Independence Day 2022: गांधी की एक शर्त, नेहरू-पटेल की वो जिद, जिससे जन्मा पाकिस्तान
Independence Day 2022: हिंदुस्तान पर राज करने वाले अंग्रेज जाते-जाते भारत और पाकिस्तान का बंटवारा करके चले गए. लेकिन, सवाल उठता है कि `जब तक मैं जिंदा हूं. भारत का विभाजन नहीं होने दूंगा` कहने वाले महात्मा गांधी क्या बंटवारे के दौरान हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे? क्या विभाजन की विभीषिका का अंदाजा जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे नेताओं को नहीं था? जानिए इनके जवाबः
नई दिल्लीः Independence Day 2022: भारत और पाकिस्तान आज दो अलग-अलग मुल्क हैं, लेकिन 14 अगस्त 1947 से पहले दुनिया के नक्शे में एक राष्ट्र था, हिंदुस्तान. इस पर ब्रिटिश हुकूमत का शासन चलता था. लेकिन, फिर ऐसा क्या हुआ कि हिंदुस्तान पर राज करने वाले अंग्रेज जाते-जाते इस सुंदर मुल्क को दोफाड़ करके चले गए. लेकिन, सवाल उठता है कि 'जब तक मैं जिंदा हूं. भारत का विभाजन नहीं होने दूंगा' कहने वाले महात्मा गांधी क्या बंटवारे के दौरान हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे? क्या विभाजन की विभीषिका का अंदाजा जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे नेताओं को नहीं था?
'जिन्ना के हाथ में थी भारत के इतिहास की चाबी'
दरअसल, इन सवालों के जवाब लैरी कॉलिन्स और डोमिनिक लैपियर की किताब फ्रीडम एट मिडनाइट (Freedom at Midnight) किताब में मिलते हैं. कॉलिन्स और लैपियर लिखते हैं, 'उन दिनों भारत के इतिहास की चाबी न गांधी के हाथ में थी, न किसी और के हाथ में, बल्कि वह मोहम्मद अली जिन्ना के हाथ में थी. जिन्ना मुसलमानों का मसीहा था- जिद्दी और कठोर. वह जिन्ना ही था, जिसने वह समस्या खड़ी की, जो रानी विक्टोरिया के प्रपौत्र को वायसराय के रूप में भारत पहुंचने पर भारी परेशानी में डालने वाली थी.'
आखिरी वायसराय के रूप में भारत आए थे लार्ड माउंटबेटन
दरअसल, लार्ड माउंटबेटन आखिरी वायसराय के रूप में भारत आए थे. उन्हें भारत से ब्रिटिश हुकूमत को समेटने का जिम्मा मिला था. माउंटबेटन ये पद स्वीकारना नहीं चाहते थे, लेकिन अनिच्छा के बावजूद ब्रिटिश साम्राज्य का भारत में उग रहा सूरज अस्त करने के लिए उन्हें आना पड़ा. इसे लेकर किताब में लिखा है, 'यह वायसराय अपने हवाई जहाज के नजदीक टहलता हुआ, बुदबुदा रहा था, यानी... आखिर हम भारत जा रहे हैं. मैं जाना नहीं चाहता. वहां कोई मुझे बुलाना नहीं चाहता. शायद हमें जल्दी ही लौटना पड़े. तब कहीं हमारी पीठें गोलियों से छलनी हो चुकी हों.'
माउंटबेटन जानते थे कि उनकी राह में कितनी मुश्किलें आने वाली हैं. मुस्लिम लीग 16 अगस्त 1946 को 'डायरेक्ट एक्शन' के जरिए कांग्रेस और अंग्रेजों को चेतावनी दे चुकी थी. उनका साफ संदेश था कि मुसलमान पाकिस्तान लेकर रहेंगे.
