नई दिल्ली: पहले अंग्रेजों ने और फिर उनके पढ़ाए हुए आयातित मानसिकता के वामपंथी इतिहासकारों ने भारत में आर्य आक्रमण का झूठा सिद्धांत तैयार किया. जिससे भारतीय समाज में फूट डाली जा सके और इस्लामिक आक्रमणकारियों के जुल्म और उनके अवैध कब्जे को वैधानिकता का जामा पहनाया जा सके. 

भारत भूमि सभ्यताओं का पालना रही है ना कि युद्धभूमि
आर्य आक्रमण सिद्धांत के जरिए ये झूठ स्थापित करने की कोशिश की गई है कि भारत भूमि पर सदियों से हमलावर आकर कब्जा करते रहे हैं. लेकिन यह पूरी तरह गलत है. क्योंकि भारतीय धरती सदियों से सभ्यताओं का पालना रही है. युद्धभूमि नहीं.    


 भारत की पवित्र भूमि पर सदियों से विदेशी आते रहे हैं. इसमें यूरोपियन, अफ्रीकी, फारसी, यहूदी, मंगोलियन, शक, हूण, कुषाण जैसे कई अलग अलग नृजातीय समूहों के लोग थे. लेकिन इनका उद्देश्य भारत में लूट खसोट करना नहीं, बल्कि यहां से कुछ सीखना और अपने देशों में भारत जैसी विकसित संस्कृति का पौधा रोपना होता था. इस बात का सबूत हैं भारत के वाराणसी और उज्जैन जैसे सैकड़ों प्राचीन शहर, जो हजारों सालों से आबाद हैं. इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण मिलते हैं. इन शहरों में छोटे गुरुकुलों की परंपरा आज भी सक्रिय है. जबकि तक्षशिला और नालंदा जैसे बड़े गुरुकुल बर्बर इस्लामिक आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट कर दिए गए.      
ज्ञान-विज्ञान का आदिकालीन केन्द्र है भारत
आर्य-अनार्य संघर्ष के सिद्धांत से परे वास्तविकता तो ये है कि भारत हजारों सालों से सभ्यताओं की जन्मस्थली रहा है. भारत की अतिविकसित नगरीय सभ्यताएं वैश्विक विकास और अनुसंधान की केन्द्र थीं. भारत के विश्वविद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करके वहां से सीखे सनातन ज्ञान की मशाल थामकर कई देशों के विद्यार्थी अपने अपने देशों का पूरा स्वरुप ही बदल डालते थे. 


प्रशासनिक पद्धति, वैदिक गणित, चिकित्सा, सनातन दर्शन और आचार विचार का ज्ञान अलग अलग देशों के राजकुमारों द्वारा भारत में शिक्षा ग्रहण करके सीखने के बाद अपने देश की जनता को सिखाने का सामान्य प्रचलन था. 
भारतीय जीवन शैली प्राचीन काल से फैशनेबल जीवन पद्धति का पर्याय रहा है. भारतीय मसाले और सौंदर्य प्रसाधन, यहां के उन्मुक्त बाजार विदेशों के लिए विस्मय का केन्द्र होते थे.


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तर्क और ज्ञान आधारित परंपराएं और जीवन शैली भारतीय होने की पहचान थी. ऐसा हजारों सालों से होता रहा कि भारत से ज्ञान का प्रकाश निकल कर पूरी दुनिया को प्रकाशित करता रहा.
भारतीय सभ्यता विदेशी हमलों से अछूती रही
भारत के नगरों और बाजारों में अलग अलग नस्लीय पहचान(Ethinic origin)वाले व्यक्तियों का जमघट देखा जाना सामान्य बात थी.
भारतीय नगरीय व्यवस्था के प्राचीनतम शहर इंद्रप्रस्थ(दिल्ली) वाराणसी, उज्जैन, पाटलिपुत्र, बांग्ला, आहोम्(असम), पुरी, वातापि, कर्नाटिका, तमिल, मल्ल के अलावा भी हजारों छोटे कस्बे और गांव सदियों से आज भी आबाद है. इसमें से कोई एक ना एक क्षेत्र भीषण आपदा या युद्ध जैसी कठिन परिस्थितियों में भी सनातन धर्म और उसकी समस्त बौद्धिक और दार्शनिक परंपराओं का संरक्षण करते रहे.
 

