नई दिल्ली. केंद्र की NDA सरकार ने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल को पुलिस और भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) एवं भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) जैसी अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों से संबंधित निर्णय लेने की शक्तियां सौंपी हैं. इसके अलावा विभिन्न मामलों में अभियोजन की मंजूरी देने के लिए और शक्तियां LG को सौंपी हैं. केंद्र के इस कदम को लेकर विपक्ष ने आलोचना की है.


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विपक्ष ने इसे राज्य के लोगों को ‘अशक्त’ बनाने की दिशा में उठाया गया कदम करार दिया है. नए नियमों के मुताबिक अब LG भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो से संबंधित मामलों के अलावा महाधिवक्ता और अन्य कानून अधिकारियों की नियुक्ति के संबंध में भी निर्णय ले सकते हैं.


क्या हैं नई शक्तियां
बता दें कि जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा वापस लेकर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किए जाने के बाद लागू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के तहत जारी नियमों में संशोधन कर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने LG को ये शक्तियां दीं. इससे पहले तक राज्य में पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था, अखिल भारतीय सेवाओं और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो से संबंधित प्रस्तावों को उपराज्यपाल के पास पहुंचने से पहले जम्मू-कश्मीर के वित्त विभाग से मंजूरी लेनी पड़ती थी.


ये भी हुए हैं बदलाव
अब नए नियमों के मुताबिक ऐसे प्रस्ताव अब केंद्र शासित प्रदेश के मुख्य सचिव के माध्यम से सीधे LG के समक्ष प्रस्तुत किए जाएंगे. LG को महाधिवक्ता और अन्य विधि अधिकारियों की नियुक्ति का भी अधिकार दिया गया है. अब तक ये नियुक्तियां सरकार द्वारा तय की जाती थीं लेकिन अब इसके लिए LG की मंजूरी की आवश्यकता होगी.


विपक्ष ने बताया 'लोकतंत्र की हत्या'
विपक्षी दलों नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने कहा है कि यह निर्णय जम्मू-कश्मीर के लोगों को ‘अशक्त’ कर देगा. वहीं कांग्रेस ने केंद्र के इस कदम को ‘लोकतंत्र की हत्या’ करार दिया जबकि अपनी पार्टी ने सभी दलों से मतभेदों को दूर करने और इस कदम के खिलाफ एकजुट होकर विरोध करने का आग्रह किया है.


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