिव्यांग चाची के साथ मुंबई की लोकल ट्रेन में सफर कर रही थी. दोनो दिव्यांगो के लिए रिया रोड़ पर आयोजित होने वाले एक कार्यक्रम में शामिल होने जा रहे थे. दोनो ने लोकल ट्रेन के दिव्यांग कोच में सफर कर रही थी. सफर के दौरान आरोपी मोहसीन ने दिव्यांग महिला के ब्रेस्ट को छुआ, जिस पर वो चिल्लाते हुए उसे एक थप्पड़ मारा. नाबालिग ने भी इसी प्रकार की शिकायत करते हुए आरोपी पर अनुचित तरीके से छूने का आरोप लगाया. ट्रेन के कोच में मौजूद दूसरे यात्रियों ने आरोपी मोहसीन को पकड़ लिया. कुरला स्टेशन आने पर नाबालिग ने एक अन्य यात्री के साथ मिलकर आरोपी को पुलिस थाने में सौप दिया.


बिना अपंगता के कर रहा था दिव्यांग कोच में सफर
पुलिस पूछताछ में सामने आया कि आरोपी बिना अपंगता के ही दिव्यांग कोच में सफर कर रहा था. नाबालिग व उसकी चाची द्वारा रिपोर्ट दर्ज कराने पर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. जांच के बाद पुलिस ने आरोपी मोहसीन पर पोक्सो एक्ट की धारा 8, आईपीसी 345 और  विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत आरोप तय किये. नाबालिग बालिका, उसकी चाची के साथ 4 अन्य या​त्रियों की गवाही के आधार अदालत ने मोहसीन को गलत तरीके से छूने का दोषी माना.


हम नजरअंदाज नहीं कर सकते
दोषी घोषित किये गये मोहसीन की ओर से अधिवक्ताओं ने सजा के बिंदु पर राहत देने की गुहार लगायी. बचाव पक्ष ने कहा कि आरोपी की एक विधवा मां भी है, जो आर्थिक रूप से उस पर ही निर्भर है. आरोपी द्वारा पहली बार अपराध किये जाने का भी तर्क दिया देते हुए उदारता दिखाने का अनुरोध किया गया. अदालत ने ये कहते हुए आरोपी को इस मामले में कोई राहत देने से इंकार कर किया कि इस मामले में एक पीड़िता जहां नाबालिग है तो दूसरी एक दिव्यांग महिला. ये भी एक बड़ी बात है कि वे अपने साथ हुए इस घटना के लिए पुलिस तक पहुंची हैं.


अदालत ने अपने फैसले में नोबेल पुरस्कार विजेता नेल्सन मंडेला के बयानों का जिक्र करते हुए फैसला सुनाया.


There can be no keener revelation of a society's soul than the way in which it treats its children”.
Safety   and   security   don't   just   happen,   they   are   the   result   of   collective consensus and public investment. We owe our children the most vulnerable citizens   in   our   society,   a   life   free   of   violence   and   fear.”— Nobel Prize Laureate  Mr. Nelson Mandela


अदालत ने कहा कि बच्चे यौन हमले के सबसे बड़े शिकार हैं, उन्हें सुरक्षा और सुरक्षित माहौल देना हम सभी का कर्तव्य है. अदालत ने आरोपी को तीन साल जेल और 35 हजार रूपये के अर्थदंड की सजा सुनायी. आरोपी से प्राप्त हुए राशि में से 10-10 हजार रूपये पीड़िता नाबालिग और दिव्यांग महिला को देने के आदेश दिए गए हैं. अदालत ने सजा के बाद आरोपी मोहसीन की जमानत खारिज करते हुए जेल भेजने के आदेश दिये हैं.


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