भारत में रहने वाली एक बड़ी मानवीय आबादी जिसमें कई अलग अलग नस्लों और नृजातीय समूहों के लोग एक दूसरे से सहयोग करते हुए सहनशील बनकर रहते हुए अब फिर से देखे जा सकते हैं.
वर्ण व्यवस्था का जाति में बदलने से कम हुई भारत की ताकत      
लेकिन पूरी दुनिया को अपनी बौद्धिक और शारीरिक क्षमताओं से विजित करके रखने वाले भारत के पतन का दौर भी आया. गुप्त काल का स्वर्ण युग खत्म होने के 300 सालों के बाद(7वीं शताब्दी) तक भारत अपनी बढ़त खोता गया. इसकी वजह आंतरिक थी. कर्म के सिद्धांत को सर्वोपरि मानने वाला भारतीय समाज जन्म आधारित व्यवस्था में तब्दील हो गया.  
वर्ण व्यवस्था के पतन और जाति प्रथा के जोर पकड़ने के बाद भारतीय समाज रुढ़िवादी खांचों में बंट गया. सामाजिक नैतिकता में गिरावट का असर भारत के वैश्विक प्रभाव पर दिखने लगा. भारत के सामूहिक ओज और शौर्य में उत्तरोत्तर गिरावट के बाद भारत 7वीं शताब्दी के आखिर के बाद से शुरु हुए बर्बर हमलों ने बाद से लगातार सिकुड़ता गया. हमारा देश बेहद सामान्य और मामूली किस्म के बर्बरों द्वारा शासित होने के लिए विवश हुआ. भारत के पिछले 1200 वर्षों का इतिहास सिर्फ अस्तित्व का संघर्ष है. यह पूरा कालखंड भारत के पराभव और उससे जूझते बहादुर भारतीयों की गाथाओं से भरा पड़ा है. 
वामपंथी इतिहासकारों ने भारत की हार को दिखाया पर जीत को छिपाया
हमारे वर्तमान इतिहासकारों ने भारतीय सभ्यता के इसी पराभव के दौर को बेहद उभारकर दिखाया है. हजार से लेकर 12 सौ साल के इस कालखंड के पीछे  पिछले 4.5 हजार सालों के गौरवशाली इतिहास को छिपा दिया गया है. दो साल पहले राखीगढ़ी में ताजा खुदाई के मुताबिक 300 मील में फैली 6.5 हजार साल पुरानी विकसित सभ्यता के अवशेष मिले हैं. पुरातत्व विभाग द्वारा वैज्ञानिक रुप से अधिकृत काल खंड के मुताबिक हमारा इतिहास 6500 साल पुराना है. हम सभी भारतीय एक निरंतरता के साथ जी रहे समाज का हिस्सा हैं. हमारी सनातन चेतना वर्षों से अक्षुण्ण है. इस सत्य को छिपाने की कोशिश की गई.
इतिहास को देखने का नजरिया ही बदल दिया गया
भारत पर विदेशी तुर्क और मुगल आक्रमणकारियों के कब्जे को वैधानिक रूप प्रदान करने के लिए भारत को आक्रमणों की भूमि साबित करने की कोशिश की गई. आर्य आक्रमण थ्योरी को जन्म दिया गया. जिन्होंने कथित रुप से हड़प्पा संस्कृति का विध्वंस किया और मूल निवासियों को खदेड़कर भगा दिया. इस थ्योरी में वैज्ञानिक रूप से कई त्थ्यात्मक गलतियां हैं. लेकिन स्कूल की किताबों में फिलहाल यही पढ़ाया जा रहा है. जिसे बदलने के लिए नए शोध की आवश्यकता तत्काल है. 


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अंग्रेजों ने शुरु किया था भारतीय गौरव को छिपाने का सिलसिला    
भारत के ऐतिहासिक गौरव और परंपराओं को भुला देने का अभियान अंग्रेजों के जमाने से शुरु हुआ. क्योंकि अंग्रेज जानते थे कि भारत जैसे विशाल ऐतिहासिक विरासत वाले देश में वह बिना भारतीयों में फूट डाले शासन नहीं कर सकते हैं. इसलिए अंग्रजों ने यहां का शासन संभालने के बाद अपने फायदे के हिसाब से शिक्षण पद्धति शुरु की. उनका मूल उद्देश्य भारत की प्राचीन संस्कृति को भारतीयों के जेहन से मिटा देना था. 


अंग्रेजी राज से शुरु हुई ये साजिश कांग्रेसी सरकारों के दौर तक जारी रही. अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति वामपंथियों को भी सूट करती थी. इसलिए वामपंथी इतिहासकारों ने आजादी के बाद भी अंग्रेजी जमाने की शिक्षा नीति को जारी रखा. जो कि कमोबेश अब तक चल रही है.   
इसी के तहत भारतीय समाज में जातीय विभेद बढ़ाने के लिए आर्य आक्रमण सिद्धांत पर विशेष जोर दिया गया. वैदिक संस्कृति और सनातन परंपराओं को विदेशी बताने की घटिया साजिश रची गई. जो कि पूरी तरह तथ्यहीन है. 
एक गलत नजरिया स्थापित किया गया कि भारतीय उपमहाद्वीप पर गोरे व साफ रंग आर्यों ने आक्रमण  किया और काली त्वचा वाली स्थानीय आबादी को दक्षिण की तरफ धकेल दिया. इस झूठ को इतनी बार दोहराया गया कि आज भी भारत के अधिसंख्य लोग इसे ही सच मानते हैं. क्योंकि यही विचार बचपन से उनके मनोमस्तिष्क में ठूंसकर भर दिया जाता है. 
लेकिन हरियाणा के राखीगढ़ी में हाल ही में हुई खोज में मिले सबूतों से आर्य आक्रमण सिद्धांत को बड़ा झटका लगा है. जो यह बताता है कि भारत पर आर्यों के हमले जैसी बात झूठी है. 


अब नए शोध के आधार पर फिर से इतिहास के लेखन की जरुरत है. जिससे कि अपनी ही सनातन परंपरा और संस्कृति को भुला बैठा भारत सिंह गर्जना करते हुए उठ खड़ा हो.