नई दिल्ली: भारत सरकार ने हर साल की तरह इस साल भी गणतंत्र दिवस के मौके पर पद्म पुरस्कारों विजेताओं के नाम का ऐलान किया. पद्म पुरस्कार पाने वालों की सूची में बिहार के मधुबनी जिले के रांटी गांव की रहने वाली 52 वर्षीय दुलारी देवी का नाम भी शामिल था.


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दुलारी देवी पद्मश्री पुरस्कार से नवाजी जाने वाली पहली मधुबनी पेंटर नहीं हैं लेकिन उन्होंने जीवन में जिस तरह के संघर्ष, लगन और समर्पण के बल पर ये मुकाम हासिल किया है इसलिए उनकी सफलता की कहानी अपने आप में विशिष्ट है. 


12 साल की उम्र में हो गए थे हाथ पीले 


दुलारी देवी का जन्म बिहार के मधुबनी जिले के रांटी गांव में गरीब मल्लाह परिवार में हुआ था. गरीबी ऐसी कि बचपन हर तरह के आभाव में बीता और कभी स्कूल का मुंह भी नहीं देखा.



ऐसे में मां-बाप ने 12 साल की उम्र में हाथ पीले करके अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दी. लेकिन पति के घर में उन्हें पिता की तरह दुलार नहीं दे सका और कुछ साल बाद 6 माह की बेटी की मौत का गम लिए वो मायके वापस आ गईं. 


6 रुपये की मजदूरी में किया झाड़ू-पोछे का काम 


पति का घर छूटने के बाद मायके में रहना भी उनके लिए आसान नहीं था. ऐसे में उन्होंने रांटी में लोगों के घरों में झाडू़-पोछा का काम करने लगीं. लेकिन भगवान ने उनकी किस्मत में कुछ और ही लिखा था.


घरेलू कामगार के रूप में उन्हें जानी मानी मधुबनी पेंटर महासुंदरी देवी के यहां काम मिल गया यहां काम करने के एवज में उन्हें 6 रुपये मिलते थे. उनके यहां काम करते हुए वो उनकी देवरानी कर्पूरी देवी के संपर्क में आईं वो भी मिथिला कला का बड़ा नाम थीं.


देवरानी-जेठानी को मिथिला पेंटिंग करता देख दुलारी के मन में भी इसे सीखने की इच्छा जागी. शुरुआत में उन्होंने अपने घर के आंगन को मिट्टी से पोतकर उसपर लकड़ी के ब्रश से पेंटिंग बनानी शुरू कर दी. 


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कर्पूरी देवी ने सिखाया मिथिला कला का ककहरा 


ऐसे में कर्पुरी देवी ने उन्हें मिथिला कला का ककहरा सिखाया और उनके जैसी गुरु के मिलते ही उनकी कला में तेजी से निखार आता गया. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. समाज की निचली जाति से ताल्लुक रखने के कारण दुलारी को शुरुआत में भगवान की पेंटिंग बनाने की इजाजत नहीं थी.



मिथिला पेटिंग मुख्य रूप से धार्मिक आख्यानों या कथाओं से संबंधित होती हैं लेकिन उनकी जाति ने उनकी कला को एक नई दिशा दी. उन्होंने अपनी पेंटिंग में अन्य कलाकारों से अलग आस-पास के जीवन का चित्रण किया. 


बना चुकी हैं 10 हजार से ज्यादा पेटिंग


दुलारी देवी अबतक तकरीबन 10 हजार से ज्यादा मिथिला पेंटिंग बना चुकी हैं और इन्हें देश-दुनिया की 50 से अधिक प्रदर्शनियों में प्रदर्शित कर चुकी हैं. गीता वुल्फ की किताब 'फॉलोइंग माइ पेंट ब्रश' और मार्टिन लि कॉज की फ्रेंच में लिखी किताब में दुलारी देवी की जीवन गाथा व कलाकृतियां को जगह मिली है.


इसके अलावा सतरंगी नामक एक अन्य किताब में भी उनकी कलाकृतियों को जगह मिली है. मैथिली भाषा के लिए तैयार किए गए इंदिरा गांधी नेश्नल ओपन यूनिवर्सिटी(इग्नू) के आधार पाठ्यक्रम के मुखपृष्ठ के लिए भी दुलारी देवी की पेंटिंग को चुना गया था. 



मधुबनी पेंटिंग बनाने का जो सिलसिला दुलारी ने शुरू किया वो आज तक नहीं रुका है. दुलारी के हाथों में ऐसा जादू है कि देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने उनकी कला के मुरीद हो गए थे.


दुलारी की संघर्ष गाथा उस सख्स के लिए प्रेरणा का संदेश है जो मुश्किलों की बैसाखियों को छोड़कर जीवन की दौड़ को जीत लेना चाहता है.


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