नई दिल्ली: बंग की जंग में इस बार सभी की निगाहें राजधानी कोलकाता से 43 किलोमीटर दूर हुगली जिले में स्थित फुरफुरा शरीफ दरगाह पर टिकी हैं जो हर बार पर्दे के पीछे से किंग मेकर की भूमिका निभाता आया है लेकिन इस बार इसी दरगाह का एक पीरजादा खुद किंगमेकर बनने के लिए फुरफुरा शरीफ से निकलकर कोलकाता की ओर चल पड़ा है.
वामपंथियों का किला ढहाने में और दीदी को बंगाल की सत्ता दिलाने में इस दरगाह की बड़ी भूमिका रही है. इसीलिए दीदी से लेकर ओवैसी तक दरगाह से जीत की दुआ मांग रहे हैं. इसीलिए कहा जा रहा है कि पश्चिम बंगाल में इस बार होने वाले विधानसभा चुनाव का हॉट सेंटर राजधानी कोलकाला नहीं बल्कि फुरफुरा शरीफ है.
पश्चिम बंगाल के राजनीतिक इतिहास में आजादी के बाद से अब तक फुरफुरा शरीफ कभी भी पॉलिटिकल सेंटर नहीं रहा. इसे हमेशा मजहबी इजारत की नजरों से देखा गया. राजनीतिक चश्मे से कभी नहीं लेकिन इस बार कुछ ऐसा हो गया कि इबादत के दर पर सियासत का शोर सुनाई देने लगा और ये शोर मचाने वाला शख्स उसी दरगाह का एक पीरजादा अब्बास सिद्दीकी निकला.
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'सवाल है कि अचानक एक मौलवी के मन में राजनेता बनने की हसरत कैसे पैदा हो गई. 38 साल का एक पीरजादा, दरगाह से निकलकर सियासतदां बनने के सफर पर क्यों निकल पड़ा. 10 साल से बंगाल की सत्ता पर काबिज ममता बनर्जी के माथे पर अब्बास सिद्दीकी का नाम सुनते ही पसीना क्यों आ जाता है और बंगाल की सियासत में एंट्री मारने के लिए हैदराबादी भाईजान ने फुरफुरा शरीफ को ही क्यों चुना.'
इन सभी सवालों के जवाब जानने से पहले जरूरी है कि आप फुरफुरा शरीफ का इतिहास जानें, उसकी अहमियत समझें और उसकी ताकत देखें.
फुरफुरा शरीफ दरगाह का इतिहास
फुरफुरा शरीफ दरगाह बंगाल के हुगली जिले में है और इसे बंगाली मुसलमानों के सबसे बड़े आस्था केंद्र के रूप में जाना जाता है. इसका ऐतिहासिक महत्व भी है. इस दरगाह में हजरत अबु बकर सिद्दीकी और उनके पांच बेटों की मजार है. हजरत अबु बकर की पैदाइश फुरफुरा शरीफ में सन 1846 में हुई थी और वो अपने वक्त के सबसे बड़े समाजसुधारक और धर्मसुधारक माने जाते हैं.
अबु बकर सिद्दीकी के फॉलोवर्स की तादाद उनके जिंदा रहते ही हजारों में थी. उनके इंतकाल के बाद लाखों में हो गई है. हजरत अबु बकर की याद में हर साल उर्स का आयोजन होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालुओं की जुटान होती है. इसमें अच्छी खासी तादाद गैर मुस्लिमों की होती है.
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इसी दरगाह परिसर में एक मस्जिद भी है. बताया जाता है कि इस मस्जिद का निर्माण 1375 में कराया गया था. हजरत अबु बकर सिद्दीकी के वंशज ही इस दरगाह के पीर बनते हैं. पीर का मतलब होता है संत और जादा का मतलब होता है संतान. पीरजादा यानी संत का बेटा.
पीर के वंशज होने की वजह से दरगाह के पीरजादों का दरगाह के प्रति आस्था रखने वालों के बीच बहुत सम्मान होता है. पीरजादा अब्बास सिद्दीकी अबु बकर के ही वंशज हैं. लिहाजा, दरगाह के लाखों फॉलोवर्स, अब्बास सिद्दीकी को भी बहुत सम्मान देते हैं.
ओवैसी को लेकर पीरजादा चाचा भतीजे के बीच मतभेद
बंगाल में लाखों मुसलमान फुरफुरा शरीफ दरगाह में आस्था रखते हैं इसलिए हर चुनाव में यहां राजनीतिक दलों की होड़ लग जाती है. दरगाह के लाखों मुसलमानों का वोट पाने के लिए ओवैसी ने भी पिछले दिनों जब पश्चिम बंगाल का दौरा किया तो सबसे पहले इसी दरगाह में जियारत के लिए पहुंचे थे.
ओवैसी को लेकर फुरफुरा शरीफ के पीरजादा चाचा और पीरजादा भतीजे के बीच मतभेद है. चाचा उन्हें बाहरी बताते हैं और भतीजा ओवौसी का मुरीद है. फुरफुरा शरीफ दरगाह के 2 पीरजादा मौलवियों के बीच दीदी को लेकर भी मदभेद है.
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चाचा तोहा सिद्दीकी ममता के मुरीद हैं तो भतीजे ने ममता की मुखालफत का ऐलान कर दिया है. फिलहाल फुरफुरा शरीफ में दीदी और ओवैसी में से किसकी सियासी दाल गलती है ये कहना मुश्किल है क्योंकि अब फुरफुरा शरीफ के फॉलोवर का सियासी दावेदार खुद वहां का पीरजादा बन बैठा है.
