पांच मोर्चों पर जूझ रहे भारत को देश की जनता का साथ चाहिए!
आज देश की जनशक्ति का आवाहन कर रहा है भारत. यह भारत की मोदी सरकार का ही पराक्रम है कि पांच-पांच मोर्चों पर एक साथ संघर्ष करते हुए कहीं भी और किसी भी स्तर पर देश के आत्मसम्मान को कमज़ोर नहीं होने दिया है. यह राष्ट्र के आत्मविश्वास की शक्ति है और यह राष्ट्रप्रेम की विजय है.
नई दिल्ली. देश की सरकार देश के हित के लिए संघर्ष कर रही है इसलिए देश की जनता को भी सरकार का साथ कंधे से कंधा मिला कर देना चाहिए. भारत की मोदी सरकार कोरोना, चीन, नेपाल और पाकिस्तान के अतिरिक्त देश की ढहती अर्थव्यवस्था से भी एक ही समय में संघर्ष कर रही है. इस संक्रमण-काल में देश की सरकार को देश की जनता से समर्थन की अपेक्षा है. इसी बात को दूसरे शब्दों में इस तरह कहा जा सकता है कि देश की जनता को भी इन पांचों मोर्चों पर समानान्तर युद्ध लड़ना होगा. देश के हर नागरिक का देश की सरकार के प्रति यह कर्तव्य बनता है कि इन पांचों मोर्चों पर बराबर से वह साथ निभाये, यही देश के नागरिकों का अपने राष्ट्र के प्रति कर्तव्य भी है.
प्रथम मोर्चा: कोरोना से घनघोर युद्ध
इंग्लैण्ड, स्पेन, रूस, ब्राज़ील आदि अपेक्षाकृत कम जनसंख्या वाले देशों की कोरोना-बदहाली को देखें और उसकी तुलना विश्व की दूसरी सर्वाधिक आबादी वाले देश भारत से करें तो पता चलता है कि भारत कोरोना से जंग के मामले में अभी तक कितना पराजित नहीं हुआ है. यहां तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी भारत की प्रशंसा करते हुए कहा है कि जिस तरह कोरोना को भारत ने नियंत्रित करके रखा है वह दुनिया के दूसरे देशों के लिए एक प्रेरणा है. और हां हमारी आयुष्मान भारत योजना की भी कोरोना से जंग में एक अहम भूमिका निभाने के लिए सराहना की जानी चाहिए.
द्वितीय मोर्चा: चीन का जबरिया सीमा-विवाद
चीन से सीमा विवाद, वो भी इस समय जब सारी दुनिया की तरह भारत भी कोरोना से जूझ रहा है, अत्यंत चुनौतीपूर्ण स्थिति है. लेकिन आत्मविश्वास के धनी प्रधानमंत्री मोदी और उनकी टीम ने सीमा पर जोरदार सैन्य-तनातनी के बावजूद किसी तरह से देश के भीतर कोई तनाव नहीं पैदा होने दिया है. यद्यपि भारत की राष्ट्रभक्त जनता ने स्थिति की गंभीरता को समझा है और चीन को जमीनी मोर्चे पर हराने की तैयारी कर ली है. दूसरे शब्दों में कहें तो कल 10 जून से देश में चीन के सामान के बहिष्कार का आंदोलन शुरू हो रहा है जो शातिर व्यापारी चीन की आर्थिक मेरु-रज्जु पर भारी चोट करेगा.
तृतीय मोर्चा: नेपाल का बेवकूफाना सीमा विवाद
नेपाल ने भी चीन के भड़काने पर उसकी तरह ही बेवजह भारत से शत्रुता ठान ली है और भारत नेपाल सीमा पर सिरदर्द खड़ा कर दिया है. भारत शान्ति का समर्थक है इसलिए उसने चीन की तरह ही नेपाल से भी बातचीत करके समस्या के समाधान का विकल्प तलाशा है. यद्यपि नेपाल के साथ सीमा पर सैन्य गतिरोध नहीं है किन्तु बातचीत के स्तर पर अभी गतिरोध जारी है. सदा से ही नेपाल का मददगार देश भारत कह रहा है कि अब पहले विश्वास बनाइये, फिर बात कीजिये.
चतुर्थ मोर्चा: पाकिस्तान के आतंकी हमले, सीमा-समझौते का उल्लंघन
इधर कुछ दिनों से जबसे चीन और नेपाल के साथ भारत का सीमा विवाद पैदा हुआ है, सीमा पार से होने वाली आतंकी गतिविधियां बढ़ गई हैं. आतंकी हमले और सुरक्षा बलों से मुठभेड़ की खबरें बार-बार सामने आ रही हैं. इतना ही नहीं इन्हीं दिनों पाकिस्तान सीमा-समझौते का भी लगातार उल्लंघन करता देखा जा रहा है और पाकिस्तानी सीमा से होने वाली गोलीबारी बढ़ गई है. यह भी दुश्मन चीन की शातिर युद्ध नीति है. नेपाल की तरह ही पाकिस्तान को भी चीन ने अपनी तरह ही इसी मौके पर भारत से उलझने के लिए उकसाया है.
पांचवां मोर्चा: ढहती अर्थव्यवस्था को थामने की चुनौती
कोरोना से जनहानि और कोरोना से धनहानि दोनो की ही भारत की सरकार लगातार चिन्ता कर रही है और उसके नियंत्रण करने की दिशा में हर संभव कदम उठा रही है. सरकार ने कोरोना-राहत के लिये बीस लाख करोड़ की घोषणा तो कर ही दी है, अब बेरोजगारी के अधिक दुर्दशा वाले भावी चित्र को बेहतर बनाने के लिये रोजगार-राहत के लिये भी आर्थिक घोषणायें करनी होंगी. बंद हो गये कारखानों को पुनर्जीवन देने के लिये वित्त-पोषण का आपातकालिक कदम उठाना होगा और बेरोजगार हो गये लोगों के घर के चूल्हे जल सकें इसके लिये उनको येनकेनप्रकारेण रोजगार प्रदान करने होंगे. इस हेतु सबसे अहम कदम ये होगा कि सरकार अपने वित्त-जानकारों और योजना विशेषज्ञों की मदद लेकर एक ऐसी टीम का गठन करे जो कोरोना के दौर वाले नव-भारत की स्थितियों को दृष्टि में रख कर नये-नये रोजगारों का अनुसंधान करे.