नई दिल्ली. हर साल बजट पेश किया जाना सबसे महत्वपूर्ण सालाना आर्थिक गतिविधियों में शुमार है. सामान्य तौर पर बजट को एक आधुनिक आर्थिक सिस्टम का हिस्सा माना जाता है. लेकिन भारत में सरकार का सालाना बजट होना कोई नई बात नहीं है. तकरीबन 2500 साल पहले मौर्य वंश के शासन के दौरान भी बजट निर्माण की प्रक्रिया देश में मौजूद थी. मगध राजवंश को सुचारू रूप से विकास के पथ पर रखने के लिए चाणक्य ने यह प्रक्रिया शुरू की थी. चाणक्य ने राजनीति पर विश्वविख्यात किताब 'अर्थशास्त्र' भी लिखी थी जिसमें बजट के प्रावधान पर जानकारी दी गई थी.


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व्यवस्थित बजट का पूरा प्रावधान वर्णित
चाणक्य या कौटिल्य की किताब अर्थशास्त्र में राजवंश की वित्तीय व्यवस्था के लिए एक व्यापक और व्यवस्थित बजट का पूरा प्रावधान वर्णित किया गया है. यूनानी, बौद्ध, जैन स्रोतों से यह पता चलता है कि मौर्य साम्राज्य में सालाना बजट का प्रावधान इसी किताब के नियमों के मुताबिक किया जाता था. 


कब से कब तक होता था वित्तीय वर्ष?
उस वक्त मगध राजवंश में साल 354 दिनों का होता था. हर साल बजट तैयार किया जाता था. मौर्य राजवंश के 'राजवर्षम' के आधार पर इस बजट को तैयार किया जाता था जिसका अंत आषाढ़ (जून/जुलाई) महीने में होता था. उस वक्त समाहर्ता (वित्तमंत्री) की जिम्मेदारी इस बजट को बनाने की होती थी. उन्हें सभी डिपार्टमेंट से रेवेन्यू कलेक्शन फिक्स करना होता था. इन पैसों को 'आयमुख' व्यवस्था के अंतगर्त खर्च करना होता था. साथ ही समाहर्ता को यह भी तय करना होता था कि राज्य का व्यय आय से ज्यादा न हो. अगर ऐसी कोई परेशानी आती थी तो इसे ठीक करने की सलाह भी बजट में दी जाती थी. 


कई हिस्सों में बंटा था बजट
रेवेन्य कलेक्शन के विभिन्न हिस्सों के 'आयशरीर' कहा जाता थआ. इनमें शहर, खदानें, जंगल, पालतू जानवर और व्यापारिक रूट आते थे.वहीं खर्च के हिस्से को व्ययशरीर कहा जाता था. व्यय में सबसे ज्यादा प्रमुखता सुरक्षा और सेना को दी जाती थी. इसके अलावा पशुधन, मजदूर और गरीब वर्ग समेत समाज के विभिन्न हिस्सों का खयाल रखा जाता था. 


सीएजी जैसा पद
बजट से जुड़ा एक और महत्वपूर्ण पद 'अक्षपटलाध्यक्ष' का होता था. यह पद आज के महालेखा परीक्षक यानी सीएजी जैसा होता था. इस अधिकारी का काम समाहर्ता के रिकॉर्ड को चेक करने का होता था. 


राजा के प्रोजेक्ट्स को आगे बढ़ाने की व्यवस्था
चाणक्य की इस बजटीय या फिर लेखा-जोखा व्यवस्था का पूरा आधार यह था कि राजा अपने मन के प्रोजेक्ट्स को आगे बढ़ा सके. राजा की इन योजनाओं को 'पालन' का नाम दिया गया है. 


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