नई दिल्लीः आंदोलन से अधिक प्रोपेगेंडा बनता जा रहे किसान आंदोलन में एक बार फिर पोली ढोल वाली कहावत हकीकत साबित हुई है. दो रोज पहले इस आंदोलन को लेकर जिस तरह विदेशी कसमसाहट सामने आई थी और सात समंदर पार बैठे लोगों का भारत का लोकतंत्र खतरे में लगने लगा था, उनका एजेंडा खुलकर सामने आने लगा है.


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पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग को भी समझ नहीं आया कि वह कब इस सोशल मीडिया वाले एजेंडे के जाल में फंस गईं. उन्हें पता ही नहीं चला कि वह जिस आंदोलन को लोकतंत्र समझ कर समर्थन दे रही हैं, दरअसल उसके पीछे की हकीकत सिर्फ दहशत से भरी है. विदेशी हस्तियां किसान आंदोलन के चक्कर में खलिस्तानी प्रोपेगेंडा का समर्थन कर बैठीं. 


खलिस्तानी आंदोलन को हवा देने की कोशिश


इस बात को ठीक से समझने के लिए कुछ तथ्यों पर नजर डालते हैं. दरअसल ग्रेटा थनबर्ग और बाकी अन्य हस्तियों के किसान आंदोलन पर ट्वीट किए जाने के बाद इस साजिश भरे प्रोपेगेंडा की जांच होने लगी. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, किसान आंदोलन के सहारे अलगाववाद को बढ़ावा देने की जांच जा रही है.



इसकी जांच में शामिल एक पुलिस अफसर ने बताया कि ग्रेटा ने जो 'टूलकिट' ट्वीट किया था उसे कनाडा के वैंकूवर बेस्ड पोइटिक जस्टिस फाउंडेशन (PJF) के फाउंडर मो धालीवाल ने क्रिएट किया था. रिपोर्ट के मुताबिक, धालीवाल किसानों के प्रदर्शन के सहारे भारत में खालिस्तानी आंदोलन को हवा देने की ताक में हैं. 


वीडियो क्लिप में सामने आई साजिश


मो धालीवाल का एक वीडियो क्लिप भी सामने आया है. क्लिप में वह कह रहा है 'यदि कृषि कानून कल वापस हो जाते हैं, तो यही हमारी जीत नहीं होगी. कृषि कानूनों की वापसी के साथ जंग की शुरुआत होगी और इसका अंत यही नहीं होगा. किसी को यह मत बताने दीजिए कि कृषि कानूनों के साथ यह जंग खत्म हो जाएगी. इसलिए कि वे इस आंदोलन से ऊर्जा निकालने की कोशिश कर रहे हैं. वे आपको बताने की कोशिश कर रहे हैं कि आप पंजाब से अलग हैं, और आप खालिस्तान आंदोलन से अलग हैं. आप नहीं हैं.' 


क्या है ट्वीट डिलीट का सच


सामने आया है कि यह वीडियो 26 जनवरी को भारतीय कांसुलेट के बाहर प्रदर्शन के दौरान शूट किया गया था. जी मीडिया इसकी पुष्टि नहीं करता है. उधर धालीवाल ने इन सभी आरोपों को लेकर आगे एक बयान जारी करने की बात कही है. बहरहाल, यह तो तय है कि दिल्ली की सीमा पर दो महीने से जमा किसान आंदोलन महज एक आंदोलन नहीं है.



बल्कि कई लोगों के लिए कई तरह के हित साधने का साधन है. जी हिंदुस्तान कई बार इसके गलत हाथों में चले जाने के बाबत रिपोर्ट करता आया है. ग्रेटा थनबर्ग ने जो टूलकिट शेयर किया, सबकुछ इसके मुताबिक ही हो रहा है. 26 जनवरी को हुई घटना को एक एजेंडे के तहत वैश्विक प्रदर्शन दिवस के तौर पर मनाने की योजना थी. इस डॉक्युमेंट में वे लिंक्स दिए गए हैं जिन्हें सोशल मीडिया पर शेयर कर सकते थे. बाद में ग्रेटा ने इसे डिलीट कर दिया और दूसरा डॉक्युमेंट अपलोड किया. 


रिहाना ने भी पैसे लेकर किए ट्वीट


इसी तरह The Print की रिपोर्ट के मुताबिक, पॉपस्टार रिहाना को भारत में किसानों के विरोध के समर्थन में ट्वीट करने के लिए $ 2.5 मिलियन का भुगतान किया गया था. धालीवाल कनाडा का एक अलगाववादी है और जगमीत सिंह का करीबी भी है. इस पूरे मामले में एक कनाडाई सांसद की भूमिका भी धुंधली है.



सांसद ने रिहाना के ट्वीट का समर्थन किया था. इसके पहले भी वह अक्सर सिख अलगाववादी आंदोलन के समर्थन से सुर्खियों में आ चुके हैं. रिपोर्ट के मुताबिक भी पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थन्बर्ग को एक गहरी साजिश का मोहरा बताया गया है. 


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