फुरफुरा शरीफ दरगाह की 'सियासी' ताकत
फुरफुरा शरीफ सिर्फ एक जगह नहीं, एक दरगाह नहीं, मजहबी जियारत की दर नहीं बल्कि उससे भी ज्यादा अहम हो गया है. फुरफुरा शरीफ दरगाह बंगाल के मुस्लिमों का सबसे बड़ा वोटबैंक बन गया है. जम्मू-कश्मीर और असम के बाद पश्चिम बंगाल देश का तीसरा राज्य है, जहां मुस्लिम आबादी सबसे ज्यादा करीब 30 फीसदी है.
फुरफुरा शरीफ दरगाह से बंगाल की 100 सीटों पर सीधे सीधे हार जीत को प्रभावित करता है क्योंकि कई विधानसभा सीटों पर मुस्लिम आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है. मसलन, मुर्शिदाबाद में 66 फीसदी, मालदा उत्तर दिनाजपुर और बीरभूम में 37 से 50 फीसदी, उत्तर और दक्षिण 24 परगना में 36 फीसदी मुस्लिम वोटबैंक है.
ममता बनर्जी इन्हीं मुस्लिम बहुल विधानसभा क्षेत्रों में जीत की बदौलत सत्ता पर काबिज हैं. 2011 के चुनाव में टीएमसी को जहां 30 सीटों पर जीत मिली थी, वहीं 2016 में उन्होंने 38 सीटें जीतीं थी. इन इलाकों में टीएमसी को मिला वोट शेयर 40 फीसदी था. बंगाल के 30 फीसदी मुस्लिम वोट बैंक का रिमोट कंट्रोल इसी दरगार के पास है.
दीदी को लेकर 2 पीरजादा आपस में भिड़े
दरगाह के पीरजादा होने की वजह से इस वोटबैंक के सबसे बड़े दावेदार अब्बास सिद्दीकी ही नजर आते हैं लेकिन अब्बास के रास्ते में सबसे बड़ा कांटा उनके चाचा पीरजादा तोहा सिद्दीकी हैं जो खुलकर दीदी के साथ खड़े हैं, तो सवाल उठता है कि क्या दरगाह के प्रभाव वाले मुस्लिम वोटर 2 हिस्सों में बंट जाएंगे या फिर वोटिंग से पहले चाचा को मनाने में भतीजा कामयाब हो जाएगा.
इसीलिए इस बार ममता बनर्जी की परेशानी का सबसे बड़ा सबब पीरजादा अब्बास सिद्दीकी बन गए हैं जिन्होंने ISF नाम से अपनी नई पार्टी बनाकर दीदी को दरगाह से मिलने वाली सियासी दुआ पर सवालिया निशान लगा दिया है.
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दरअसल, पीरजादा भी जानते हैं और ज़ी हिन्दुस्तान के कैमरे पर ये खुलकर मान भी चुके हैं कि दीदी के दल में गुंडों की फौज भरी है जिनके पास बंगाल की पुलिस से भी ज्यादा हथियार हैं. बंगाल में रक्तरंजित चुनावी जंग में एक बम, बारूद और तुष्टिकरण के दम पर तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने की होड़ है तो दूसरी ओर तुष्टिकरण के खिलाफ हुंकार भरने वाली बीजेपी है.
इस बार बीजेपी की धुंआधार कैम्पेनिंग से सिर्फ दीदी ही हताश नहीं हैं. नई पार्टी बनाने वाले अब्बास सिद्दीकी भी बीजेपी की धमक महसूस कर रहे हैं इसीलिए पीरजादा अब्बास अब बीजेपी पर वाममोर्चे में सेंधमारी का मनगढ़ंत आरोप मढ़ रहे हैं.
नंदीग्राम और सिंगूर आंदोलन की कामयाबी के पीछे पीरजादा का सपोर्ट
पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने बंग की जंग में यूं ही ताल नहीं ठोकी है, वो अपनी ताकत जानते हैं जिसे वो ममता की मदद के लिए वक्त वक्त पर आजमा चुके हैं. बताया जाता है कि जिस सिंगूर और नंदीग्राम आंदोलन की सीढ़ी के जरिए ममता बनर्जी 10 सालों से बंगाल की सत्ता पर काबिज हैं.
उस आंदोलन में भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी अब्बास सिद्दीकी ने निभाई थी और वो भीड़ थी फुरफुरा शरीफ के लाखों फॉलोवर्स की, जो अब्बास के एक इशारे पर ममता के पीछे जा खड़े हुए थे. अब फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी अब खुद बंगाल के किंग मेकर बनना चाहते हैं लेकिन उनके रास्ते का कांटा बन बैठे हैं उन्ही के चाचा तोहा सिद्दीकी जो अब्बास सिद्दीकी को बीजेपी का एजेंट बताते हैं.
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फुरफुरा शरीफ दरगाह पर ओवैसी हाजिरी लगा चुके हैं. अब खबर है कि ममता बनर्जी भी 1 हफ्ते के भीतर फुरफुरा शरीफ पर माथा टेकने पहुंच सकती हैं जबकि पीरजादा अब्बास को तो फुरफुरा शरीफ की दरगाह से दुआ विरासत में मिली हैं. ऐसे में दरगाह से जीत की दुआ किसे मिलेगी और कौन खाली हाथ लौटेगा ये पहले चरण का मतदान आते आते बहुत हद तक साफ हो जाएगा.
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