नई दिल्ली: इस साल मानसून के मौसम में अनियमित बारिश से खरीफ की फसलों की पैदावार में मामूली गिरावट आई है. लेकिन इससे खाद्य सुरक्षा पर कोई असर पड़ने या महंगाई बढ़ने की संभावना नहीं है. इसका कारण यह है कि भारत के पास खाद्यान्न का पर्याप्त भंडार है. यह मानना है कृषि एवं खाद्य नीति विशेषज्ञों का. विशेषज्ञों ने कहा कि अनियमित वर्षा से किसान व्यक्तिगत स्तर पर इससे प्रभावित हो रहे हैं और कई किसानों को अब तक सरकारों से मदद नहीं मिली है. 


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कृषि मंत्रालय का अनुमान
केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा बुधवार को जारी पूर्व अनुमान के अनुसार, खरीफ चावल की पैदावार में छह प्रतिशत की गिरावट आने की संभावना है. यह महत्वपूर्ण धान उत्पादक राज्यों में खराब बारिश के कारण पिछले साल के 11.1 करोड़ टन से घटकर इस साल 10.49 करोड़ टन हो गया है. 


गर्मी की मुख्य फसल धान के तहत रकबा, पिछले साल के 4.17 करोड़ हेक्टेयर से घटकर इस साल 3.99 करोड़ हेक्टेयर रह गया है. 


मौसम विज्ञानी क्या कह रहे 
निजी मौसम पूर्वानुमान एजेंसी ‘स्काईमेट वेदर’ के उपाध्यक्ष महेश पलावत ने कहा कि मानसून में दक्षिण और मध्य भारत में अत्यधिक वर्षा हुई है जबकि पूर्वी एवं पूर्वोत्तर भारत में वर्षा में कमी देखी गई है. उन्होंने कहा कि खरीफ चावल उत्पादन में अनुमानित गिरावट भारतीय-गंगीय मैदानों (आईजीपी) में विशेष रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में जून से अगस्त तक कम वर्षा से जुड़ी है. साथ ही, मध्य भारत में फसलों को नुकसान की सूचना मिली. 


किन फसलों को नुकसान
राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश के किसानों ने सितंबर में देरी से बारिश के कारण सोयाबीन, उड़द और मक्के की फसल को नुकसान की सूचना दी. हालांकि, मौजूदा बारिश के दौर और मानसून के लौटने में देरी से उत्तर प्रदेश के किसानों को सरसों की बुआई में मदद मिलेगी. 


कहां कितनी बारिश
22 सितंबर तक के आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में सामान्य से 33 प्रतिशत कम वर्षा हुई. बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में क्रमश: 30 प्रतिशत, 20 प्रतिशत और 15 प्रतिशत बारिश की कमी दर्ज की गई. इसके अलावा 15 जुलाई तक उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में क्रमश: 65 प्रतिशत, 42 प्रतिशत, 49 प्रतिशत और 24 प्रतिशत बारिश की कमी रही. वहीं गुजरात में एक जून से 31 प्रतिशत अधिक वर्षा (सामान्य 685.7 मिलीमीटर के मुकाबले 901.2 मिलीमीटर) हुई है, जबकि महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में 26 प्रतिशत और 24 प्रतिशत अधिक वर्षा हुई है. 


कृषि विशेषज्ञों की राय
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में वरिष्ठ वैज्ञानिक विनय सहगल ने कहा कि स्थिति ‘‘चिंताजनक’’ नहीं है क्योंकि मौसम के उत्तरार्ध में मानसून सक्रिय हो गया. ‘‘मानसून के देरी से लौटने से आईजीपी में स्थित से उबरने और धान के उत्पादन में नुकसान घटकर चार प्रतिशत तक रहने की उम्मीद है. उन्होंने कहा कि रिपोर्ट के अनुसार, मध्य एवं दक्षिण भारत में अत्यधिक वर्षा के चलते फसलों को नुकसान ‘‘उतना अधिक नहीं होगा’’.


महंगाई न बढ़ने का कारण
वरिष्ठ वैज्ञानिक ने कहा, ‘‘महंगाई के संदर्भ में भी अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि सरकार के पास पहले से ही खाद्यान्न का पर्याप्त भंडार है.’’ सहगल ने कहा कि टुकड़ों वाले चावल के निर्यात पर भारत के प्रतिबंध, पाकिस्तान में अप्रत्याशित बाढ़ के कारण धान की खेती को जबरदस्त नुकसान तथा यूक्रेन युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय कीमतों में इजाफा होने की संभावना है. ‘


सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर’ के कार्यकारी निदेशक डॉ. जी वी रामंजनेयुलु ने कहा कि कुल उत्पादन पर कोई असर नहीं पड़ेगा और भारत के पास पर्याप्त भंडार है. उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर खाद्य सुरक्षा और महंगाई के संदर्भ में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.’’ 


खाद्य और व्यापार नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने कहा कि भारत के पास पर्याप्त खाद्यान्न भंडार है और चावल के उत्पादन में छह प्रतिशत की गिरावट आने पर भी घबराने की कोई बात नहीं है. उन्होंने कहा कि बुरा पहलू यह है कि लोग महंगाई को लेकर चिंतित हैं लेकिन किसानों के बारे में कोई नहीं सोच रहा. 


30 करोड़ किसान प्रभावित
शर्मा ने कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में धान के उत्पादन पर असर से करीब 30 करोड़ किसान प्रभावित होंगे, लेकिन कोई उनके बारे में बात नहीं कर रहा है. सरकार को उनके लिए प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा करनी चाहिए. अगर कॉरपोरेट क्षेत्र के लिए किया जा सकता है तो किसानों के भी किया जाना चाहिए.’’ बाजार को नियमित करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘जब हमारे पास चार करोड़ टन अतिरिक्त चावल था तब भी इसके दाम बढ़े थे.’’ 

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