अंतरिक्ष में आज लॉन्च होगा भारत का पहला निजी रॉकेट विक्रम एस, जानें क्या होते हैं सब-आर्बिटल रॉकेट
भारत का पहला प्राइवेट रॉकेट विक्रम एस 18 नवंबर को लॉन्च होने जा रहा है. विक्रम श्रृंखला में 3 प्रकार के रॉकेट लॉन्च किए जाने हैं. इस रॉकेट को छोटे सैटेलाइट्स ले जाने के लिए विकसित किया गया है.
नई दिल्ली: भारत का पहला प्राइवेट रॉकेट विक्रम एस आज यानी शुक्रवार 18 नवंबर को अंतरिक्ष में लॉन्च किया जाएगा. इसे भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है और यह एक देश की एक बड़ी उपलब्धि है. आइये इस मिशन की डिटेल के बारे में जानते हैं और इस मिशन को गहराई से समझने की कोशिश करते हैं.
किसने बनाया रॉकेट
इस रॉकेट को हैदराबाद की एक प्राइवेट स्टार्टअप कंपनी स्काईरूट ने बनाया है. श्रीहरिकोटा में इसरो के लॉन्चिंग केंद्र सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया जाएगा. भारत की अंतरिक्ष तकनीक में निजी रॉकेट कंपनियों की एंट्री हो गई है. भारत अब उन बेहद कम देशों में शामिल हो जाएगा जहां निजी कंपनियां भी अपने बड़े रॉकेट लॉन्च करती हैं. मई 2022 में रॉकेट का सफल परीक्षण हो चुका है. कंपनी ने अपने इस पहले मिशन का नाम ‘प्रारम्भ’ रखा है.
विक्रम एस रॉकेट क्या है?
इस रॉकेट का नाम इसरो के संस्थापक डॉ. विक्रम साराभाई की याद में दिया गया है. विक्रम श्रृंखला में 3 प्रकार के रॉकेट लॉन्च किए जाने हैं. इस रॉकेट को छोटे सैटेलाइट्स ले जाने के लिए विकसित किया गया है.
निचली कक्षा में पहुंचा सकता है रॉकेट
विक्रम-1 इस सिरीज़ का पहला रॉकेट है. बताया जाता है कि विक्रम-2 और 3 भारी वज़न यानी 3 सैटेलाइट को पृथ्वी की निचली कक्षा में पहुंचा सकते हैं. इन 3 सैटेलाइट में से एक विदेशी कंपनी का जबकि बाकी दो भारतीय कंपनियों के सैटेलाइट हैं.
क्यों टली लॉचिंग
विक्रम एस की लांचिंग 12 से 16 नवंबर के बीच होनी थी लेकिन खराब मौसम के कारण इसे 18 नवंबर को लॉन्च किया जाएगा.
सब-आर्बिटल रॉकेट क्या है?
विक्रम एस रॉकेट एक सिंगल स्टेज सब-आर्बिटल लॉन्च वेहिकिल है. सब आर्बिटल रॉकेट अंतरिक्ष में जाता है और फिर धरती पर गिर जाता है. गिरने में इन्हें 10 से 30 मिनट लगते हैं.”
आर्बिटल रॉकेट से कैसे अलग
आर्बिटल और सब आर्बिटल रॉकेट के बीच गति का अंतर होता है. आर्बिटल रॉकेट को पृथ्वी की कक्षा की गति यानी करीब 28000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार हासिल करनी होती है लेकिन इसमें बेहद उच्च तकनीक की जरूरत होती है. इससे यह तकनीक महंगी हो जाती है.
पर सब आर्बिटल रॉकेट को एक निश्चित ऊंचाई तक जाना होता है और फिर जब इंजन बंद होता है तो वे पृथ्वी पर गिर जाते हैं. 6,000 किलोमीटर प्रति घंटे की गति इनके लिए काफी है.
अंतरिक्ष सेक्टर में निजी कंपनियां
साल 2020 से भारतीय अंतरिक्ष सेक्टर में निजी कंपनियों की सहभागिता की शुरुआत हुई थी. जून में स्पेस ई नामक एक नई संस्था बनाई गई जो इसरो और स्पेस कंपनियों के बीच ब्रिज का काम करती है. एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2040 तक अंतरराष्ट्रीय स्पेस उद्योग का आकार एक ट्रिलियन डॉलर तक हो जाएगा. इस उद्योग में भारत की हिस्सेदारी अभी महज 2% प्रतिशत है.
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