नई दिल्ली, छत्तीसगढ़ के दुर्ग में 2004 में दिनदहाड़े युवती की चाकू मारकर हत्या करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा हैं. सुप्रीम कोर्ट ने दोषी को राहत देने से इंकार करते हुए उसकी उम्रकैद की सजा को बहाल रखा हैं. कोर्ट का फैसला आने से करीब 3 साल पूर्व ही दोषी को छत्तीसगढ सरकार जेल से रिहा कर चुकी है.जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस विक्रमनाथ की बैंच ने इस मामले में दायर अपराधिक अपील को भी खारिज कर दिया हैं.
दूसरे से बात करते देख कि थी हत्या
सुरेश यादव उर्फ गुड्डू मृतका से प्रेम करता था. एक दिन मृतका को किसी ओर से बात करते हुए देखने पर उसने दिनदहाड़े उसकी हत्या कर दी. आरोपी ने 21 इंच के चाकु से अपनी प्रेमिका के शरीर पर 12 से ज्यादा बार हमला किया. जिससे युवती के शरीर पर कई गहरे घाव होने से उसकी मौत हो गयी. हत्या करते हुए उसे गांव के ही एक व्यक्ति ने देखा. बाद में पुलिस ने सुरेश यादव को गिरफतार कर लिया जेल भेज दिया. ट्रायल के बाद 2004 में एडिशनल सेशन जज दुर्ग ने युवती की हत्या के मामले में सुरेश यादव को उम्रकैद की सजा सुनायी. छत्तीसगढ हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए उम्रकैद की सजा को बहाल रखा.
बचाव पक्ष के तर्को को किया खारिज
मामले में कोर्ट द्वारा नियुक्त किये गये न्यायमित्र ने दोषी के बचाव में कहा कि जिस चश्मदीद गवाह की गवाही के आधार पर फैसला सुनाया गया हैं उसकी गवाही पर भरोसा नही किया जा सकता. क्योकि जब मृतका को बेरहमी से मारा जा रहा था, तब उसने कथित तौर पर ना तो कोई सचेत करने के लिए चिल्लाया और ना ही मृतका को बचाने का ही प्रयास किया. सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमित्र के इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि गवाह की गवाही सिर्फ इस आधार पर रद्द नही कि जा सकती कि उसने मृतका की हत्या के समय उसे बचाने का प्रयास नही किया.
छत्तीसगढ सरकार कर चुकी है रिहा
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ आरोपी सुरेश यादव की ओर से सुप्रीम कोर्ट में सजा निलंबन को लेकर 2013 में अपील दायर कि गयी. आरोपी ने ये याचिका जेल के अधीक्षक द्वारा जेल याचिका के रूप में कोर्ट में दायर कि गयी थी. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने दोषी की पैरवी के लिए एक न्यायमित्र नियुक्त किया. अपील पर फैसले से ही पूर्व ही दोषी सुरेश यादव को छत्तीसगढ सरकार ने 7 सिंतबर 2019 को रिहा कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने अपील को खारिज करते हुए कहा कि इस अपील के फैसले का कोई भी प्रभाव छत्तीसगढ सरकार द्वारा किये गये रिहाई आदेश पर नही होगा. सुप्रीम कोर्ट ने मामले के निस्तारण के लिए छत्तीसगढ सरकार और न्यायमित्र की भी तारीफ की हैं.
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