गांधी बंटवारा न करने की लगाते हैं गुहार
फ्रीडम एट मिडनाइट के अनुसार, 'जिन्ना ने कसम खाई थी कि हम भारत को बांटकर रहेंगे या फिर हम इसे नष्ट कर देंगे.' भारत पहुंचे माउंटबेटन पहले जवाहर लाल नेहरू से मिलते हैं. इसके बाद वह महात्मा गांधी से मुलाकात करते हैं. माउंटबेटन के साथ बातचीत में महात्मा गांधी बार-बार यही कहते हैं, 'भारत को तोड़िएगा नहीं. काटिएगा नहीं. खून की नदियां बहती हैं, तो बहें.' माउंटबेटन उन्हें कहते हैं, 'अंग्रेजों के मन में विभाजन की कोई जिद पहले से बैठी हुई नहीं है. इसके बावजूद इस प्रश्न पर सोच-विचार तो करना ही होगा कि विभाजन के अलावा अन्य कौन-कौन से उपाय आजमाए जा सकते हैं. क्या आपके पास कोई उपाय है?'
विभाजन रोकने के लिए ये था गांधी का उपाय
किताब के अनुसार, 'गांधी के पास एक उपाय था. विभाजन को रोकने के लिए वह इस सीमा तक आतुर थे कि उन्होंने वही सोच रखा था, जो कभी राजा सोलोमन ने सोचा था. बच्चे को काटकर आधा-आधा न बांटो.पूरा बच्चा ही मुसलमानों को दे दो. जिन्ना अपनी मुस्लिम लीग के साथ सामने आएं, सरकार बनाएं, देश के तीस करोड़ हिंदुओं पर राज करें. भारत का मात्र एक टुकड़ा जिन्ना को क्यों दिया जाए? क्यों न पूरा भारत ही दे दिया जाए?'
यह सुनकर हैरान माउंटबेटन महात्मा गांधी से पूछते हैं, 'आपका प्रस्ताव इतना अजब है कि क्या कांग्रेस पार्टी इसे स्वीकार कर सकेगी.' इस पर महात्मा गांधी कहते हैं, 'कांग्रेस की केवल एक इच्छा है- विभाजन न हो- चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े.'
इस पर माउंटबेटन बोलते हैं, 'यदि आप इस प्रस्ताव पर कांग्रेस की औपचारिक स्वीकृति लाकर दे सकें तो मैं भी विचार करने के लिए राजी हूं.' गांधी कहते हैं, 'यदि जरूरत पड़ी तो मैं भारत के कोने-कोने में जाकर एक-एक आदमी से बात करूंगा, एक-एक की स्वीकृति लाकर आपको दूंगा.'
गांधी ने नेहरू-पटेल के सामने रखा प्रस्ताव
फ्रीडम एट मिडनाइट के अनुसार, गांधी के अपनों के उनके साथ मतभेद सिर उठाने लगे थे. महात्मा गांधी अपने साथियों से कह रहे थे कि उनकी योजना स्वीकार कर लें. अच्छी या बुरी, जैसी भी योजना है, यह एकमात्र है. यदि भारत को एकता की डोर में बांधकर रखना है तो इसी योजना को स्वीकार करते हुए प्रधानमंत्री का पद जिन्ना को दे देना चाहिए.
गांधी से सहमत नहीं थे नेहरू और पटेल
लेकिन, नेहरू और पटेल के तर्कों के आगे गांधी टिक नहीं पा रहे थे. नेहरू और पटेल दोनों ने कहा कि एकता के लिए भी त्याग एक सीमा तक किया जा सकता है और प्रधानमंत्री का पद जिन्ना को देना उस सीमा का अतिक्रमण करना ही होगा. गांधी के इस दावे से दोनों असहमत थे कि यदि विभाजन किया गया, तो खून की नदियां बह चलेंगी.
कॉलिन्स और लैपियर लिखते हैं, 'नेहरू और पटेल की असहमति ने उनका (गांधी) का दिल तोड़ दिया. वह जान गए कि अब उन्हें वायसराय के पास जाकर स्वीकार करना होगा कि कांग्रेस पार्टी मेरा साथ निभाने को तैयार नहीं है.' इस तरह भारत का बंटवारा रोकने वाले गांधी के प्रस्ताव को नेहरू और पटेल ठुकरा देते हैं.
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