Kanchanjunga Express: कब और कैसे शुरू हुई कंचनजंगा एक्सप्रेस, क्यों पड़ा ये नाम?
Kanchanjungha Express Accident: 8 अक्टूबर, 2016 को कंचनजंगा एक्सप्रेस ट्रेन की शुरुआत की गई थी. इसके पीछे पूर्वोत्तर के राज्यों को शेष भारत के राज्यों से जोड़ना मकसद था. जब ये रेल शुरू ही, तब सुरेश प्रभु रेल मंत्री हुआ करते थे.
नई दिल्ली: Kanchanjungha Express: पश्चिम बंगाल के दार्जलिंग में कंचनजंगा एक्सप्रेस ट्रेन (13174) हादसे का शिकार हो गई है. खबर लिखने तक हादसे में 15 लोगों की मौत की सूचना मिली, करीब 60 लोग घायल हो चुके हैं. हादसा सुबह 9 बजे हुआ, जब एक्सप्रेस ट्रेन को एक मालगाड़ी ने पीछे से टक्कर मारी. ट्रेन के तीन डिब्बे क्षतिग्रस्त हो चुके हैं. ऐसा दावा किया जा रहा है कि मालगाड़ी ने सिग्नल को नहीं देखा और ट्रेन को टक्कर मार दी थी. हादसे की गहनता से जांच की जा रही है.
जब रेल मंत्री ने की घोषणा
दरअसल, साल 2016 में जुलाई के महीने में तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने अगरताल से एक ट्रेन को हरी झंडी दिखाई थी, जो दिल्ली के आनंद विहार तक जानी थी. ये एक विकली ट्रेन थी. यहां पर रेल मंत्री से अगरतला से कोलकाता जाने वाली ट्रेन चलाने की बात कही थी.
पूर्वोत्तर के राज्यों को भारत के बाकी राज्यों से जोड़ना था मकसद
करीब 3 महीनों बाद यहां से कंचनजंगा एक्सप्रेस चलाई गई. इस ट्रेन को चलाए जाने के पीछे PM मोदी का विजन था. वे पूर्वोत्तर के राज्यों को भारत के बाकी राज्यों से कनेक्ट करना चाह रहे थे, इसलिए 8 अक्टूबर, 2016 को ये ट्रेन शुरू की गई थी. वह दिन था, जब कंचनजंगा एक्सप्रेस ने चलना शुरू किया.
कंचनजंगा एक्सप्रेस ट्रेन का नाम कैसे पड़ा?
कंचनजंगा हिमालय रेंज का पर्वत है. इसकी ऊंचाई 8,586 मीटर (28,169 फीट) है. यह दुनिया का तीसरा सबसे ऊंचा पर्वत है. 1852 तक इसे सबसे ऊंचा पर्वत माना जाता है. हालांकि, बाद में ये तीसरा ऊंचा पर्वत पाया गया. इसी पर्वत के नाम पर इस एक्सप्रेस ट्रेन का नाम रखा गया. ये ट्रेन पश्चिम बंगाल के सियालदह से बर्धमान, मालदा, न्यू जलपाईगुड़ी, न्यू बोगेनगांव, गुवाहाटी, लुमडिंग और करीमकंज से कंचनजंगा तक पहुंचती है. इसलिए इस ट्रेन का नाम कंचनजंगा एक्सप्रेस रखा गया.
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